जयपुर का मसाला मेला सहकारिता क्षेत्र में सफलता की नई मिसाल बन चुका है

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दरअसल सहकार मसाला मेला जयपुरवासियों के दिलोदिमाग में रच-बस गया है। असलियत तो यह है कि कोरोना से पहले सहकार मसाला मेला जयपुरवासियों के लिए किसी तीज त्यौहार से कम नहीं रहा है। सहकार मसाला मेला का इतिहास यही कोई 20 साल पुराना है।

एक सोच जब धरातल पर उतरती है तो वह अपनी पहचान स्वयं बना लेती है। मीडिया में मसालों व खाद्य पदार्थों में मिलावट के समाचारों ने राजस्थान में तत्समय की सहकारी समितियों की रजिस्ट्रार और आज की मुख्य सचिव राजस्थान सरकार उषा शर्मा को सोचने को मजबूर कर दिया। चाहे उन्होंने प्रयोग के तौर पर ही सही पर जयपुर में सहकारिता के छाते तले राष्ट्रीय सहकार मसाला मेला लगाने का निर्णय क्या किया, जयपुर और राजस्थान ही नहीं अपितु सहकारिता क्षेत्र में यह मेला आज की पहचान बना चुका है। देश का सहकारिता क्षेत्र जयपुर के सहकार मसाला मेले की ना केवल प्रतीक्षा करता है अपितु देशभर की सहकारी संस्थाएं अपने मसाला उत्पाद इस मेले में प्रदर्शित करने और बिक्री के लिए लाने के प्रति उत्साहित रहते हैं।

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खास यह कि यह मेला महिला सशक्तिकरण का भी एक प्रमुख माध्यम बन गया है। दरअसल राजस्थान में 1992 से सहकार व्यापार मेला आयोजित करने का सिलसिला चला जो धीरे-धीरे राष्ट्रीय रूप ले गया और देश की सहकारी संस्थाएं इसमें उत्साह से हिस्सा लेने लगीं। ऐसे ही जहां तक याद आ रहा है दिसंबर 2001 में आयोजित राष्ट्रीय सहकार व्यापार मेले के खट्टे मीठे अनुभवों को देखते हुए समापन वाले दिन तत्कालीन रजिस्ट्रार उषा शर्मा ने एकाएक तत्कालीन प्रचार अधिकारी यानी कि मुझे आदेश दिया कि हमें मसाला मेला लगाना है और वह भी दो तीन माह बाद ही। पूरी सहकारिता की टीम जुट गई। उनका मानना था कि राजस्थान प्रमुख मसाला उत्पादक राज्य है लेकिन इसके बावजूद ना तो राजस्थान की मसालों के रूप में पहचान है और ना ही इसका लाभ उत्पादक किसान और आम नागरिकों को मिल पा रहा है। बल्कि सीधे स्वास्थ्य से जुड़े होने के बावजूद मिलावटी मसाले ही बाजार में आम आदमी तक पहुंच पा रहे हैं। बस फिर क्या था! एक सोच ने आकार लेना आरंभ किया और चार माह बाद ही अप्रैल-मई में अपनी तरह का इकलौता सहकार मसाला मेला जयपुर के हृदय स्थल रामलीला मैदान पर आयोजित किया गया। रामलीला मैदान क्या आसपास का कई किलामीटर का क्षेत्र शुद्ध मसालों की महक से महकने लगा। कोरोना के कारण इस सालाना आयोजन पर व्यवधान आया पर दो साल बाद एक बार फिर राजस्थान की राजधानी जयपुर में सहकारिता विभाग का राष्ट्रीय सहकार मसाला मेला अपने पुराने गौरव की याद दिला गया।

दरअसल सहकार मसाला मेला जयपुरवासियों के दिलोदिमाग में रच-बस गया है। असलियत तो यह है कि कोरोना से पहले सहकार मसाला मेला जयपुरवासियों के लिए किसी तीज त्यौहार से कम नहीं रहा है। सहकार मसाला मेला का इतिहास यही कोई 20 साल पुराना है। उषा शर्मा का कहना था कि मेले में जहां प्रदेश के कोने कोने के मसालों की स्टॉल लगाई जाएं वहीं लोगों का विश्वास जीता जाए कि मसाला मेले में जो मसाले मिल रहे हैं वह शुद्ध मसाले हैं और यही कारण रहा कि केवल संदेश देने के लिए मसालों की पिसाई के लिए चक्की भी मौके पर लगाई गई। मुझे अच्छी तरह याद है कि वर्तमान मुख्य सचिव उषा शर्मा आधी आधी रात तक मेला स्थल रामलीला मैदान पर उपस्थित रह कर मेले को अमली जामा पहनाने में जुटी रहती थीं और उसका परिणाम यह रहा कि जयपुर के इतिहास में सहकारिता का पहला मसाला मेला ही मील का पत्थर साबित हुआ।

उस समय के समाचार पत्रों व लोगों से पता चलेगा कि मथानिया की साबुत मिर्च खरीदने के लिए डेढ़ सौ से दो सौ लोग तक कतार में लग कर अपनी बारी का इंतजार करते दिखते थे। देखा जाए तो पहला प्रयोग था इसलिए मांग का आकलन मुश्किल भरा काम था। यही कारण रहा कि मथानिया की मिर्च, नागौर का जीरा, कसूरी मैथी, केर-सांगरी, चित्तौड़ का लहसुन, आगरा का पंछी पैठा, रामगंज मण्डी का धनिया का स्टॉक मेले के दूसरे दिन तक तो लगभग समाप्त हो गया और मथानिया की मिर्च, धनिया, जीरा, पैठा आदि की बार-बार मंगाने की व्यवस्था करनी पड़ी। तमिलनाडू के मसाले और सांगली की हल्दी का स्टॉक भी तीसरे दिन तक समाप्त हो गया तो उनकी तो दुबारा मंगाने की संभावना नहीं रही। प्रयोग के रूप में लगाई गई चक्की पर बुजुर्ग महिला पुरुष भर दोपहरी में अपनी बारी का इंतजार करते हुए सुबह से शाम तक बैठे रहे। तेज गर्मी और फिर मिर्च मसालों की गर्मी के बावजूद मसाला मेला इतना सफल रहा कि हर साल इसका इंतजार होने लगा।

