हिमाचल प्रदेश के गिरते भू-जल स्तर का कारण है अंधाधुंध शहरीकरण

Shimla water crisis result of haphazard urbanisation and loss of natural water resources
दीपक गिरकर । Jun 13 2018 1:44PM

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय पर्यटन स्थल शिमला में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ था। सरकार ने 5 दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए थे। प्रदेश में स्थितियाँ बेकाबू होने की ओर बढ़ रही हैं।

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय पर्यटन स्थल शिमला में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ था। सरकार ने 5 दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए थे। प्रदेश में स्थितियाँ बेकाबू होने की ओर बढ़ रही हैं। वनों की आग एवं वनों की अंधाधुंध कटाई से भी भू जल-स्तर तेज़ी से गिरता जा रहा है। प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों का भारी मात्रा में दोहन किया गया है। कुछ भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और भू-माफिया की मिलीभगत के कारण हिमाचल प्रदेश का चेहरा लगातार बिगड़ता जा रहा है। भू-माफिया ने अतिक्रमण करके बहुमंज़िला इमारतों का निर्माण करके हिमाचल के अधिकांश शहरों को कंक्रीट के जंगलों में तबदील कर दिया है जबकि हिमाचल प्रदेश भूकंप संवेदी क्षेत्र है। सड़क चौड़ीकरण का मलबा नदियों में डाला जा रहा है। थोड़ी सी बारिश में पहाड़ों में अटका मलबा सड़कों पर आ जाता है जिससे आवागमन अवरुद्ध हो जाता है। वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण भी हिमाचल के शहरों में कई बार सड़कों पर जाम लगते हैं।

प्रदेश में शिमला, मनाली, धर्मशाला, डलहौजी और कसौली प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र हैं। इन शहरों में पानी की समस्या दिनों दिन और गहराती जा रही है। निरंतर गिरता भू जल-स्तर प्रदेश की मुख्य समस्या बन गया है। राज्य में 9524 प्राकृतिक जल आपूर्ति योजनाओं में से पिछले कुछ वर्षों में 1022 जल आपूर्ति योजनाएँ सूख चुकी हैं। कसौली में अवैध निर्माण और अवैध निर्माण हटाने गई सरकारी अधिकारी की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था लेकिन उसके बाद भी प्रदेश में अवैध निर्माण का कार्य बेरोकटोक चल रहा है। सरकार शिमला और धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बना रही है लेकिन अभी तक ज़मीनी स्तर पर इस संबंध में एक इंच भी प्रगति नहीं हुई है। विकास की विशाल योजनाएँ प्रकृति के साथ तोड़फोड़ कर रही हैं। बिजली और सिंचाई के लिए बनाए गए विशाल बाँध प्रकृति के साथ तोड़फोड़ के उदाहरण हैं।

शिमला के अस्तित्व पर इस साल का सूखा ख़तरे की घंटी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि हिमाचल में पौंग, भाखड़ा, चमेरा और कौल बाँध के निर्माण के बाद भी हिमाचल में पानी की कमी हो गई है। हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं, शहरीकरण, औद्योगीकरण और रेत खनन रावी, व्यास, चेनाब और यमुना नदी बेसिन को प्रभावित कर रहे हैं। कई मामलों में दो जल विद्युत परियोजनाओं के बीच की दूरी एक किलोमीटर से भी कम है जिससे मछलियों के प्रवास पर असर पड़ रहा है। सतलज बेसिन में प्रस्तावित सभी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के बाद 183 किलोमीटर लंबी सुरंगें होंगी इससे रावी, सतलज, व्यास और चेनाब नदियाँ प्रभावित होंगी और ये नदियाँ स्वच्छ्न्द रूप से नहीं बह सकेंगी। गिरते भू जल-स्तर की समस्या से निपटने की लिए अब सरकार ने जनता की सहभागीदारी से मिट्टी के जलाशय और चैकडेम का निर्माण अधिक से अधिक करने होंगे। सूखे से लड़ने के लिए प्रदेश में जनता की सहभागीदारी से एक आंदोलन चलाना होगा जैसा कि महाराष्ट्र के मराठावाड़ा में फिल्म अभिनेता आमिर ख़ान के नेतृत्व में चल रहा है और काफ़ी हद तक इसमें सफलता भी मिली है।

अब सरकार को शहर की पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जल विद्युत परियोजनाओं, इमारतों के अनियोजित निर्माण और रेत खनन के लिए कड़े कदम उठाते हुए `नो-गो ज़ोन` (प्रवेश क्षेत्र नहीं) के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। पहाड़ों पर चैकडेम बनाकर मलबे को और पानी को रोका जा सकता है। अब लोगों को अपने दायित्व को समझने और अपनी जीवन शैली बदलने की ज़रूरत है। जब तक समाज और सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए एक नहीं होंगे तब तक बात नहीं बनेगी। सरकार शिमला और धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बना रही है लेकिन अभी तक ज़मीनी स्तर पर इस संबंध में एक इंच भी प्रगति नहीं हुई है। जंगलों में आग के कारण करीब तीन हज़ार हेक्टेयर से अधिक वन संपदा खाक हो चुकी है। हिमाचल सरकार को छत्तीसगढ़ सरकार से सीख लेनी चाहिए। छत्तीसगढ़ सरकार ने नये रायपुर में नया जंगल खड़ा कर दिया है और यहाँ बहुत से तालाब बना दिए हैं।

सिर्फ़ सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप करने की बजाए ज़मीनी स्तर पर प्रयास करने होंगे। जन्मदिन और त्यौहारों पर पहाड़ों पर पेड़-पौधे लगाने की परंपरा प्रारंभ की जानी चाहिए। वनों के कटने के कारण ढलानों तथा चट्टानों पर से मिट्टी बह जाती है जिससे पेड़-पौधों के उगाने में कठिनाई आती है। हिमाचल प्रदेश के शहरों में पानी के पुनर्प्रयोग की कोई व्यवस्था नहीं है। हिमाचल का मुख्य राजस्व ही पर्यटन उद्योग से आता है। प्रदेश में ग्रामीण पर्यटन को विशेष प्रोत्साहन देने की ज़रूरत है जिससे कि पर्यटक शहरों की अपेक्षा गाँवों में जाने से शहरों की समस्या कुछ हद तक कम होगी और पर्यटक भी हिमाचल की प्राकृतिक सौंदर्यता एवं हिमाचल की परंपराओं, ग्रामीण ख़ान-पान और लोकसंगीत से परिचित होंगे।

-दीपक गिरकर

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