प्रश्नपत्र लीक होना बड़ा अपराध, यह पूरी परीक्षा प्रणाली की खामी है

The questionnaire leak is a big crime

परीक्षाएं शिक्षा के समानांतर चलने वाली गतिविधि मानी जाती है। परीक्षा यानि मूल्यांकन। मूल्यांकन किन स्तरों पर हो रहा है। किस उद्देश्य से किया जा रहा है। कौन मूल्यांकन कर रहा है। किन मानकों पर मूल्यांकन किया जा रहा है।

परीक्षाएं शिक्षा के समानांतर चलने वाली गतिविधि मानी जाती है। परीक्षा यानि मूल्यांकन। मूल्यांकन किन स्तरों पर हो रहा है। किस उद्देश्य से किया जा रहा है। कौन मूल्यांकन कर रहा है। किन मानकों पर मूल्यांकन किया जा रहा है इन्हें समझना बेहद ज़रूरी है। परीक्षा से विरोध नहीं है। बल्कि परीक्षा क रवैए और शैली से एतराज़ हो सकता है। बच्चे परीक्षा पूर्व किस प्रकार तैयारी करते हैं इसे बताने की आवश्यकता नहीं। इसे भी कहने की ज़रूरत नहीं कि बच्चों से लेकर अभिभावकों में परीक्षा को लेकर किस प्रकार की छवि बनती जा रही है। परीक्षा से एक दो माह पूर्व से ही स्कूल, घर, दफ्तर सब परीक्षा के प्रभाव क्षेत्र में आ जाते हैं। अभिभावक तमाम किस्म के तरीके, जादू टोने, डॉक्टर की राय आदि लेने शुरू कर देते हैं। स्कूल में तो लगातार टिप्स बंटना शुरू हो जाता है।

क्या वज़ह है कि छुटि्टयों में बच्चों को अतिरिक्त कक्षा करनी पड़ती है? बच्चों को छुटि्टयों में क्यों बुलाया जाता है? क्यों हमें अतिरिक्त वक़्त की आवश्यकता पड़ती है? इसका एक अर्थ यह निकलता है कि जब हम पूरे साल के अकादमिक सत्र की योजना बनाते हैं तभी हम आने वाले माह में किस प्रकार की चुनौतियां, दिक्कतें आ सकती हैं उसका अनुमान ही नहीं लगा पाते। यदि अनुमान लगा कर वैसे ही कक्षाओं की योजना बनाएं, छुटि्टयों की योजना बनाएं तो शायद अतिरिक्त कक्षाओं की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। मैनेजमेंट के जानकार और प्रोफेशनल मानते हैं कि कोई भी प्रोजेक्ट अपने अंत में फेल नहीं होते बल्कि प्रोजेक्ट शुरू होने के वक़्त ही फेल हो जाते हैं। परीक्षा भी आज की तारीख में एक प्रोजेक्ट ही है। इसका आरम्भिक समय भी तय है और खत्म होने की तारीख भी पूर्व में ही तय कर दी जाती है। वह फरवरी का अंत या मार्च का पहला पखवाड़ा होगा। जब टाइम फ्रेम हमारे सामने हैं। टारगेट भी हमने तय कर लिया है कि स्कूल को अच्छे प्रतिशत में पास ग्राफ को हासिल करना है। अभिभावकों के सामने भी लक्ष्य स्पष्ट होता है कि उनके बच्चे को फलां फलां कोर्स की तैयार करनी है। फिर क्या वज़ह है कि परीक्षा से ठीक एक दो माह पूर्व बच्चे और अभिभावक, स्कूल और मैनेजमेंट अचानक परीक्षा को लेकर संज़ीदा हो जाते हैं। नींद से उठ जाते हैं कि परीक्षा सिर पर खड़ी है और तुम हो कि सोने से बाज़ नहीं आते। ग़लती उस बच्चे की जितनी है उससे ज़्यादा दोषी वह हरकारा सरकार और अभिभावक भी हैं जो समय समय पर मॉनिटरिंग नहीं करते। बीच बीच में बच्चे की तैयारी का जायजा नहीं लेते। क्योंकि जब परीक्षा जिसका समय साल का अंत तय किया गया है तो हमें बीच में बच्चों और अभिभावकों की तैयारी को भी जांचना होगा। ग़लती का घड़ा तो किसी भी कमजोर सिर पर फोड़ना आसान है लेकिन जिम्मदार बच्चे हैं या फिर हमारा तंत्र इसे जांचने की आवश्यकता है।

