देश के आमजन को चिढ़ाती थीं वाहनों की लाल बत्तियां
बत्तियों के प्रति दीवानगी ने समस्या को बहुत बढ़ा दिया था। लाल बत्तियां, हूटर आदि आवश्यकता की जगह स्टेस्स सिम्बल बनते जा रहे थे। अपने को जनसेवक, समाजसेवक कहने वाले लोग भी लाल बत्ती का मोह छोड़ने को तैयार नहीं थे।
राजसत्ता को संचालित करने हेतु कतिपय व्यवस्थाएं आवश्यक होती हैं। विशिष्ट जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वालों को अतिरिक्त सुविधाएं व सुरक्षा हमेशा से मिलती रही है। एक सीमा तक इस पर आपत्ति नहीं हो सकती है। इसके अलावा सुरक्षा बलों को अक्सर न्यूनतम समय में खास गंतव्य तक पहुंचना होता है। यही बात किसी बीमार व्यक्ति को चिकित्सालय पहुंचाने पर लागू होती है। यदि इन सीमित संस्था वाले वाहनों पर लाल बत्तियां लगतीं, तो संभव था कि यह कोई मुद्दा ही नहीं बनता। लेकिन बत्तियों के प्रति दीवानगी ने समस्या को बहुत बढ़ा दिया था। लाल बत्तियां, हूटर आदि आवश्यकता की जगह स्टेस्स सिम्बल बनते जा रहे थे। अपने को जनसेवक, समाजसेवक कहने वाले लोग भी लाल बत्ती का मोह छोड़ने को तैयार नहीं थे। सरकारी अधिकारी तो लोक सेवक या नौकर शाह होते हैं। लेकिन अपने को लोक से अलग दिखाने की इनकी मानसिकता सदैव प्रभावी होती है। सच्चाई यह है कि इस प्रकार का वी.आई.पी. कल्चर आमजन को चिढ़ाता है। इसका नियम विरूद्ध प्रयोग व्यवस्था की मूल भावना को ही ध्वस्त कर देता है।
मूल भावना यह थी कि यातायात में पुलिस, सेना, एम्बूलेन्स, फायर बिग्रेड को विशेष सुविधा मिले। यह प्रतिष्ठा नहीं आवश्यकता की बात थी। इसमें रुतबा नहीं सम्मान, सेवा, सुरक्षा का विचार था। इसका तात्पर्य यह था कि इन वाहनों की लालबत्ती देखे या हूटर, सायरन सुने तो लोग अपने आप उन्हें सम्मान दे, उनको रास्ता देने के लिए अपने वाहन किनारे कर लें। पहले ऐसा ही था। बाद में वी.आई.पी. कल्चर ने लाल बत्तियों की बाढ़ ला दी। सड़कों पर बड़ी संख्या में ऐसे वी.आई.पी. वाहन दिखाई देने लगे। तब जिन्हें वाकई जरूरत थी, उनके प्रति भी सम्मान या उन्हें रास्ता देने का विचार समाप्त हो गया। इससे देखा गया कि एम्बूलेन्स व फायर ब्रिग्रेड तक जाम में फंसी रहती हैं। कोई रास्ता देने को तैयार नहीं होता है। पिछले कुछ वर्षों में स्थिति ज्यादा खराब हुई है। मंत्री, अधिकारी वाहनों में बैठे हों और लालबत्ती लगी हो, यहां तक गनीमत थी। लेकिन उनके परिजन तक इस रूतबे का भरपूर फायदा उठाते थे। इतना ही नही मंहगी फीस वाले किसी विद्यालय के खुलने व छुट्टी के समय सामने खड़े हो जाइऐ। बत्तियों से सजी अनेक कारें दिखाई देंगी। यह बत्तियों का ही रूतबा होता था कि जहां मन हो वहीं गाड़ी खड़ी कर दो, बच्चों के आने का इंतजार करो जाम लग रहा है, लोगों को परेशानी हो रही है, उनकी बला से। यह लाल बत्ती केवल नेता, अधिकारी को आनंदित नहीं करती थी। वरन् उस वाहन के ड्राइवर उसके साथ चलने वाले अर्दली सभी पर मनोवैज्ञानिक असर डालती थी। सड़क पर चलने वालों को ये हेय दृष्टि से देखते थे। कोई आपत्ति करे तो लड़ने को तत्पर, देख लेने की धमकी। अक्सर इनका आचरण संबंधित क्षेत्र के लोगों को नाराज करता था। लेकिन लालबत्ती की चाहत में राजनेता इस तथ्य को समझने का प्रयास नहीं करते थे। सरकारी अधिकारियों पर आमजन का ज्यादा जोर ना चले, लेकिन मंत्रियों के बारे में विचार आता था कि अगले चुनाव में देख लेंगे। अन्य बातों के अलावा वी.