जंपिंग जैक जितेंद्र की फिल्मों में आने की कहानी

अनु गुप्ता । Apr 7 2017 4:58PM

जीतू जी फिल्मों में कैसे आये इसके पीछे भी एक किस्सा है। खुद जितेंद्र बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही फिल्में देखने का काफी शौक था जिसके चलते उन्हें फिल्मों में काम करने में काफी रुचि रहती थी।

बॉलीवुड के डांसिंग स्टार और जंपिंग जैक कहलाये जाने वाले अभिनेता जितेंद्र के जन्मदिन पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनके फिल्मी कॅरियर और निजी जीवन के बारे में। जितेंद्र एक ऐसे अभिनेता हैं जो अपनी मेहनत और लगन के बदले फर्श से अर्श तक पहुंचे। कहने का मतलब है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे बहुत ही कम कलाकार हैं जो एक जूनियर आर्टिस्ट या फिर जीतू जी के केस में कह सकते हैं एक एक्स्ट्रा से इतने बड़े स्टार बने और अपने इतने लंबे कैरियर में दर्शकों की वाहवाही और प्यार बटोरा।

जितेंद्र का जन्म 7 अप्रैल 1942 को अमृतसर पंजाब में हुआ। जितेंद्र को जन्म के समय रवि कपूर नाम दिया गया। बॉलीवुड में सब इन्हें प्यार और आदर से जीतू जी के नाम से बुलाते हैं। कुछ समय अमृतसर में रहने के बाद इनका परिवार मुंबई आ गया था जो गिरगांव की एक चॉल में रहने लगा। इनके पिता का नाम अमरनाथ कपूर था जिनका काम आर्टिफिशल ज्वेलरी बनाने और उसे फिल्मों के सेट पर सप्लाई करने का था। इनकी माता का नाम कृष्णा कपूर था। जीतू जी की प्रारंभिक पढ़ाई सेंट सेबेस्टियन गवर्नमेंट हाई स्कूल से हुई और आगे की पढ़ाई के सी कॉलेज से जहां इनकी दोस्ती हुई राजेश खन्ना से हुई जो आगे चलकर भी बरकरार रही।

जीतू जी फिल्मों में कैसे आये इसके पीछे भी एक किस्सा है। खुद जितेंद्र बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही फिल्में देखने का काफी शौक था जिसके चलते उन्हें फिल्मों में काम करने में काफी रुचि रहती थी और जब उनके पिता ने उस ज़माने के मशहूर निर्माता वी शांताराम के यहां ज्वेलरी भेजना शुरू किया तो जितेंद्र ने अपने पिता से कहा कि वे शांताराम से उनके लिए बात करें। उनके पिता जी ने जब शांताराम से अपने बेटे की सिफारिश की तो उन्होंने कहा अभी तो कोई रोल नहीं है यहां तक कि उन्होंने साफ साफ मना भी कर दिया लेकिन एक दिन अचानक उन्होंने जितेंद्र के पिता को कहा कि अपने बेटे को भेजो एक प्रिंस का किरदार है। बस फिर क्या था जितेंद्र खुश हो गए और पहुंच गए सेट पर लेकिन जब उन्होंने देखा कि वहाँ तो पहले से ही कई लोग प्रिंस के गेट अप में बैठे हैं तब जाके बात उनके समझ आई कि एक्स्ट्रा की तरह उन्हें एक छोटा सा किरदार निभाना है। बस फिर क्या था जितेंद्र इसी तरह पांच साल तक छोटे मोटे किरदार निभाते रहे और तो और जब वी शांताराम ने उन्हें एक अभिनेत्री का बॉडी डबल निभाने के लिए कहा तो जीतू जी ने किसी तरह की ना नुकर करते हुए वो भी किया। उन्हें जो भी रोल मिला उन्होंने उसे मेहनत और शिद्दत से किया। 

और फिर एक दिन वो भी आया जब वी शांताराम ने ही उन्हें 1964 में आई उनकी फिल्म गीत गाया पत्थरों ने में हीरो का किरदार दिया और इस तरह शुरू हुआ रवि कपूर उर्फ जितेंद्र का फ़िल्मी कैरियर। गौरतलब है कि वी शांताराम ने ही उनका नाम जितेंद्र रखा था। ये फ़िल्म काफी सफल रही। उस समय कहा जाता था कि वी शांताराम की फिल्मों में काम करने वाले कलाकार व्यावसायिक फिल्मों में कुछ खास नहीं कर पाते लेकिन जितेंद्र ने इस भ्रम को तोड़ा और ना सिर्फ कई व्यावसायिक फिल्में कीं बल्कि उन सभी फिल्मों से एक सफल अभिनेता भी बनकर उभरे।

