क्या हैं ग्रीन पटाखे? यह कहाँ मिलते हैं और इन्हें कैसे चलाते हैं?

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मिताली जैन । Nov 5 2018 1:57PM

दीवाली के उत्सव पर अगर पटाखे न जलाए जाएं तो दीवाली अधूरी ही लगती है। बच्चे तो दीवाली के करीब आते ही पटाखे जलाने लग जाते हैं लेकिन जिस तरह वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और हवा जहरीली होती जा रही है।

दीवाली के उत्सव पर अगर पटाखे न जलाए जाएं तो दीवाली अधूरी ही लगती है। बच्चे तो दीवाली के करीब आते ही पटाखे जलाने लग जाते हैं लेकिन जिस तरह वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और हवा जहरीली होती जा रही है, उसे देखते हुए पटाखे जलाना वास्तव में प्रकृति व मनुष्य दोनों के लिए घातक साबित होगा। ऐसे में दीवाली के उत्साह व उमंग को बरकरार रखने के लिए ग्रीन पटाखे जलाना एक अच्छा ऑप्शन साबित होगा। यहां तक सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कर दिया है कि दिल्ली और एनसीआर में केवल ग्रीन पटाखे ही बिकेंगे और लोग दीवाली पर इसका ही प्रयोग करेंगे। तो चलिए जानते हैं कि वास्तव में यह ग्रीन पटाखे क्या हैं और कैसे काम करते हैं−


भारत की देन

ग्रीन पटाखों का प्रयोग दुनिया के किसी भी देश में नहीं किया गया। ग्रीन पटाखों के कान्सेप्ट की खोज का श्रेय भारत को जाता है। इसे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान अर्थात् नीरी द्वारा इजाद किया गया है। इस तरह के पटाखें को पर्यावरण हितैषी माना गया है। ग्रीन पटाखे यूं तो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं, लेकिन इनके जलने पर प्रदूषण अपेक्षाकृत कम होता है। दरअसल, यह न सिर्फ जलने पर पानी के अणु पैदा करते हैं, जिसके कारण पटाखों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण नियंत्रित होता है। साथ ही यह धूल को सोखने की क्षमता रखते हैं। इसके अतिरिक्त इनसे निकलने वाली आवाज व धुआं भी काफी कम होता है। इतना ही नहीं, इन्हें जलाने पर हानिकारक गैसें भी कम निकलेंगी और प्रदूषण भी 50 प्रतिशत तक कम होगा। 

कई तरह के ग्रीन पटाखे

ग्रीन पटाखे भले ही देखने, जलने व आवाज में सामान्य पटाखों जैसे दिखाई देते हों लेकिन यह कम धुआं पैदा करते हैं, साथ ही इनसे निकलने वाली गैस भी अपेक्षाकृत कम हानिकारक होती हैं। हालांकि ग्रीन पटाखों से भी प्रदूषण होता है लेकिन यह परंपरागत पटाखों से कम होता है। इतना ही नहीं, ग्रीन पटाखे कई तरह के होते हैं जैसे−

वाटर रिलीजर क्रैकर

इस तरह के ग्रीन पटाखों की खासियत यह है कि जब इसे जलाया जाता है तो जलने के बाद इसमें पानी के कण पैदा होते हैं। पानी के कारण पटाखों से निकलने वाला प्रदूषण कम होता है। पटाखों के जलने के बाद पैदा होने वाले पानी के अणु में सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाते हैं। 

सफल क्रैकर

इस तरह के क्रैकर को बनाने में एल्युमीनियम की मात्रा का इस्तेमाल सामान्य पटाखों की अपेक्षा काफी कम होता है। यहां तक कि 50 से 60 फीसदी तक एल्युमीनियम कम इस्तेमाल होने पर इसे सेफ मिनिमल एल्युमीनियम कहा गया है। इस तरह प्रदूषण को नियंत्रित करने में यह पटाखे काफी कारगर साबित होंगे।

स्टार क्रैकर

अपने नाम की तरह ही इस तरह के पटाखे वास्तव में किसी स्टार से कम नहीं हैं। स्टार क्रैकर अर्थात् सेफ थर्माइट क्रैकर के निर्माण में ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसके कारण जब इन्हें जलाया जाता है तो उसमें से हानिकारक सल्फर और नाइट्रोजन गैस बेहद कम मात्रा में उत्पन्न होती है और वायु प्रदूषण भी करीबन पचास से साठ फीसद तक कम होता है।

अरोमा क्रैकर्स

यह एक बेहद अलग तरह के पटाखे हैं। नीरी द्वारा निर्मित इन पटाखों की खूबी यह है कि इन्हें हानिकारक गैसों का उत्पादन तो कम होता है ही, साथ ही इन्हें जलाने पर भीनी−भीनी खुशबू भी निकलेगी।

मुश्किल है डगर

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही दिल्ली−एनसीआर में ग्रीन पटाखे जलाने का आदेश दिया हो लेकिन फिलहाल ग्रीन पटाखों व दीवाली की यह डगर काफी कठिन है। सर्वप्रथम तो अभी तक यह ग्रीन क्रैकर्स मार्केट में अवेलेबल ही नहीं हैं और न ही पटाखा विक्रेताओं को इस बारे में ज्यादा जानकारी है। इसके अतिरिक्त बाजार में ग्रीन क्रैकर्स को उतारने से पहले इनकी खूबियों व खामियों का परीक्षण किया जाना अभी शेष है और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के परीक्षण व अप्रूवल के बाद ही इन्हें बाजार में उपलब्ध करवाया जा सकेगा। ऐसे में मार्केट में ग्रीन पटाखे उपलब्ध न होने के कारण इस साल दिल्ली−एनसीआर में ग्रीन पटाखों का प्रयोग किया जाए, इसके बारे में कह पाना थोड़ा मुश्किल है। हालांकि यहां अच्छी बात यह है कि कुछ कैमिकल पर प्रतिबंध लगने के बाद कई तरह के पटाखों का निर्माण प्रतिबंधित हो चुका है, ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।

-मिताली जैन

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