कोरोना से परेशान अमेरिकी जनता ने आखिर क्यों धूमधाम से मनाया जोजोबरा उत्सव

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दरअसल जोजोबरा फेस्टिवल में लोग नकारात्मक विचारों, गतिविधियों, एहसासों आदि को एक परचे में लिख कर आयोजकों के पास भिजवाते हैं और इस तरह से प्राप्त पर्चों को आयोजक जोजोबरा राक्षस के पुतले में भरकर जलाने के लिए तैयार कर लेते हैं।

उत्तरी अमेरिका के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य मेक्सिको सिटी में इसी माह की 9 सितंबर बुधवार को कोरोना की रोकथाम के लिए जोजोबरा जलाया गया। जोजोबरा आज वहां का परंपरागत समारोह हो गया है। कोरोना से परेशान दुनिया के लोगों की ओर से कोरोना की रोकथाम और 2020 के बाकी महीनों के अच्छी तरह से गुजरने की कामना के साथ लोगों ने कोरोना के कारण लागू प्रतिबंधों की बिना परवाह किए समारोह में पूरे उत्साह से हिस्सा लिया और दुनिया को कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना की। अब भले ही हमारे देश में ताली, घंटा घड़ियाल बजाने की बात हो या फिर दीपक जलाने को लेकर आलोचना करने वालों के लिए, यह सबक होना चाहिए कि आज सारी दुनिया के देश कोरोना की त्रासदी से जूझ रहे हैं और इससे मुक्ति पाने के लिए जो भी संभव उपाय हो वह अपनाने में परहेज नहीं कर रहे हैं।

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आखिर कोरोना ने जिस तरह से पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया और वह भी इतनी तेजी से कि दुनिया के देशों को संभलने तक का मौका नहीं मिला। सब कुछ थम कर रह गया। हालात हांलांकि सामान्य करने के प्रयास जारी हैं पर अमेरिका हो या ब्राजील हो या भारत या अन्य देश, कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। वैज्ञानिक इसके लिए वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं जिसमें अभी सफलता दूर दिख रही है। हालांकि हालात में सुधार इस तरह से माना जा सकता है कि संक्रमितों के ठीक होने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह जोजोबरा है क्या? दरअसल जोजोबरा समारोह ठीक उसी तरह से समझा जा सकता है जिस तरह से हमारे देश में विजया दशमी को मौहल्लों-मौहल्लों में रावण के पुतले को जलाया जाता है। बुराई के प्रतीक रावण दहन जिस धूम धाम से मनाया जाता है और जिस तरह से दिन-प्रतिदिन रावण के पुतले की साइज बढ़ती जा रही है उससे साफ हो जाता है कि बुराई का अंत इतना आसान नहीं है। मेक्सिको का जोजोबरा भी एक राक्षस का प्रतीक ही है। माना जाता है कि 1924 की आर्थिक मंदी जोजोबरा फेस्टिवल का शुरुआती साल है। दरअसल जोजोबरा फेस्टिवल में लोग नकारात्मक विचारों, गतिविधियों, एहसासों आदि को एक परचे में लिख कर आयोजकों के पास भिजवाते हैं और इस तरह से प्राप्त पर्चों को आयोजक जोजोबरा राक्षस के पुतले में भरकर जलाने के लिए तैयार कर लेते हैं। इस तरह से जोजोबरा उत्सव में नकारात्मकता, निराशा, गलत गतिविधियों व एहसासों की स्वीकार्यता के साथ उनको जलाने की मानसिकता के पीछे बुरे समय और बुराई से छुटकारा पाने की इच्छा है। दशहरा पर रावण दहन भी करीब-करीब इसी सोच के साथ किया जाता है। होलिका दहन भी बुराई को जलाने का प्रतीक ही है।

एक बात साफ हो जानी चाहिए कि दुनिया में कहीं भी कोई रह रहे हों, मनोविज्ञान लगभग सभी जगह एक-सा ही है। दुनिया के देश आज कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। इन मुश्किलात में लोग जो भी संभव उपाय है वह करने में संकोच नहीं कर रहे हैं। आखिर जीवन-मरण का सवाल है। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटाइन, मास्क का उपयोग, परंपरागत हाथ जोड़कर या सिर झुका कर अभिवादन की परंपरा जैसी बाते प्रचलन में आती जा रही हैं। एक समय था जब रसोई में जाने से पहले हाथ-पांव धोने, मेहमान के आने पर घर के द्वार पर पांव धुलाने, अस्पताल से आने पर नहाने, शौच पर जाकर आने पर मिट्टी से हाथ धोने और यहां तक कि लघु शंका की स्थिति में कितने कुल्ले करने हैं और शौच से आने के बाद कितने कुल्ले यह तक व्यवस्था में था। पर ज्यों ज्यों जमाने ने करवट ली इन्हें दकियानूसी विचार सिद्ध करते हुए सिरे से नकार दिया गया। हालांकि आज इनकी उपादेयता जगजाहिर होती जा रही है। सेनेटाइजर का उपयोग, बार-बार हाथ धोना आदि इसी और इंगित कर रहे हैं।

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देखने और समझने की बात यह है कि लगभग एक-सा मनोविज्ञान सारी दुनिया में काम करता है। केवल तरीके में बदलाव की बात हो सकती है। आखिर जोजोबरा उत्सव मनाने के पीछे भी नकारात्मकता को नकारना ही है। यह तो तब है जब कोरोना के कारण दुनिया भर में प्रतिबंध होने के बावजूद मेक्सिको में लोग जुटे, इस उत्सव में हिस्सा लिया और इस महामारी से दुनिया को निजात दिलाने की कामना की। यह बात साफ हो जानी चाहिए कि जहां तर्क काम नहीं करता वहां विश्वास काम करता है और सारी दुनिया तर्क से ज्यादा विश्वास पर टिकी है इसे नकारा नहीं जा सकता।

आखिर इस मनोविज्ञान को समझना होगा तो परंपरागत मानकों को सिरे से नकारने या दकियानूसी कह कर नकारने की आदत छोड़नी होगी। कोई भी प्रचलन है उसे कसौटी पर कसने में कोई बुराई नहीं है पर केवल आधुनिकता के नाम पर नकारना या मजाक बनाना किसी भी हालत में उचित नहीं माना जा सकता। दरअसल हमने बहुत कुछ खोया है आधुनिकता के नाम पर, अभी भी समय है जब हमें परंपरागत ज्ञान को समझना होगा तो दूसरी और शास्त्र के साथ लोक को तरजीह देनी होगी। बहुत कुछ लोक से संचालित होता है और इस लोक यानी कि लोकाचार या परंपरा को नकारा नहीं जा सकता। जोजोबरा उत्सव हमें बहुत कुछ समझने को विवश करता है। इसे हमें स्वीकारना होगा।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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