ड्राइवर को झपकी आ गई होगी कह कर अधिकारी बच निकले, क्या योगी कुछ करेंगे ?
दर्दनाक हादसे को ''ड्राइवर को झपकी आ गई'' यह कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारी अपना दामन बचाने की कोशिश में अभी से जुट गए हैं। अब देखना यह है कि योगी जी ''दूध का दूध और पानी का पानी'' कर पाते हैं या नहीं।
एक बार फिर यमुना एक्सप्रेस−वे 29 लोगों के लिए मौत का एक्सप्रेस−वे बन गया। 08 जुलाई की सुबह उत्तर प्रदेश रोडवेज की जनरथ बस सेवा यमुना एक्सप्रेस−वे पर हादसे का शिकार हो गई। हादसा जितना दुखद था उतना ही निंदनीय यह है कि हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारी इस दर्दनाक हादसे की जिम्मेदारी लेने या तय करने की बजाए इस पर लीपापोती करने में लगे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन हादसे को लेकर जिस तरह से बयानबाजी हो रही है उससे तो यही लगता है कि जांच को प्रभावित किया जा सकता है। इतने दर्दनाक हादसे को 'ड्राइवर को झपकी आ गई' यह कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारी अपना दामन बचाने की कोशिश में अभी से जुट गए हैं। अब देखना यह है कि योगी जी 'दूध का दूध और पानी का पानी' कर पाते हैं या नहीं।
यूपी रोडवेज की जनरथ बस लखनऊ से दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे जा रही थी, ड्राइवर को झपकी आने की वजह से बस बेकाबू हुई और यमुना एक्सप्रेस−वे पर रेलिंग तोड़ते हुए नाले में जा गिरी। बस में कुल 52 यात्री थे। 29 ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। शुरुआती जांच में सामने आया है कि बस में स्पीड गवर्नर (गति की निगरानी करने वाली डिवाइस) नहीं लगा हुआ था। जब जनरथ बस सेवा शुरु की गई थी तो सभी जनरथ बसों में स्पीड गवर्नर लगाए गए थे, लेकिन जनरथ सेवा की जो बस हादसे का शिकार हुई है, उसमें स्पीड गर्वनर नहीं लगा हुआ था। बस में ड्राइवर भी एक ही था, जबकि नियमानुसार 250 किलोमीटर से अधिक दूरी वाली बसों में दो ड्राइवर होना जरूरी हैं।
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जनरथ बसें सबसे ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त हो रही हैं। इनकी हालात जर्जर है। मंत्री से लेकर अधिकारी तक खामियों पर ध्यान नहीं देते हैं। अधिकारियों के कामकाम की कभी समीक्षा ही नहीं होती है। जब कोई हादसा होता है तब यह लोग लीपापोती करने लगते हैं।
यमुना एक्सप्रेस−वे हादसे दर हादसे के कारण मौत का एक्सप्रेस−वे बन गया है। इस पर आठ साल में नौ सौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि छह हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। साल दर साल हादसों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ रही है। इस साल अब तक 140 से ज्यादा की जान एक्सप्रेस−वे पर जा चुकी है। औसत देखें तो 72 घंटे भी ऐसे नहीं गुजर रहे जब कोई हादसा नहीं हो रहा है। रात में स्थिति और खराब है। सूरज निकलने से ठीक पहले जब नींद का जोर सबसे ज्यादा होता है, उसी समय हादसे भी ज्यादा हो रहे हैं।
आगरा डेवलपमेंट फाउंडेशन के अध्यक्ष केसी जैन ने 2015 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर हादसों को रोकने के लिए उपाय करने के लिए कहा था। तब हाईकोर्ट के आदेश पर उच्च स्तरीय समिति गठित की गई। डेथ ऑडिट कराया गया। इसमें हादसों के कारण सामने आए। लेकिन हादसों की संख्या कम नहीं हुई। पिछले दो साल में यह बात भी सामने आई है कि सबसे ज्यादा हादसे तड़के तीन से पांच बजे के बीच हो रहे हैं। इस समय नींद का जोर सबसे ज्यादा होता है।