आई.पी. कल्चर भी नारजगी उत्पन्न करती थी। फिर अगले चुनाव में मतदाता देख भी लेते थे। यह ऐसा अवसर होता था। जब किसी की लाल बत्ती हटने से वहां का आमजन संतुष्ट होता था।
संविधान की शुरूआत भी हम भारत के लोग से होती है। चुनाव के समय इन्हीं लोगों की खूब मनुहार होती है। लेकिन लाल बत्ती दूरी बढ़ा देती है क्योंकि इसके पीछे का विचार अहंकार उत्पन्न करता है। इसका असर आचरण पर पड़ता है। यह कहना गलत होगा कि सभी लोग इस विचार से प्रेरित होते हैं। बहुत से कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, गरीबों के लिए कार्य करने वाले शासक लोकप्रियता बनाए रखते हैं। उन पर लालबत्ती का असर नहीं होता था। वह अपने परिजनों को ऐसे वाहनों पर चलने की छूट नहीं देते थे।
कुछ समय पहले यह भी संभावना व्यक्त की गई थी कि अराजक या आतंकी तत्व भी लालबत्ती का फायदा उठा सकते हैं। संसद में हमला करने वाले आतंकी तत्व भी लाल बत्ती का फायदा उठा सकते हैं। संसद में हमला करने वाले आतंकी लालबत्ती के वाहन से ही अन्दर आए थे। उसके बाद से विषय पर विचार चल रहा था। वी.आई.पी. कल्चर के सन्दर्भ में आम आदमी पार्टी की चर्चा भी आवश्यक है। इस प्रकरण से आमजन के वी.आई.पी. कल्चर संबंधी विचारों का समझा जा सकता है। आम आदमी पार्टी की प्रारम्भिक सफलताओं में वी.आई.पी. कल्चर समाप्त करने का वादा कारगर साबित हुआ था। अरविन्द केजरीवाल का छोटी कार में चलना, फ्लैट में रहना, सुरक्षा ना लेना आदि का बड़ा सकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ा था। उन्हें लगा कि यह बन्दा वी.आई.पी. कल्चर समाप्त करेगा। इसने केजरीवाल को एकतरफा सफलता दिलाई। मतलब साफ है, लोग वी.आई.पी. कल्चर से चिढ़ते हैं। धीरे−धीरे उन्होंने वी.आई.पी. कल्चर से दूर रहने के सारे वादे एक−एक कर तोड़ दिए। सभी सुविधाओं को छोड़कर लपक लिया। इस तथ्य ने केजरीवाल की विश्वसनीयता समाप्त कर दी। दूसरी ओर पंजाब व उत्तर प्रदेश की नवगठित सरकारों ने वी.आई.पी. कल्चर समाप्त करने की पहल की, इसको आमजन ने पसन्द किया।
केन्द्र सरकार का लाल बत्ती हटाने संबंधी फैसला निश्चित ही सराहनीय है। अच्छी बात यह है कि इसमें केवल अति आवश्यक सेवाओं को छूट दी गयी है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के वाहनों तक में लाल बत्ती नहीं होगी। मतलब अब किसी के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गयी है। इस फैसले का व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार का प्रभाव होगा। आमजन के लिए संतुष्टि का विषय है।
- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
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