अमिताभ बच्चन एक ऐसे अभिनेता हैं जो ''भगवान'' बन गया!

Amitabh Bachchan is an actor who has become ''God''!
मनोज झा । Oct 16 2017 12:43PM

मेरी समझ से अमिताभ को ऊंचा उठाने में उनके व्यक्तित्व का बड़ा रोल रहा है। निजी जिंदगी में अमिताभ को लोग भले ही अलग-अलग तराजू में तौलें...लेकिन रील लाइफ में इस सितारे का कोई जोड़ नहीं।

11 अक्टूबर को जब सदी के महानायक अमिताभ बच्चन अपना 75वां जन्मदिन मना रहे थे...तो उनके करोड़ों चाहने वालों की तरह मैं भी काफी उत्साहित था। बचपन में उनकी फिल्में देख उनके साथ मेरा नाता इस कदर जुड़ा कि वो मेरे लिए भगवान जैसे हो गए। मेरा बचपन बिहार के एक छोटे से शहर दरभंगा में बीता...मुझे याद है मैं उस वक्त क्लास पांचवीं में था जब मैंने पहली बार उन्हें पर्दे पर देखा....मेरे दिलो-दिमाग पर अमिताभ की ऐसी गहरी छाप पड़ी कि मैं फिर आजतक उससे उबर नहीं पाया। अमिताभ को लेकर मेरी दीवानगी इस कदर थी कि मैंने एक बार उनकी फ्लॉप फिल्म 'महान' देखने के लिए परीक्षा को भी ताक पर रख दिया।

बात 1983 की है ...मैं जिला स्कूल में कक्षा 6ठी का छात्र था और मेरी छमाही की परीक्षा चल रही थी...उस दिन मेरा हिंदी का पेपर था...दूसरी पाली में यानि 2 से 5 बजे तक...मुझे याद है उन दिनों रविवार को छोड़ रोजाना तीन शो चला करता था...3 से 6, 6 से 9 और 9 से 12...हमें महीने में दो रविवार को पापा की तरफ से फिल्में देखने की छूट थी....लेकिन मेरे लिए परेशानी तब हो जाती थी जब अमिताभ की एक साथ दो से ज्यादा फिल्में थियेटर में चल रही होती थीं....पहले महान का किस्सा पूरा कर लूं....मेरा बड़ा भाई मुझसे तीन साल बड़ा था और उस दिन उसकी परीक्षा पहली पाली यानि 10 से 1 बजे में खत्म हो गई थी। परीक्षा से एक रात पहले उसने मुझसे कहा कि वो कल 3 से 6 में पूनम सिनेमा में 'महान' फिल्म देखने जाएगा...मैंने कहा कि मेरी तो हिंदी की परीक्षा है उसने कहा फिर देख लो....अमिताभ का नशा मेरे दिमाग पर इस कदर छाया था कि मैंने झट से बोल दिया चलो मैं एक घंटे के अंदर कॉपी लिखकर सिनेमा हॉल पहुंच जाऊंगा। मैंने तय कर लिया कि मैं 50 से 55 मिनट में करीब 40 नंबर का प्रश्न पत्र हल कर कुछ बहाना बनाकर स्कूल से बाहर निकल जाऊंगा। मैंने ठीक वैसा ही किया झटपट 5 प्रश्न का उत्तर लिख टीचर को ये कहकर कॉपी सौंप बाहर निकल आया कि मेरे पेट में दर्द है। मैं 5 मिनट में भागकर थियेटर पहुंच गया जहां मेरा भाई पहले से टिकट लेकर तैयार खड़ा था। खैर फिल्म तो हमने देख ली...लेकिन मन में डर इस बात का था कि कहीं पोल ना खुल जाए। पिताजी सरकारी मुलाजिम थे...लेकिन वो हम दोनों भाइयों की पढ़ाई में गहरी दिलचस्पी लेते थे। उन दिनों रिपोर्ट कार्ड का चलन नहीं था...और परिजन खुद स्कूल जाकर रिजल्ट के बारे में पता करते थे...मेरे पिताजी जब स्कूल पहुंचे तो उन्हें मालूम पड़ा कि मुझे हिंदी में सिर्फ 30 अंक मिले हैं और मैं मुश्किल से पास होने में कामयाब हुआ हूं..घर आने के बाद जब उन्होंने मेरी खबर ली तो मुझे हारकर सच बताना ही पड़ा।