आगरा क्षेत्र में झरना नाला, खंदौली टोल प्लाजा से पहले ज्यादा हादसे हो रहे हैं। मथुरा क्षेत्र में बलदेव, मांट, नौहझील और सुरीर में हादसों की संख्या ज्यादा है। नोएडा की तरफ आने पर जेवर में हादसे ज्यादा हो रहे हैं। 165 किमी. लंबा यह एक्सप्रेस−वे अगस्त, 2012 में चालू किया गया था। इसका फायदा यह हुआ कि आगरा और दिल्ली के बीच की दूरी कम हो गई। समय कम लगने लगा है लेकिन हादसे भी उतने ही अधिक हो रहे हैं।
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यमुना एक्सप्रेस−वे पर रफ्तार की सीमा तय है। छोटे−बड़े वाहनों के लिए अलग−अलग सीमा है लेकिन लोग रफ्तार की सुई पर ध्यान नहीं देते। रात के समय तो रफ्तार और ज्यादा रहती है। अभी कहा गया था कि तीन घंटे से कम में कोई यमुना एक्सप्रेस−वे वे क्रास करेगा तो उस पर जुर्माना लगेगा, लेकिन यह काम भी अभी शुरू नहीं हो पाया है।
यमुना एक्सप्रेस−वे पर 08 जुलाई की भोर में हुए भीषण बस हादसे में 29 लोगों की मौत अत्यंत दुखदायी है। हर दुर्घटना को राज्य सरकार दुर्भाग्यपूर्ण बताती है, उस पर दुख व्यक्त करती है, मुआवजे का ऐलान भी करती है लेकिन एक्सीडेंट रोकने के गंभीर उपाय अब तक नहीं किए जा सके हैं। इस हादसे पर केंद्र सरकार ने साफ किया है कि इसके लिए वह जिम्मेवार नहीं है। केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि इस हाईवे का निर्माण यूपी सरकार ने करवाया है और इसका नियंत्रण नोएडा प्राधिकरण के पास है। जो भी हो, सवाल यह है कि इस तेज रफ्तार सड़क पर लोगों की जिंदगी कब तक इतनी सस्ती बनी रहेगी।
सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश में ही नहीं, पूरे देश में सड़क परिवहन भारी अराजकता का शिकार है। कुछ राज्यों में तो स्थिति बेहद खराब है। वहां नियम−कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यमुना एक्सप्रेस−वे पर हादसा इसलिए हुआ क्योंकि बस को रवाना करते समय जरूरी कदम नहीं उठाए गए थे। नियम है कि दिन हो या रात, एक ड्राइवर 400 किमी. ही बस चलाएगा। इतनी दूरी पूरी होते ही बस दूसरे ड्राइवर को सौंप दी जाएगी। लेकिन लखनऊ से आनंद विहार (दिल्ली) की दूरी 500 किमी से ज्यादा है, फिर भी दुर्घटनाग्रस्त बस में एक ही ड्राइवर बताया था।
दरअसल, रोडवेज के पास ड्राइवरों की कमी है। मांग के अनुपात में बसें भी कम हैं। इसलिए अनुबंधित बसें चलाई गई हैं। इनके ड्राइवर खराब शर्तों पर काम करने को तैयार रहते हैं। असली समस्या राज्य सड़क परिवहन निगम के दायरे से बाहर चलने वाली बसों की है, जिनमें तय संख्या से ज्यादा सवारियां बिठाई जाती हैं और इनके ड्राइवर भी प्रशिक्षित नहीं होते। इन्हें रोडवेज की बसों के रंग में रंगवा दिया जाता है लेकिन न तो इनके रूट का कोई ठिकाना है, न ही ये कोई नियम−कायदा मानती हैं। देश में 30 प्रतिशत ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं। परिवहन क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है लिहाजा बसों का ढंग से मेनटेनेंस भी नहीं होता। इनमें बैठने वालों की जिंदगी दांव पर लगी होती है। देश भर में बसों के रख−रखाव, उनके परिचालन, ड्राइवरों की योग्यता और अन्य मामलों में एक−समान मानक लागू करने की जरूरत है तभी देश के नागरिक एक राज्य से दूसरे राज्य में निश्चिंत होकर यात्रा कर सकेंगे। जरूरी है कि केन्द्र सरकार पूरे देश के लिए सड़क सुरक्षा के मानक न केवल तय करें बल्कि इसका पालन भी सुनिश्चित करें। सड़क हादसा होता है तो इसके लिए जिम्मेदार लोंगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करके जेल भेजा जाना चाहिए।
यमुना एक्सप्रेस−वे पर हादसे
वर्ष दुर्घटनाएं मृतक
2012 294 33
2013 898 118
2014 772 124
2015 919 143
2016 1193 128
2017 763 111
2018 800 110
2019 (8 जुलाई तक) 347 140
-अजय कुमार
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