बॉलीवुड में शो मैन का दर्जा घई साहब को यूँ ही नहीं मिला
90 के दशक में उन्हें अपनी फिल्मों के बेहतर संगीत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त होने के कारण हिंदी सिनेमा का शो मैन कहा जाने लगा। उनसे पहले राज कपूर को ये दर्जा हासिल था।
भारतीय सिनेमा के शोमैन और भारत ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रख्यात निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक सुभाष घई का आज जन्मदिन है। एक नज़र डालते हैं उनके अब तक के जीवन और फ़िल्मी कॅरियर पर। सुभाष घई का जन्म 24 जनवरी 1945 को नागपुर मुम्बई में हुआ था। एक्टर बनने का सपना लिए सुभाष घई ने फिल्मों में अपनी क़िस्मत आजमाई लेकिन क़िस्मत उन्हें कहानी लेखन और डायरेक्शन की और ले गई।
उनके पिता एक जाने माने डेंटिस्ट थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली से हुई और रोहतक से उन्होंने कॉमर्स की डिग्री ली। स्कूल के दिनों से ही इनका झुकाव एक्टिंग की तरफ़ था जिसके चलते सुभाष घई स्कूल और कॉलेज में होने वाले नाटकों में जरूर हिस्सा लेते यहां तक की अपने कॉलेज में उन्हें बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता गोल्ड मैडल भी मिला था। फिर तो घई साहब ने मन बना लिया कि अब तो बस एक्टिंग ही करनी है। उन्होंने अपने पिता से बात भी कि लेकिन उन्होंने छोटे सुभाष को अच्छे से समझा दिया की एक्टिंग की बाद में सोचना पहले अपनी पढ़ाई पूरी करो। और फिर जैसे ही इनकी ग्रेजुएशन पूरी हुई इनके पिता ने कहा कि पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट की परीक्षा दो और एक्टिंग की उचित रूप से ट्रेनिंग लो बस फिर क्या था सुभाष ने ये परीक्षा पास की और वहां एडमिशन लेकर एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद फिल्में ढूंढ़नी शुरू कर दीं।
उनकी मेहनत रंग लाई और 1967 में फिल्म तक़दीर में उन्हें अपना पहला रोल मिला। फिर और भी फिल्मों में उन्होंने छोटे मोटे रोल किये। 1970 में आई फिल्म आराधना में उन्होंने राजेश खन्ना के दोस्त का किरदार निभाया। उमंग फिल्म में पहली बार सुभाष घई बतौर हीरो नज़र आए जिसके बाद उन्होंने दो तीन फिल्में भी कीं। जैसे कि शेरनी, भारत के शहीद और बतौर हीरो उनकी आखिरी फिल्म रही 1973 में आई फिल्म गुमराह। फिल्मों में अच्छा काम करने के बाद भी सुभाष घई साहब को सफलता नहीं मिली जिससे धीरे-धीरे उनका झुकाव पटकथा और कहानी लेखन की तरफ हो गया।
उन्होंने कुछ कहानियां लिखीं जिसमें से उस ज़माने के मशहूर फ़िल्मकार रमेश सिप्पी को उनकी एक कहानी इतनी पसंद आई की उन्होंने इस पर फ़िल्म बनाने का निश्चय किया साथ ही इस फ़िल्म को डायरेक्ट भी सुभाष घई ने किया। फिल्म थी कालीचरण (1975)। यह फ़िल्म सुपरहिट रही और इस प्रकार सुभाष घई बॉलीवुड में लेखक और निर्देशक के रूप में स्थापित हो गए। बतौर निर्देशक उन्होंने विश्वनाथ, गौतम गोविंदा और क्रोधी जैसी फिल्में कीं। फिर वो दौर भी आया जब घई साहब ने प्रोडक्शन के क्षेत्र में पैर रखे और बॉलीवुड के महान कलाकारों दिलीप कुमार और राजकुमार को लेकर सौदागर फ़िल्म बनाई जिसके बाद उन्होंने कई यादगार फिल्में बनाईं और अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी मुक्ता आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से खोली।
सुभाष घई ने इस इंडस्ट्री को कई बेमिसाल कलाकार दिए और उन्हें बॉलीवुड के स्टार बनते हुए देखा। फिर चाहे वो जैकी श्रॉफ हो मीनाक्षी शेषाद्रि या माधुरी दीक्षित या फिर मनीषा कोइराला या कोई और। जैकी श्रॉफ और मीनाक्षी शेषाद्रि को ब्रेक देते हुए उन्होंने अपने संगीत के लिए बेमिसाल माने जानी वाली फ़िल्म हीरो बनाई जो कई हफ़्तों तक पर्दे पर से नहीं हटी और उस समय की बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई। हीरो के बाद उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं जैसे- कर्ज, मेरी जंग, कर्मा, राम लखन, ताल, खलनायक, परदेस और यादें।
इतना काम करके उन्होंने फिल्मों से थोड़े समय के लिए ब्रेक लिया फिर वापसी कर सिर्फ बतौर निर्माता ही काम किया और किसना, अपना सपना मनी मनी, ब्लैक एंड व्हाइट, युवराज़, ऐतराज, इकबाल, 36 चाइना टाउन जैसी फिल्में बनाईं। उनकी कुछ फिल्मों को छोड़ दें तो अधिकतर फिल्में बहुत सफल रहीं। बात करें उनकी निजी जिंदगी के बारे में तो उन्हें रेहना नाम की लड़की से प्यार हो गया था लेकिन उन्होंने शर्त रखी की जब तक में हीरो नहीं बन जाता शादी नहीं करेंगे फिर जब सुभाष घई फिल्मों में हीरो बन गए तो 1970 में उन्होंने रेहना से शादी कर ली और रेहना से उनका नाम बदल कर मुक्ता हो गया। इन दोनों की दो बेटियां हुईं मेघना और मुस्कान।
अल्फ्रेड हिचकॉक की तरह घई साहब अपनी फिल्मों में एक या दो सीनों में जरूर नज़र आते हैं। 90 के दशक में उन्हें अपनी फिल्मों के बेहतर संगीत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त होने के कारण हिंदी सिनेमा का शो मैन कहा जाने लगा। उनसे पहले राज कपूर को ये दर्जा हासिल था। साल 2006 में इन्होंने व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल नाम से मुंबई में एक फ़िल्म इंस्टिट्यूट खोला जो भारत और दूसरे देशों के बच्चों को फ़िल्म से जुड़ी बारीकियां सिखाता है। फिल्मों के साथ ही सुभाष घई जनकल्याण कार्यों में भी आगे रहते हैं।
उपलब्धियां
भारतीयों फिल्मों में इंश्योरेंस कवरेज लाने का श्रेय सुभाष घई को ही जाता है।
अमेरिकन सीनेट फिल्मों में इनके योगदान के लिए इन्हें सम्मानित कर चुका है।
कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की ज्यूरी में ये सदस्य भी रहे।
कर्मा और इक़बाल फ़िल्मों के लिए इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है।
सौदागार और कालीचरण फ़िल्मों के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और इनके भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए भी इन्हें दो बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिल चुका है।
अनु गुप्ता
अन्य न्यूज़