सिर्फ चीतों के पुनर्वास से कम नहीं होगा वन्यजीवों पर मंडरा रहा विलुप्ति का खतरा

Namibia cheetah
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कभी बाघों को घर कहे जाने वाले भारत में वर्ष 1947 तक बाघों की संख्या करीब 40 हजार थी। जुलाई 2022 में सेंसस के मुताबिक बाघों की यह संख्या अब 4500 रह गई है। बाघों का सिकुडऩा मुगल काल से शुरू हुआ और अंग्रेजों ने इसे लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया।

करीब 70 साल पहले शिकार के चलते विलुप्त हुए चीतों को नाम्बिया से लाकर उनका पुनर्वास कर दिया गया। इसे एक उपलब्धि करार दिया जा रहा है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू वन्यजीवों की दर्दनाक तस्वीर पेश करता है। भारत दुनिया में सबसे विलुप्तप्राय: प्रजातियों का प्रमुख क्षेत्र बन गया है। पिछली कुछ शताब्दियों के भीतर 5 प्रमुख भारतीय जानवर विलुप्त हो चुके हैं। इनमें द इंडियन ऑरोच, गुलाबी सिर वाली बत्तख, हिमालयी बटेर, मालाबार सिवेट बिल्ली और दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे व्यापक गैंडा प्रजातियों में से एक जावन राइनो शामिल है। 2016 में इंडिया वाटर पोर्टल पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़-पौधों की 384 विलुप्त हो चुकी हैं। वहीं मछलियों की 32, उभयचर की 2, सरीसृप की 21, बिना रीढ़ वाले जन्तु की 98, पक्षी की 113, स्तनधारी की 83। इन आंकड़ों के मुताबिक, कुल 724 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की लाल सूची के अनुसार विलुप्त प्राय: प्रजातियों में एशियाटिक लायन (बब्बर शेर), बंगाल टाइगर, भारतीय हाथी, हिम तेंदुआ, भारतीय गैंडा, कृष्ण मृग, तिब्बती हिरन, गंगा नदी की डॉल्फिन, सबसे बड़े कलाबाज के नाम से मशहूर हूलाक गिब्बन, नीलगिरि लंगूर, जंगली उल्लू, जंगल गधा और शेर मकॉक बंदर प्रमुख रूप से शामिल हैं। खतरे में पड़े जीवों की सूची में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण), जेर्डोन कर्सर, हिमालय मोनल तथा अप्रवासी लाल सिर वाला सफेद सारस भी शामिल है।

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कभी बाघों को घर कहे जाने वाले भारत में वर्ष 1947 तक बाघों की संख्या करीब 40 हजार थी। जुलाई 2022 में सेंसस के मुताबिक बाघों की यह संख्या अब 4500 रह गई है। बाघों का सिकुडऩा मुगल काल से शुरू हुआ और अंग्रेजों ने इसे लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया। सन 1875 से 1925 की अवधि में करीब 80 हजार बाघों का शिकार किया गया। मौजूदा वक्त में संख्या में मामूली बढ़ोतरी के बावजूद बाघों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे द्वारा लोकसभा को दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 से वर्ष 2022 में जुलाई तक 402 तक बाघों को जान गंवानी पड़ी है। कोरोना काल भी वन्यजीवों के लिए भी अभिशाप साबित हुआ है। वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (ट्रैफिक) के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान शिकार की 88 घटनाएं सामने आईं। लॉकडाउन में नौ तेदुओं का शिकार किया गया।

देश के वन्यजीवों पर दोहरा खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ शिकार और उनके लगातार घटते प्राकृतिक आवास और दूसरी तरफ दुर्घटनाओं से वन्यजीवों के मारे जाने का सिलसिला थम नहीं रहा है। देशभर में बिजली के करंट से हाथियों की मौत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका के मुताबिक वर्ष 2009 से 2020 के बीच कुल 741 हाथियों की मौत हुई। इसके अलावा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009-10 से वर्ष 2020-21 की अवधि में 186 हाथियों की मौत रेलों से टकराने से हुई।

वन्यजीवों के शिकार पर अंकुश लगाने में सरकारी एजेंसियां लगभग नाकाम रहीं हैं। कुख्यात चंदन और वन्यजीव तस्कर वीरप्पन ने करीब 2 हजार हाथियों को मौत के घाट उतारा था। बांग्लादेश और भारत के सुंदरवन मैंग्रोव वन क्षेत्र में 70 लुप्तप्राय बाघों की हत्या करने वाला कुख्यात शिकारी हबीब तालुकदर उर्फ टाइगर हबीब 20 साल की गई खोज के बाद पकड़ा गया। उत्तर भारत के कुख्यात वन्यजीव शिकारी संसार चंद ने सीबीआई के समक्ष 470 बाघ की खाल और 2,130 चीते की खाल नेपाल और तिब्बत के खरीदारों को बेचने की बात कबूल की थी। संसार चंद के गिरोह ने अलवर स्थित सरिस्का अभ्यारण्य से करीब 40 से अधिक बाघों का शिकार कर बाघों का नामोनिशान मिटा दिया था। रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से बाघ लाकर सरिस्का में फिर से बाघों का पुनर्वास किया गया है।

              

इतना ही नहीं भारत वर्तमान में वन्यजीव तस्करी में शीर्ष 20 देशों में और हवाई मार्ग द्वारा वन्यजीव तस्करी में शीर्ष 10 देशों में शुमार है। डीआरआई (राजस्व खुफिया निदेशालय) के स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार तस्करी में सर्वाधिक हाथी दांत, कछुए (विशेषकर भारतीय तारा कछुआ) और लाल चंदन जब्त किया गया। फिलहाल भारत से गैंडे के सींग के व्यापार में गिरावट आई है। हालांकि, देश तेजी से पैंगोलिन के अवैध शिकार और तस्करी का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। बाघ के अंगों का व्यापार भी बेरोकटोक जारी है। पूर्वोत्तर भारतीय शहरों जैसे दीमापुर, गुवाहाटी और इंफाल का उपयोग एक पारगमन स्थल के रूप में किया जा रहा है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर पक्षियों और सरीसृपों की तस्करी भी बड़े पैमाने पर होती है।

पशु-पक्षियों की प्रजातियों के खतरे के लिए प्राथमिक कारणों में पेड़ों का कटान, खनन और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियां एवं शिकार शामिल है। इससे इनका विचरण क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण पशु प्रजातियों के लिए खतरे बना हुआ है। भारत लुप्तप्राय प्रजातियों (सीआईटीईएस) में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन, वन्यजीव तस्करी (सीएडब्ल्यूटी) के खिलाफ गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग कमीशन (आईडब्ल्यूसी), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक-वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संगठन- विश्व धरोहर समिति (यूनेस्को- डब्ल्यूएचसी) और प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (सीएचएस) की सदस्यता में शामिल है। इसके बावजूद वन्यजीवों का शिकार और तस्करी रोकने में नाकाम रहा है।

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