गीत गाया पत्थरों ने के बाद जीतू जी की बड़ी हिट फिल्म रही फ़र्ज़ जिसमें उनकी एक्टिंग के साथ उनके डांस की बहुत तारीफ हुई। इस फ़िल्म के बाद से ही जितेंद्र को अपनी अनूठी नृत्य शैली के चलते जंपिंग जैक कहा जाने लगा। डांस में एक गज़ब की एनर्जी और जोश था। फ़र्ज़ के बाद इन्होंने हमजोली और कारवां जैसी सुपरहिट फिल्में दीं। और फिर जीने की राह, दो भाई, जैसे को तैसा और धरती कहे पुकार के जैसी फिल्मों में अलग अलग तरह के किरदार निभाए।

फिल्मों में एक जैसे रोल करने के बाद खुद जितेंद्र भी उकता गए थे और राजेश खन्ना की आनंद देखने के बाद वे इस फ़िल्म के लेखक मतलब गुलज़ार से काफी प्रभावित हुए और जितेंद्र ने गुलज़ार के साथ मिलकर परिचय, खुशबू और किनारा जैसी फिल्में बनाईं जिनमें जितेंद्र का एक अलग ही रूप दर्शकों के सामने आया। फिर वो समय भी आया जब जितेंद्र ने एक फ़िल्म बनाई जो बॉक्स ऑफिस पर असफल रही और घाटे को पूरा करने के लिए जितेंद्र ने धड़ाधड़ एक के बाद एक कई साउथ की फिल्में कीं। और साथ ही एक बिल्डर का भी बिज़नेस शुरू किया। जितेंद्र ने अपने फिल्मी कैरियर में मुख्य अभिनेता के साथ साथ मल्टीस्टार फिल्मों में भी अभिनय किया। पर्दे पर उनकी रेखा, श्रीदेवी और जया प्रदा के साथ खूब जमी। इन तीनों ही अभिनेत्रियों के साथ जितेंद्र ने यादगार फिल्में दीं।

जितेंद्र ने अपने फ़िल्मी कैरियर में 250 से अधिक फिल्में की हैं। उनकी कुछ प्रमुख फिल्में इस प्रकार हैं मेरे हुजूर, खिलौना, हमजोली, कारवां, जैसे को तैसा, परिचय, खुशबू, किनारा, नागिन, धरमवीर, कर्मयोगी, जानी दुश्मन, द बर्निंग ट्रेन, धर्मकांटा, जुदाई, मांग भरो सजना, एक ही भूल, सौतन की बेटी, मवाली, जस्टिस चौधरी, हिम्मत वाला, तोहफा, धर्माधिकारी, आशा, खुदगर्ज, आसमान से ऊंचा, मां आदि।

नब्बे के दशक के बाद जितेंद्र ने फिल्मों से किनारा कर लिया और उसके बाद वो टेलीविज़न पर अपनी बेटी के सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहु थी में एक रोल में दिखे और झलक दिखला जा के जज के रूप में भी।

अब रुख करते हैं जितेंद्र की निजी जिंदगी की ओर। जितेंद्र और हेमा मालिनी का अफेयर अपने समय में काफी प्रसिद्ध रहा यहां तक कि इन दोनों की शादी भी होते होते राह गई थी। खैर 1974 में जितेंद्र ने रमेश सिप्पी की बहन शोभा सिप्पी से विवाह किया जिससे उनके दो बच्चे बेटी एकता और बेटा तुषार हुआ। जहां एक और एकता सीरियल और फिल्मों की एक सफल निर्माता हैं तो वहीं दूसरी और तुषार बॉलीवुड में अपनी अदाकारी के जलवे बिखेर रहे हैं।

उपलब्धियां

2003 में जितेंद्र को हिंदी सिनेमा में अपने योगदान के लिए फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।

2007 में इन्हें दादासाहेब फाल्के अकेडमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2014 में जितेंद्र को हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अनु गुप्ता

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