शिमला को स्मार्ट सिटी क्या बनाएंगे जो स्मार्टनेस थी वह तो हमने छीन ली

shimla-loses-smart-city-tag
संतोष उत्सुक । Sep 3 2018 10:18AM

शिमला ने न्यू इंडिया की स्मार्ट सिटी बनने के लिए स्मार्ट परीक्षा पास की है। अंग्रेजों की ग्रीष्म राजधानी पर विकास का इतना बोझ लाद दिया गया है कि यहाँ का सामान्य जनजीवन हर साल पीलिया, पानी की कमी से जूझता है।

शिमला ने न्यू इंडिया की स्मार्ट सिटी बनने के लिए स्मार्ट परीक्षा पास की है। अंग्रेजों की ग्रीष्म राजधानी पर विकास का इतना बोझ लाद दिया गया है कि यहाँ का सामान्य जनजीवन हर साल पीलिया, पानी की कमी से जूझता है। ट्रैफिक की परेशानी दिनचर्या में शामिल है। शिमला कुदरती तौर पर स्मार्ट था और है, तभी अंग्रेजों ने इसे बसाने बारे संजीदगी दिखाई और दुनिया आज भी उनकी वास्तुकला, योजना, व्यवस्था व कार्यान्वन की कायल है। सवाल यह है कि वह जो छोड़कर गए अब हमारी विरासत का नायाब हिस्सा है, क्या हम उसे संभाल कर रख पाए। शहर जैसा बसाया गया था वैसा तो हमने छोड़ा नहीं। अगर अब फिर अधिक विकास और बदलाव के क्रूर हाथों में पड़ गया तो बचेगा नहीं। क्या हमने श्यामला से सिमला और फिर शिमला हुए क्षेत्र का इसलिए ख्याल नहीं रखा क्यूंकि इसके बसाने में अंग्रेजों का हाथ था। इस तरह की लापरवाहियाँ हमारी राजनीतिक व सामाजिक आदतों में शुमार हैं।

राजनीतिक चश्मे का यह एक कोण है कि पहले से कार्यालयों व इमारतों की भीड़, अराजक ट्रैफिक से निरंतर उलझते, बदहवास शिमला को स्मार्ट बनाया जाएगा। स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत शिमला में परिवहन, स्वास्थ्य, स्कूल, सड़क, पार्किंग, 24 घंटे पानी आदि समेत लोगों को 62 सुविधाएं दी जानी हैं। खबरें बताती हैं यदि एनजीटी की बात मानी जाए तो कई सुविधाएं देने में दिक्कत आएगी। एनजीटी ने शिमला प्लानिंग एरिया में ढाई मंज़िला तक भवन बनाने की मंजूरी दे रखी है लेकिन शिमला में तो पहले से ही पाँच छह मंज़िली इमारते हैं। स्पष्ट समझा जाए तो शिमला में स्मार्टनेस लाने के लिए बहुत आवश्यक और बहुत अनावश्यक, दोनों तरह के विकासात्मक बदलाव करने पड़ेंगे। क्या हम यह समझते हैं कि विकास आएगा तो वृक्षों, व पहाड़ों को जाना होगा। देखा गया है जब विकास धूमधाम से नृत्य शुरू करता है सभी संबंधित पक्ष मज़ा ले रहे होते हैं तभी एनजीटी प्रवेश कर विकास के लुभावने नृत्य को रोक देता है। यहाँ फिर सोचना पड़ता है कि एनजीटी क्यूँ बनाया गया। क्या विकास के रास्ते में अवरोध पैदा करने के लिए। ज़्यादा दिन नहीं हुए अगर प्रशासन पहले से चौकन्ना होता तो यही नगरी पानी की भीषण कमी में नहीं डूबी होती। कुदरती बरसात ने ही इसे संभाला। विकास की पृष्ठभूमि में कई शानदार शक्तियाँ होती हैं। क्या एनजीटी उनका कुछ कर सकता है। एनजीटी के पास आदेशों का अनुपालन करवाने के लिए कोई तंत्र नहीं है।

