शशिकला ने इसलिए दी है अपने राजनीतिक हितों की कुर्बानी...पर पिक्चर अभी बाकी है

VK Sasikala

शशिकला का राजनीति से दूर रहने वाला बयान इसलिए चौंका गया क्योंकि बेंगलुरू जेल से रिहा होने के बाद शशिकला ने पिछले महीने ही सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा की थी। जेल से छूटने के बाद शशिकला ने चेन्नई में जबरदस्त रोड शो भी किया था।

चुनावों के दौरान नेता या तो दल बदल कर या पुराना गठबंधन तोड़कर नया गठबंधन बनाकर राजनीतिक सनसनी फैला देते हैं या फिर चुनावों से पहले कोई बड़ी हस्ती राजनीति में एंट्री मार लेती है लेकिन तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले सबको चौंकाते हुए वीके शशिकला ने राजनीति से दूर रहने का ऐलान कर सबको चौंका दिया है। अन्नाद्रमुक की निष्कासित नेता और तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की दशकों तक करीब सहयोगी रहीं वीके शशिकला ने घोषणा की है कि ‘वह राजनीति से दूर रहेंगी’ लेकिन जयललिता के ‘स्वर्णयुगीन’ शासन के लिए प्रार्थना करेंगी। एक अप्रत्याशित और आकस्मिक ऐलान के तहत उन्होंने ‘‘अम्मा के समर्थकों’’ से भाई-बहन की तरह काम करने की अपील की और यह भी गुजारिश की कि वे यह सुनिश्चित करें कि जयललिता का ‘स्वर्णयुगीन शासन जारी रहे।’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ''मैं राजनीति से दूर रहूंगी और अपनी बहन पुराचि थलावी (जयलिलता), जिन्हें मैं देवीतुल्य मानती हूं, और ईश्वर से अम्मा के स्वर्णयुगीन शासन की स्थापना के लिए प्रार्थना करती रहूंगी।’’ उन्होंने जयललिता के सच्चे समर्थकों से छह अप्रैल के चुनाव में एकजुट होकर काम करने और साझे दुश्मन को सत्ता में आने से रोकने की अपील की।

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शशिकला का राजनीति से दूर रहने वाला बयान इसलिए चौंका गया क्योंकि बेंगलुरू जेल से रिहा होने के बाद शशिकला ने पिछले महीने ही सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा की थी। जेल से छूटने के बाद शशिकला ने चेन्नई में जबरदस्त रोड शो भी किया था जिसे उनके शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा गया था। ऐसे में तमाम तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं कि अचानक से ऐसा क्या हुआ कि शशिकला राजनीति से दूर हो गयीं। वह शशिकला जोकि जयललिता के जीवित रहते एक तरह से पार्टी और राज्य के शासन संबंधी निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं, वह शशिकला जिन्होंने जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री बनने का पूरा प्रयास किया लेकिन उन्हें अचानक जेल जाना पड़ गया, आखिर वह सजा पूरी होने के बाद क्यों अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने से पीछे हट गयीं? जेल से छूटने के बाद शशिकला ने अन्नाद्रमुक में वापसी के भरसक प्रयास किये लेकिन जब दाल नहीं गली तो ऐसा लग रहा था कि वह अपना मोर्चा बनाकर अन्नाद्रमुक को नुकसान पहुँचा सकती हैं। लेकिन शशिकला ने ऐसा नहीं किया।

अटकलें हैं कि शशिकला के इस अप्रत्याशित कदम की पटकथा भाजपा ने लिखी है। पहले तो भाजपा ने प्रयास किये कि शशिकला की अन्नाद्रमुक में वापसी हो जाये लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका तो शशिकला को राजनीति से दूर रहने के लिए मना लिया गया क्योंकि शशिकला अगर अपना मोर्चा खड़ा करतीं तो द्रमुक को फायदा हो सकता था। बताया जा रहा है कि भाजपा का पूरा प्रयास है कि तमिलनाडु में एनडीए का शासन बरकरार रहे। यदि द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन तमिलनाडु में सरकार बनाने में सफल रहता है तो विपक्षी खेमा मजबूत होगा साथ ही दक्षिण में भगवा खेमे की धाक कम पड़ेगी। भाजपा की नजर इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी है। यदि एक बार फिर अन्नाद्रमुक सरकार बने तो लोकसभा चुनावों के दौरान तमिलनाडु में एनडीए का प्रदर्शन सुधर सकता है। उल्लेखनीय है कि पिछले चुनावों में एनडीए का यहां नुकसान उठाना पड़ा था। फिलहाल तो शशिकला के ऐलान के बाद अन्नाद्रमुक काफी मजबूत हो गयी है क्योंकि जो पार्टी बगावत रोकने में सफल हो जाये उसका पलड़ा भारी हो ही जाता है। मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम के बीच विवाद सुलझाने और दोनों को साथ मिलकर काम करने के लिए भी भाजपा ने ही मनाया था। देखा जाये तो अन्नाद्रमुक में एकता कायम रखने के पीछे भाजपा का ही सबसे बड़ा हाथ है।

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बहरहाल, शशिकला ने अपने इस कदम से तमिलनाडु की जनता को यह भी संदेश दिया है कि भले उनके भतीजे ने अन्नाद्रमुक से निकाले जाने के बाद अपनी अलग पार्टी बना ली हो लेकिन अम्मा की भक्त शशिकला ने अन्नाद्रमुक से निकाले जाने के बाद कोई नई पार्टी नहीं बनायी और अम्मा की सत्ता की वापसी के लिए अपने राजनीतिक हितों की कुर्बानी दे दी। अब अगर तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक का वर्तमान नेतृत्व सत्ता में वापस नहीं लौट सका तो चुनावों के बाद पार्टी की कमान शशिकला को सौंपने की माँग भी हो सकती है। इसलिए शशिकला की इस चाल का पूरा परिणाम सामने आ गया है यह नहीं कहा जा सकता।

-नीरज कुमार दुबे

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