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तत्कालीन रजिस्ट्रार उषा शर्मा ने मेले की सफलता को देखते हुए देश की राजधानी दिल्ली हाट पर भी मेला लगाया और वह सफल रहा। हरियाणा के चावल, डेयरी उत्पाद तो पंजाब की इंस्टेट सब्जियों की मांग देखकर इन प्रदेशों की संस्थाएं आगे बढ़कर मेले के आयोजन की जानकारी लेती रही हैं। दरअसल नए मसालों के आने का अप्रैल-मई का ही समय होता है। यही कारण है कि यह मेला अप्रैल या मई माह में लगाया जाता रहा है। सहकार मसाला मेले की लोकप्रियता को इसी से समझा जा सकता है कि मसाला मेलों में तत्समय के सहकारिता मंत्री की भागीदारी तो निश्चित रूप से रहती आई है। देखा जाए तो मसाला मेला महिला सशक्तिकरण का भी प्रमुख माध्यम रहा है और महिला सहकारी समितियों को इसके माध्यम से प्लेटफार्म मिलता रहा है। लगभग सभी रजिस्ट्रारों ने मसाला मेला को नित नए आयाम दिए और यह अपनी पहचान बनाने में सफल रहा।

मसालों की मिलावट से परेशान नागरिकों के लिए राजस्थान के सहकारिता विभाग की पहल राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी है। राज्य में सहकार मेले के आयोजन का पवित्र ध्येय जयपुरवासियों को शुद्ध मसाले उपलब्ध कराना रहा। हालांकि इसके पीछे एक दूसरा ध्येय उत्पादक व उपभोक्ता के बीच की खाई को दूर कर सीधे आम नागरिकों को उत्पादकों से जोड़ना भी रहा। खासतौर से मसाला उत्पादक काश्तकार और आम नागरिकों को लाभान्वित करना है। मसाला मेले के आयोजन से काश्तकारों को मसालों के उत्पादन के लिए प्रेरित करने के साथ ही शुद्ध मसालों के प्रति आम नागरिकों में जागरूकता पैदा की जाती है। सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ही मसालों की साफ-सफाई, ग्रेडिंग-पैकिंग और पिसाई आदि के बाद बिक्री का भी उद्देश्य रहा है, ताकि काश्तकारों को पूरा पैसा, आम नागरिकों को शुद्ध मसाले और राज्य के बीज मसालों के लिए प्रदेश और देश के बाहर सहकारी आधार पर बाजार बनाया जा सके। मेले में साबुत और पिसे हुए मसालों के साथ ही मौके पर ही मसाले पीस कर उपलब्ध कराने की व्यवस्था से लोगों में विश्वास पैदा हुआ। सहकार मेले का एक प्रमुख आकर्षण मौके पर ही चक्कियों से मसालों की पिसाई की व्यवस्था है। 

समूचे विश्व में भारत की गणना सबसे बड़े मसाला उत्पादक, निर्यातक और उपभोक्ता के रूप में की जाती है। देश में उत्पादित करीब साठ किस्म के मसालों में से 17 प्रमुख बीज मसालों का मुख्य उत्पादक प्रदेश राजस्थान है। जीरा, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवाईन, मिर्च आदि के उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए मरू प्रदेश की जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। देश में कुल उत्पादित मेथी का लगभग 80 फीसदी उत्पादन राजस्थान में होता है। नागौर, जोधपुर, जालौर और पाली इलाके में जीरे का उत्पादन प्रमुखता से होता है। कोटा-झालावाड़ का धनिया विश्व प्रसिद्ध है। मथानिया, खंडार आदि की मिर्च की पूरे देश में अलग पहचान है। राजस्थान समूचे देश में मसाला बीज के उत्पादन में अग्रणी प्रदेश होने के बावजूद है उसके बावजूद निकटतम प्रदेशों की मंडियों में यह मसाले ग्रेडिंग, पैकिंग आदि के लिए जाते हैं।

मसालों की लगातार उपलब्धता के लिए उपभोक्ता संस्थाओं में परस्पर सहयोग व व्यापारिक कड़ी-बंधन स्थापित किया जाना चाहिए जिससे एक क्षेत्र की उत्पादित वस्तुएं दूसरी सहकारी संस्थाओं के बिक्री केन्द्र पर उचित दर पर प्राप्त हो सकें। सहकारी नेटवर्क का लाभ सीधे आम आदमी को मिल सके। उदाहरण के लिए रामगंजमण्डी का धनिया कोटा या झालावाड़ भण्डार सहकारी बिक्री केन्द्रों के लिए खरीद के उपलब्ध कराए, इसी तरह से नागौर, भीनमाल या अन्य का जीरा-मेथी की खरीद व बिक्री व्यवस्था हो तो सहकारी आंदोलन अपने उद्देश्यों में अधिक सफल हो सकता है। सबसे अधिक आवश्यकता इस बात कि है कि अन्य प्रदेशों की सहकारी संस्थाओं को भी इस तरह के प्रयास करते हुए आगे आना चाहिए ताकि सहकारिता के माध्यम से देश के प्रत्येक नागरिक को शुद्ध मसालें उपलब्ध हो सके। यह अपने आप में पावन कार्य होगा।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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