प्रदेश की अन्य दिलकश जगहें दशकों से उदास हैं रोज़ उनके दिल में ख्याल आता है कि क्या कभी वहाँ विकासजी आएंगे। लेकिन वहां सकारात्मक राजनीति का हेलिकॉप्टर उतारने के किए हेलीपैड बनना बाकी है।  वैसे भी सभी जगहों की किस्मत इस काबिल नहीं होती कि उनकी तरफ देखा भी जाए, उन्हें स्मार्ट बनाने के बारे सोचना तो गलत बात होती है। शिमला का वस्तुतः क्या हाल है यह सब जानते हैं, जो सही पर्यावरण प्रेमी, शिमला के दीवाने, खरी पारदर्शी बात करते हैं क्या उनकी बात सुनने वाला कोई है। अच्छी न लगने लायक ताज़ा खबर यह है कि केंद्रीय शहरी और आवास मंत्रालय की ओर से जारी ‘ईज़ आफ लिविंग’ सूची में शिमला देश के 111 शहरों में से 92वें स्थान पर और धर्मशाला 56वें स्थान पर है। शिमला को आवास, पेयजल, ट्रांसपोर्टशन व अपशिष्ट जल प्रबंधन में पांच में से शून्य अंक मिले। यह रिपोर्ट भी अन्य रिपोर्टस की मानिंद अनदेखी की बारिश में धुल जाएगी। हमारे यहां तो सुप्रीम कोर्ट की बात भी ज़्यादा ध्यान से नहीं सुनी जाती। राजनीतिक दृष्टिकोण को स्मार्टली लागू करने के लिए फैसले पलट दिए जाते हैं। हमारी लापरवाही के कारण जो वास्तुकला के नमूने धुआँ हुए, पहाड़ हटा दिए, हरियाली क़त्ल हुई, झरने कूड़ा स्थल में बदले, अवैध निर्माण और भी क्या क्या हुआ। विदेश यात्राएं मात्र निर्मल आनंद के लिए की जाती हैं।

शिमला अंग्रेजों का पुराना शहर है क्यूँ न इसे अब थोड़ा उनकी तरह से संवारा जाए। शिमला पर्यटकों के लिए है तो यहाँ से सरकारी कार्यालय दूसरे क्षेत्रों को दिए जाएं। इस बहाने सरकार उन क्षेत्रों में अपने राजनीतिक वृक्ष भी सफलता से रोपित कर सकती है। इंडिया अब डिजिटल हो रहा है सभी कार्यालयों को जुड़े रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी। यदि शिमला सरकारी कार्यालयों के लिए है तो पर्यटकों को दूसरी खूबसूरत जगहों पर भेजा जाए, वे जगहें पर्यटकीय नज़रिए से विकसित की जाएं। भविष्य में शहर के अंदरूनी हिस्सों में सरकारी या निजी निर्माण बिलकुल न हो। पार्किंग व ट्रैफिक सुचारु करने के लिए सड़कें चौड़ी या सुरंगें बनाने से ज़्यादा ज़रूरी है सार्वजनिक परिवहन सुदृढ़ कर नियंत्रित किया जाए। शिमला के सभी प्रवेश मार्गों पर कुछ किलोमीटर की दूरी पर पर्याप्त पार्किंग हो। शहर में आने वाले सभी पर्यटक, सभी स्थानीय, सभी साधारण व सभी असाधारण व्यक्ति उससे आगे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें। पिछले कुछ महीनों में पर्यटकों से कई बार अनुरोध करना पड़ा कि अभी शिमला, हिमाचल न आएं तो क्या उन्हें शिमला के ज़्यादा स्मार्ट हो जाने के बाद तशरीफ लानी चाहिए। शिमला को वस्तुतः स्मार्ट सिटी बनने के लिए अभी कई इम्तिहान पास करने हैं। बिना मेहनत और पढ़ाई के पास होने के लिए सिफ़ारिश का प्रयोग होता है।

-संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़