जब परीक्षा से पूर्व परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक हो जाएं तो जितना नुकसार बच्चों को होता है उससे ज़रा भी कम प्रशासन और सरकार की नहीं होता। एक परीक्षा को संपन्न कराने में कितने लोग जुड़े होते हैं यदि इस गणित को समझ गए तो यह समझना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि क्यों और किस स्तर पर परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक हो सकते हैं या होने की संभावना होगी। हमें परीक्षा कराने से पूर्व परीक्षा के प्रश्नपत्र निर्माण और उसका परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया को समझना होगा। फेल बच्चे नहीं होते बल्कि परीक्षा प्रणाली और परीक्षा आयोजक फेल होते हैं।

हम मुद्रित पेपर एवं परीक्षा की बात कर लें। प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी किसे दी जा रही हैं। कौन प्रश्नपत्र निर्माण समिति को कॉर्डिनेट कर रहा है। उस व्यक्ति या संस्था की विश्वसनीयता कितनी है। इसे भी जांचने की आवश्यकता पड़ेगी। प्रश्नपत्र निर्माण समिति के कॉर्डिनेटर किन लोगों को प्रश्न पत्र बनाने का जिम्मा सौंपते हैं। जब प्रश्नपत्र बन कर कॉर्डिनेटर के पास आता है तब उसके साथ कॉर्डिनेट कैसे बरताव करते हैं। समिति में किन सवालों को अंत में रखा जाता है क्योंकि यह तो प्रश्नपत्र बनाने वाले लोग जानते हैं कि एक विषय में विभिन्न प्रश्नपत्र बनाने वालों से मदद ली जाती है। यह उन सवाल निर्माताओं को भी मालूम नहीं होता कि उनके किन सवालों को शामिल किया गया। कितने सवाल रखे गए हैं। लेकिन यह कड़ी अपनी इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती कि जिन सवालों को बनाकर उन्होंने समिति को सौंपा उसे ही अपने प्रियजन से साझा कर लें। इसका अलावा प्रश्नपत्र मुद्रित करने वाला, छापने वाला भी एक नरम कड़ी है जहां सवालों के लीक होने ही संभावना होती है। इस स्तर पर इसकी भी पड़ताल लाजमी है कि किस मुद्रण व टंकन के यहां प्रश्नपत्र टाइप हो रहे हैं इसे भी विमर्श के केंद्र में रखना होगा। क्योंकि एक टाइपराइटर या मुद्रक की सैलरी कितनी है इस बात पर भी प्रश्नपत्र के लीक होने की घटना निर्भर करती है। इसके बाद मुद्रण के बाद उन प्रश्नपत्रों को कहां स्टोर किया जा रहा है। वो कौन लोग हैं जिनकी निगरानी में सवालों को रखा गया है। क्या वह स्थान, आलमारी, व्यक्ति सुरक्षित है? इसे भी देखना−समझना होगा। यदि व्यक्ति की जान खतरे में है तो वह प्रश्नपत्रों की रक्षा करने की बजाए समझौता करने के रास्ते को चुनेगा। वह समझौता किसी भी स्तर पर संभव है।

भंडारण के बाद परीक्षा पूर्व किस मोड आफ ट्रांसपोर्ट के ज़रिए प्रश्नपत्र बंडल व पेटी पहुंचाई जा रही है। क्या सीधे परीक्षा केंद्र पर पहुंच है या फिर उस केंद्र के शहर में सरकारी बैंक में उन प्रश्नपत्रों को स्टोर किया गया है। वाहन, वाहन में सवार अधिकारी, बैक कर्मी इस स्तर पर जिम्मेदार और जवाबदेह हो सकते हैं यदि प्रश्नपत्र लीक होता है। लेकिन यह कहानी यही नहीं रूकती बल्कि आगे जाती है कि जब प्रश्नपत्र की पेटी को परीक्षा केंद्र पर सत्यापित अधिकारी को सौंपा गया तब वहां कौन कौन अन्य लोग उपस्थित थे। जैसा कि नियम है प्रश्नपत्र का बंडल कम से कम चार लोगों के समक्ष खोला जाता है। उस पैकेट पर उक्त चारों अधिकारियों के हस्ताक्षर दर्ज होते हैं। पेपर लीक का मसला यहां भी कमजोर हो सकता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

