30 लाख लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दे दिया सुप्रीम कोर्ट ने
कभी-कभी कोई एक फैसला इतिहास बदल देता है। गुरुवार यानि 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ही फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हमेशा के लिए हटा दिया।
कभी-कभी कोई एक फैसला इतिहास बदल देता है। गुरुवार यानि 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ही फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हमेशा के लिए हटा दिया। यानि अब बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आएंगे। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने दो व्यस्कों के बीच बने समलैंगिंक यौन संबंध को एकमत से अपराध के दायरे से बाहर कर दिया। संवैधानिक बेंच ने एकमत से ये फैसला सुनाया कि लैंगिक रुझान अपनी पसंद का मामला है। हर व्यक्ति को अपने शरीर पर पूरा अधिकार है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दो व्यस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा- इन लोगों को इतने सालों तक समान अधिकार से वंचित रहना पड़ा, डर के साए में जीना पड़ा, इसके लिए इतिहास को इनसे माफी मांगनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा- समलैंगिकों को भी अपनी गरिमा के साथ जीने का पूरा अधिकार है, लोगों को अपना नजरिया बदलना होगा। समलैंगिकों के साथ किसी तरह का भेदभाव उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा- 158 साल पुराना अंग्रेजों के जमाने का कानून गरिमा के साथ जीने के अधिकार के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद समलैंगिक समुदाय के लोग खुशी में झूम उठे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कुछ लोग भले ही नाराजगी जता रहे हैं लेकिन इस एक फैसले से देश भर के समलैंगिकों को नई जिंदगी मिल गई है।
धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी। और आखिरकार 24 साल की लंबी लड़ाई के बाद समलैंगिकों को उनका हक मिल गया। अपनी मांगों को लेकर समलैंगिकों ने समय-समय पर देश भर में आंदोलन भी किया लेकिन उन्हें कभी किसी तरह का राजनीतिक समर्थन नहीं मिला। समलैंगिंकता को अपराध से बाहर रखने के लिए 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल लेकर जरूर आए थे लेकिन तब बीजेपी सांसदों ने इसके विरोध में वोटिंग की थी।
दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में समलैंगिकों को अपनी आजादी से जिंदगी जीने का अधिकार हासिल है। कनाडा में 1969 में ही इसे कानूनी मान्यता मिल गई थी...वहां समलैंगिकों को आपस में शादी करने की भी अनुमति है। फ्रांस में 1791 से ही समलैंगिंकता को अपराध से बाहर रखा गया है, ब्रिटेन में 1967 में समलैंगिंको को उनका हक मिला तो अमेरिका में इसे 2003 में कानूनी मान्यता दी गई। रूस में 1993 से समलैंगिंको को साथ रहने का अधिकार है लेकिन वो शादी नहीं कर सकते। ब्राजील में 1830 से ही इसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है.. वहां समलैंगिंको कको आपस में शादी रचाने का भी अधिकार है। ऑस्ट्रेलिया, जापान, चीन, थाइलैंड सभी देशों में समलैंगिकों को उनका हक मिल चुका है। यहां तक की नेपाल में भी 2007 में समलैंगिंको को उनका हक मिल गया। बस पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे मुल्कों में इसे गैरकानूनी माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का बॉलीवुड से लेकर कई संगठनों ने जोरदार समर्थन किया है। जहां तक मेरी राय है हमें इस फैसले का स्वागत करना चाहिए....समाज में हर किसी को अपनी इच्छा से जीने का अधिकार मिलना चाहिए...कुछ लोगों को लगता है कि इस फैसले का समाज पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। बस लोगों को अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2012 में देश में समलैंगिकों की संख्या करीब 25 लाख थी। हमें लगता है 6 साल में ये संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई होगी। देर से ही सही सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने 30 लाख की आबादी को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दे दिया है।
-मनोज झा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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