पाकिस्तान पर विश्वास करने की कीमत आखिर कब तक चुकाएं?
पाकिस्तान की ओर से एक बार फिर जिस तरह संघर्ष विराम उल्लंघन किया गया और जिसमें सीमा सुरक्षा बल के दो जवानों को शहादत का सामना करना पड़ा उससे यही स्पष्ट हुआ कि इस पड़ोसी देश पर भरोसा करना अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाने के समान है।
पाकिस्तान की ओर से एक बार फिर जिस तरह संघर्ष विराम उल्लंघन किया गया और जिसमें सीमा सुरक्षा बल के दो जवानों को शहादत का सामना करना पड़ा उससे यही स्पष्ट हुआ कि इस पड़ोसी देश पर भरोसा करना अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाने के समान है। लेकिन भारत अपनी अहिंसक भावना, भाइचारे एवं सद्भावना के चलते ऐसे खतरे मौल लेता रहता है। हर बार उसे निराशा ही झेलनी पड़ती है, लेकिन कब तक?
पाकिस्तानी सेना का छल−छद्म से भरा रवैया नया नहीं है। वह हमेशा विश्वासघात करता रहा है। उसके रवैये से अच्छी तरह अवगत होने के नाते भारतीय सुरक्षा बलों को कहीं अधिक सतर्क रहना चाहिए था। ऐसा लगता है कि उन्हें पाकिस्तान पर भरोसा करने की कीमत चुकानी पड़ी। भारत के जवान ऐसी कीमत अनेक बार चुका चुके हैं। कम से कम अब तो सबक सीखना ही चाहिए। यह पाकिस्तान के पागलपन और धोखेबाजी की उसकी घातक एवं खौफनाक प्रवृति का ही दुष्परिणाम है कि बीते कुछ समय में 40 से अधिक लोग पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली गोलाबारी का शिकार बन चुके है। इनमें करीब 20 सेना अथवा सुरक्षा बलों के जवान है। पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का नियमित उल्लघंन किए जाने का एक दुष्परिणाम यह भी है कि सीमावर्ती क्षेत्र में रह रहे हजारों लोगों को अपना घर−बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों में शरण लेनी पड़ी है। भारत ने तो अपनी उदारता एवं भाइचारे का परिचय देते हुए पवित्र रजमान महीने में सीजफायर की घोषणा की। लेकिन सवाल यह है कि रजमान के दिनों में सीजफायर का क्या लाभ हुआ? 16 मई को सीजफायर के ऐलान के बाद से घाटी में हिंसा पहले से अधिक बढ़ी है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार द्वारा पत्थरबाजों की माफी देने का परिणाम भी क्या निकला?
विश्वशांति एवं भाईचारे के सिद्धांत में जिसका विश्वास होता है, वह किसी को धोखा नहीं देता, किसी के प्रति आक्रामक नहीं होता। फिर भी पाकिस्तान अपनी अमानवीय एवं हिंसक धारणाओं से प्रतिबद्ध होकर जिस तरह की धोखेबाजी करता है, उससे शांति की कामना कैसे संभव है? अपने द्वारा अपना अहित साधने की दिशा में उठा हुआ उसका यह कदम उसे कहां तक ले जाएगा, अनुमान लगाना कठिन है। उसकी इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण हरकतों में उसका बौनापन ही दिखाई देता है। बात चले युद्ध विराम की, शांति की, भाईचारे की और कार्य हो अशांति के, द्वेष के, नफरत के तो शांति कैसे संभव होगी? ऐसी स्थित मिें एक सघन प्रयत्न की जरूरत है, जो पाकिस्तान की चेतना पर जमी हुई धूर्तता एवं चालबाजी की परतों को हटाकर उसे सही रास्ता दिखा सके।