मान लिया उक्त वर्णित किसी भी स्तर पर गड़बड़ी नहीं हुई है तो फिर क्या वज़ह है कि प्रश्नपत्र परीक्षा केंद्र के बाहर बैठे लोगों के पास मौजूद हो। क्योंकि ऐसी घटनाएं आज आम हो चुकी हैं कि यदि परीक्षा सुबह दस बजे शुरू होनी है तो परीक्षा−पत्र सुबह आठ बजे या परीक्षा की पूर्व संध्या पर बाज़ार में उपलब्ध है। जो पढ़ने में लगे थे रात भर पढ़ते पढ़ते रात काट दी। जो जुगाड़बाज़ थे उनके हाथों में परीक्षा का प्रश्नपत्र होता है। यह कितना बड़ा धोखा है उन बच्चों और समाज के साथ जो परीक्षा की प्रणाली में विश्वास करते हैं। जो मेहनत और पढ़ाई में अटूट आस्था रखते हैं। उनके टूटते हुए विश्वास को कोई भी ग्ल्यू या फेविकाल नहीं जोड़ सकता। दूसरी अहम बात यह भी है कि जब बच्चे पूरे साल मेहनत कर पढ़ाई करते हैं और अचानक मालूम होता है कि परीक्षा पत्र लीक हो गया तो ऐसा लगता है व्यवस्था ने उनके साथ एक बड़ा छल किया है। दुबारा उसी पत्र की तैयारी श्रम और रूचि का दोहन नहीं तो इसे और क्या नाम देंगे।

परीक्षा प्रश्नपत्र लीक होने से कहीं न कहीं नागर समाज के सभी कंधों पर जिम्मेदारी आती है क्योंकि अचानक और स्वयं प्रश्नपत्र चल कर लोगों तक नहीं पहुंच सकता। जाहिराना तौर पर कोई तो है जिन्होंने अपनी जिम्मदारी निभाने में लापरवाही की। कोई तो है जो बच्चों की उम्मीदों और आशाओं पर पानी फेरने से नहीं चूका। उपरोक्त प्रश्न निर्माण की प्रक्रिया में कहीं न कहीं कोई न कोई कड़ी नरम रही होगी। उस व्यक्ति की नरमी जिन भी वज़हों से रही हो लेकिन वह स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि यह मिसाल महज प्रश्नपत्रों के लीक होने भर तक महदूद नहीं है बल्कि यह पूरी परीक्षा प्रणाली, परीक्षा की कार्ययोजना और रणनीति पर सवाल खड़ा करता है। यदि चूक हुई तो क्यों? हालांकि सरकारी तर्ज पर समिति बैठा दी जाती है जो अपनी रिपोर्ट में बता देते हैं कि इन वजहों से चूक हुई। लेकिन वह रिपोर्ट भी कब आती है और किनके द्वारा तैयार की जाती है इसे भी जानना काबिलेगौर होगा। रिपोर्ट के प्रस्तावों पर ही अमल कर लिया जाए तो संभव है इस प्रकार की गलती दुहराई न जाए। लेकिन प्रश्नपत्रों के लीक होने की घटना ना तो नई है और न रूकी है। इतना ज़रूर हुआ है कि पहले मुद्रित प्रश्नपत्र लीक हुआ करते थे। और जब से ऑनलाइन परीक्षा आयोजित होने लगी है तब से डिजिटल स्तर पर लीक होने लगे हैं। 2003 वह समय है जब पहली बार आईआईएम ने ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की ठानी। कमाल की बात है कि देश के शीर्षस्थ मैंनेजमेंट संस्थान ने इस काम की जिम्मदारी ली। शुरू में काफी हद तक ठीक भी चला। किन्तु धीरे धीरे शायद मॉनिटरिंग सिस्टम या पुनर्मूल्यांकन में कहीं कमी रह गई कि अब ऑनलाइन परीक्षाएं भी लीक होने की गिरफ्त में आ चुकी हैं।

-कौशलेंद्र प्रपन्न

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