विवाह के प्रति युवाओं में आखिर क्यों घट रहा है आत्मविश्वास

Why the youth is losing confidence in marriage?
संतोष उत्सुक । Jun 20 2018 5:36PM

खुशी और उल्लास से भरा मेज़बान विवाह के आयोजन को यादगार बनाने के लिए अपनी हैसियत से ज़्यादा ही करता है। वर, वधू व अभिभावक जानते हैं कि विवाह की दहलीज़ तक पहुंचने में बहुत लोचे हैं।

बाज़ार और पैसे की मुलाक़ात ने विवाह को व्यवसाय बना दिया है। खुशी और उल्लास से भरा मेज़बान विवाह के आयोजन को यादगार बनाने के लिए अपनी हैसियत से ज़्यादा ही करता है। वर, वधू व अभिभावक जानते हैं कि विवाह की दहलीज़ तक पहुंचने में बहुत लोचे हैं। व्यावसायिक स्तर पर आत्मविश्वास आते ही उपयुक्त जीवनसाथी की खोज शुरू हो जाती है, हालांकि अविश्वास के माहौल में अनेक शंकाएं भी घेरती हैं। सहपाठियों, सहकर्मियों में एक स्तर तक आपसी समझ पैदा होने के बाद जीवन भर साथ रहने के निर्णय लिए जा रहे हैं। इनसे अंतर्जातीय विवाहों को भी बल मिल रहा है। लिव इन का प्रचलन भी है जो युवाओं को मज़ेदार लगता है, मगर यह विवाह का विकल्प नहीं बन सकता। जो युवा अपनी जॉब प्रोफ़ाइल के कारण अत्याधिक अस्तव्यस्त हैं, उम्र बढ़ रही है, जीवनसाथी चुनने का ज़िम्मा अभिभावकों को सौंप रहे हैं। लगता है इस मामले में व्यवसायिक विवशताएं उन्हें ऐसा करने को प्रेरित कर रही हैं ठीक ऐसे जैसे विदेशों में युवा अब अपने अभिभावकों के साथ रहना चाहते हैं।

विवाह के मामले में अभिभावकों की भूमिका व सोच अब पहले जैसी नहीं रही। जो युवा विदेश में हैं, रिलेशनशिप में नहीं हैं उनके लिए विवाह के रास्ते और पेचीदा हैं। पंजाब के वातावरण में अनेक उलझे वैवाहिक किस्सों का असर सब तरफ फैल रहा है। प्रणय ऐसा युवक है जो चार साल से विदेश में है। इत्फ़ाक से उसके संपर्क में कोई ऐसी युवती नहीं है जिससे विवाह हो सके। उसके अभिभावक भारत में अपनी बहू ढूँढने की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। कई सालों से प्रमुख अखबारों, वैवाहिक साइट्स व रिश्तेदारों के माध्यम से कोशिश कर रहे हैं। एक लड़की दिल्ली में कार्यरत थी प्रणय को पसंद आई। कई महीने उनकी बातचीत होती रही, भारत आने पर मिलना तय हुआ। उम्मीद रही, मिलना सुखद रहेगा। प्रणय दिल्ली गया, उसको पता था कि अमुक लड़की से मिलना कितना खास और महत्वपूर्ण है क्यूंकि कितने महीनों से इस लम्हे का इंतज़ार हो रहा है। प्रणय दिल्ली में रात को अपने एक दोस्त के यहां ठहरता है। उसी दौरान लड़की का फोन आता है कि वह अपनी बुआ के साथ आगरा जा रही है। उसके इस अप्रत्याशित व्यव्हार से प्रणय स्तब्ध रह जाता है। मानव संसाधन में कई साल से कार्यरत व्यक्ति का ऐसा व्यवहार अनापेक्षित लगा, मगर।

   

अभिभावकों ने फिर वैवाहिक साइट्स के माध्यम से प्रयास किया। काफी प्रोफ़ाइल देखने के बाद एक लड़की से बात की। कई महीने तक संवाद करने के बाद लड़की ने कहा मैं तुम्हारे साथ लंबी लगूंगी। इतने महीने के बाद उसे अपने कद का ख़याल आया। बात ख़त्म। लड़की की मां का फोन आया, प्रणय के पिता ने कहा आप की बेटी ने ही बात बंद की। मां ने लड़की को कुछ समझाया तो उसने पुनः बात शुरू कर दी। लड़की ने कहा कि आज तक जितने भी लड़कों से बात की, 'तुम सबसे उपयुक्त हो और मेरे पैरेंट्स तुमसे मिलने को तैयार हैं’। लड़के को भी लड़की अच्छी लगने लगी थी। प्रणय की बहन भी लड़की से मिली जो उसे उपयुक्त लगी। कुछ शर्तें लड़की ने रखीं मगर विवाह जैसे बड़े निश्चय के सामने बहुत छोटी रही। इंडिया आने से पहले प्रणय ने उसे सूचित किया। माना जा रहा था, मुलाक़ात जल्दी होगी व बात बन सकती है। लड़के ने व्हट्सएप किया, जवाब आया सेमिनार में हूं। कई बार याद दिलाया मगर कई दिन तक सेमिनार ख़त्म नहीं हुआ। मुलाक़ात नहीं हुई। पहले ही इन्कार किया जा सकता था और जब बात आगे बढ़ रही थी तो मिलना तो चाहिए था। यह बात लड़कों पर भी लागू होती है।

यह दोनों संदर्भ स्पष्ट इशारा करते हैं आज के युवाओं में घटते वैवाहिक आत्मविश्वास की तरफ। जो खुद पर विश्वास नहीं करते, दूसरों पर कैसे करेंगे। बहुत विवाह सौदों की तरह होते हैं मगर सही मानो तो विवाह की बात शर्तों से नहीं बलिक सांमजस्य से आरम्भ होती है। नहीं कहा जाता कि हम यह नहीं करेंगे बलिक कहा जाता है कि हम यह करेंगे। ज़िंदगी चाहे व्यवसाय हो चुकी हो मगर विवाह आज भी समर्पण, सहभागिता, सद्भावना के आधार पर सफल होते हैं। यह बेहद दुखद है कि काफी युवतियां धीरे धीरे भूल रही हैं कि खाना बनाना एक अनूठी कला है। एक पुरानी कही आज भी सही है कि ‘दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है।' ठीक है कि कामकाजी महिलाएं घर का सारा काम नहीं कर पातीं मगर विवाह के रास्ते में इसे शर्त बनाकर बातचीत की मेज़ पर रखना अस्वादिष्ट है। विवाह के रास्ते में किसी भी पक्ष की हैसियत, रुतबा, आदतें जैसी चीज़ें आती हैं तो वे इस रास्ते का मील पत्थर नहीं सिर्फ पत्थर बनती हैं। विवाह के रास्ते पर जो भी शंकाएं उभरती हैं उनका समाधान बातचीत, मुलाक़ात, समझदारी, ईमानदार व पारदर्शी व्यवहार से ही संभव है। यहां यह याद रखना लाज़मी है कि सफल विवाह तो पति पत्नी द्वारा बाद में रचा जाता है। बढ़ते अविश्वास के मौसम में सही, सकारात्मक व व्यावहारिक सोच ही विवाह के रास्ते पर हरियाली बिछा सकती है।

-संतोष उत्सुक

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