यह सही है कि जब−जब पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता है तब−तब भारतीय सुरक्षा बल उसे करारा जवाब देते रहे हैं। यह भी एक तथ्य है कि भारतीय सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान को कहीं अधिक क्षति उठानी पड़ती है, लेकिन समस्या यह है कि वह अपनी शैतानी हरकतों से बाज नहीं आता। इसका कारण यही है कि वह तमाम नुकसान उठाने के बाद भी भारत को नीचा दिखाने की मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त है। पाकिस्तान भारत के प्रति नफरत, द्वेष एवं अलगाव की आग में इस कदर सुलझ रहा है कि वह सभ्य राष्ट्र की तरह व्यवहार करना ही भूल गया है। इसी कारण वह न केवल आतंकी संगठनों को पालने−पोसने का काम करता है, बल्कि उनके साथ मिलकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम भी देता है। भारत को पाकिस्तान से निपटने के लिए कुछ नए तौर−तरीके अपनाने होंगे। इस क्रम में यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान एक असामान्य देश है, हिंसक राष्ट्र है एवं आतंकवादी मानसिकता से ग्रस्त है और ऐसे देश सामान्य तौर−तरीकों से काबू में नहीं आते। यह न तो स्वाभाविक है और न ही सहज स्वीकार्य कि हमारे जवान पाकिस्तानी सेना की पागलपन भरी हरकतों का शिकार बनते रहें और फिर भी भारतीय नेतृत्व यह मानकर चलता रहे कि पाकिस्तान को एक न एक दिन अक्ल आ ही जायेगी। लेकिन यह संभव नहीं लगता। पाकिस्तान ने संयम को छोड़ दिया है, वह मर्यादा और सिद्धान्तों के कपड़े उतार कर नंगा हो गया है। पूर्वाग्रह एवं तनाव को ओढ़कर विवेकशून्य हो गया है। तबले की डोरियां हर समय कसी रहंेगी तो उसकी आवाज ठीक नहीं होगी। उसकी रक्त धमनियों में जीवन है, लेकिन बाहर ज़हर। यह कारण है कि हमारे तमाम शांति प्रयत्नों पर वह पानी फेरता रहता है।
कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने जब 15 साल पुराने संघर्ष विराम समझौते की उसकी मूल भावना के अनुरूप लागू करने की बात कही थी तभी यह आशंका उभरी थी कि पाकिस्तानी सेना अपनी बात पर कायम रहने वाली नहीं है। दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ और पाकिस्तान ने आशंका के अनुरूप ही आचरण किया। उसकी ताजा हरकत पर सीमा सुरक्षा बल का यह कहना सही ही है कि पाकिस्तानी सेना जैसा कहती है उसके उलट काम करती है। यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान से लगती सीमा पर युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हुए हों। जम्मू एवं कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में इस तरह के हालात जब−तब उभरते ही रहते हैं।
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार की नीतियां भी भ्रामक एवं विरोधाभासी है। उन्होंने क्या सोचकर पत्थरबाजों को माफी देने का निर्णय लिया? एक जवान जब 500 लोगों की भीड़ से घिरा हो, पत्थरबाज उसकी जीप को पलटने की कोशिश कर रहे हों तो जवान क्या करेगा? क्या वह खुद को पत्थरबाजों के हाथों मरने के लिए उनके हवाले कर दे या फिर खुद को बचाने के लिए निकलने की कोशिश करे। उसकी ऐसी कोशिश पर राजनीति करने का औचित्य भी अनेक सवाल खड़े करता है। हम अपने ही देश में पडौसी देश के हमलों के ही नहीं बल्कि अपने ही लोगों के हमलों के शिकार होकर कैसे सशक्त हो सकेगे? कैसे शत्रु के हमलों का मुकाबला कर सकेंगे? ये भारत की एकता और अख.डता के लिये, यहां की शांति के लिये गंभीर खतरे हैं। इन हिंसक हालातों में शांति की पौध नहीं उगायी जा सकती। राष्ट्रवादियों के आत्मबल को जगाने और सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने के लिए आतंकवादियों पर पूरी शक्ति से प्रहार करना ही होगा।
ललित गर्ग
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