26 जुलाई 1982 ये वही दिन था जब मेरा हीरो कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान बुरी तरह घायल हुआ था....उन दिनों पूरे शहर में गिने-चुने लोगों के घरों में ही ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करता था...मेरे घर की बात तो छोड़िए मेरे मोहल्ले में किसी के घर टीवी नहीं था...रेडियो पर जैसे ही ये खबर आई कि अमिताभ घायल होने के बाद जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं ...मेरा मासूम मन बेचैन हो उठा...अब क्या होगा...क्या मेरा भगवान मर जाएगा? क्या मैं उसे पर्दे पर फिर कभी नहीं देख पाऊंगा...सवाल अनगिनत थे लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था...मुझे याद है अमिताभ के घायल होने की खबर सुनने के बाद मैंने खाना खाने से भी मना कर दिया...लेकिन घरवालों की डांट सुनने के बाद मुझे अपनी जिद छोड़नी पड़ी।

अमिताभ को लेकर मेरे बचपन के कई रोचक किस्से हैं...लेकिन अब मैं अपनी बात पर आना चाहता हूं...क्या सचमुच कोई रील लाइफ का सितारा रीयल लाइफ में किसी के लिए भगवान बन सकता है? आखिर क्या खास था इस अभिनेता में जो उसे करोड़ों दिलों का चहेता बना दिया...दीवार का निभाया विजय का वो किरदार, या फिर हेलन के सामने रिवॉल्वर में गोली भरता वो डॉन...या नमक हलाल का निभाया वो हरियाणवी किरदार....मेरी समझ में अमिताभ अगर जनमानस के दिलों में राज करने में कामयाब रहे तो उसके पीछे कई कारण रहे। मैं किसी फिल्म समीक्षक की तरह उनकी एक्टिंग या फिर उनके काम को लेकर चर्चा नहीं करना चाहता...मेरी समझ से अमिताभ को ऊंचा उठाने में उनके व्यक्तित्व का बड़ा रोल रहा है। निजी जिंदगी में अमिताभ को लोग भले ही अलग-अलग तराजू में तौलें...लेकिन रील लाइफ में इस सितारे का कोई जोड़ नहीं। 

बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक सितारे हुए हैं लेकिन लोकप्रियता में अमिताभ के आगे कोई नहीं टिक पाएगा...नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी जैसे अभिनेता अभिनय में अमिताभ से कहीं कम नहीं...लेकिन ये लोग एक खास वर्ग तक ही अपनी पहचान बना सके...लेकिन अमिताभ को मजूदर भी पसंद करता है और रिक्शा वाला भी...एक लेखक तभी बेहतर लेखक साबित होता है जब वो सरल भाषा के जरिए अपनी बात लोगों तक पहुंचाए....यही बात कलाकार पर भी लागू होती है...अगर उसकी एक्टिंग सहज है तो फिर उसे हर कोई पसंद करेगा। 

मैं अक्सर अपनी पत्नी से कहता हूं...कि हिंदुस्तान में दो शख्सियत फिर कभी पैदा नहीं होंगी...एक अमिताभ बच्चन दूसरा सचिन तेंदुलकर.....अमिताभ भले ही 75 साल के हो गए...लेकिन उनकी लोकप्रियता को कोई हिला नहीं सकता...ठीक उसी तरह विराट कोहली या फिर कोई और भले ही रिकॉर्ड के मामले में सचिन से ऊपर निकल जाएं...लेकिन कोई दूसरा सचिन नहीं हो सकता। 75 बसंत पार कर चुके अमिताभ आज भी बॉलीवुड के व्यस्तम कलाकारों में से एक हैं....सदी के महानायक का दर्जा हासिल कर लेने के बाद भी उनके काम करने की भूख जस की तस है। तो मेरे हीरो, लगे रहो...।

मनोज झा

(लेखक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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