जिंदगी के सच को बयां करती हैं बॉलीवुड की इन फिल्मों की कहानियां

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रेनू तिवारी । Sep 29 2018 1:30PM

बॉलिवुड सिनेमा जगत में एक्सपेरिमेंट का दौर 70 के दशक में उस वक्त शुरू हुआ जब मृणाल सेन और श्याम बेनगल ने ऐसी फिल्में बनाने की पहल की जो एक खास क्लास की पसंद को ध्यान में रखकर बनाई गई।

बॉलिवुड सिनेमा जगत में एक्सपेरिमेंट का दौर 70 के दशक में उस वक्त शुरू हुआ जब मृणाल सेन और श्याम बेनगल ने ऐसी फिल्में बनाने की पहल की जो एक खास क्लास की पसंद को ध्यान में रखकर बनाई गई। उस दौर में जब ऐक्शन, कॉमिडी और इंसानी भावनाओं पर फिल्में बना करती थीं, इन फिल्मों को बनाना और थिएटरों तक पहुंचाना आसान नहीं था। लेकिन उस दौर में भी भुवन सोम और अंकुर, निशांत जैसी फिल्मों को कुछ दर्शक मिले और बॉलिवुड में मसाला फिल्मों के साथ- साथ लीक से हटकर ऐसी फिल्में बनाने का दस्तूर भी शुरू हुआ जो किसी खास क्लास की कसौटी पर फिट बैठती।

अगर आप यह सोच बैठे हैं कि बॉलिवुड में अच्छी फिल्में बननी बंद हो गई हैं, तो इन फिल्म को आप जरूर देखिए। 

मातृभूमि 

मातृभूमि एक महिला प्रधान फिल्म थी। इस फिल्म में लैंगिक असमानता और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों को उठाया गया था। मनीष झा ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। टयुलिप जोशी, पियूष मिश्रा सरीखें कलाकारों ने इस फिल्म में अभिनय किया था। फिल्म में बोल्ड दृश्यों की भरमार थी।

धोबी घाट 

आमिर खान की फिल्म धोबी घाट चार किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है। इन किरदारों को आपस में कोई ऐसा रिश्ता नहीं जो इन्हें नजदीक लाता हो। हां इन किरदारों में ऐसा रिश्ता जरूर बनता है जो जाने अनजाने इन सभी को कहीं ना कहीं बांधता है। एक शहर मे चार अलग- अलग वर्ग के लोगों की कहानी हैं। कीर्ति मल्होत्रा, आमिर खान, मोनिका डोगरा और प्रतीक बब्बर का लीड रोल हैं। 

मसान

डायरेक्टर नीरज घेवन ने फिल्म मसान को इस तरह डायरेक्ट किया है कि फिल्म किसी किताब जैसी लगती है। जो मंथर गति से बहती नदी के समान है जिसे बहते देखना आंखों को भाता है। बनारस की इसकी पृष्ठभूमि है। जिंदगी से जुड़े कैरेक्टर हैं. उनकी जायज लगने वाली समस्याएं हैं और फिल्म कई सवाल जगाती है और सोचने पर मजबूर करती है। डायरेक्टर कहानी को बहुत ही सधे ढंग से आगे बढ़ाते हैं और कुछ भी जबरन करने की कोशिश करते नजर नहीं आते। इस फिल्म में रिचा चड्ढा, विकी कौशल, संजय मिश्र, श्वेता त्रिपाठी और विनीत कुमार का लीड रोल हैं। 

ग्लोबल बाबा

सूर्य कुमार उपाध्याय की कथा और विशाल विजय कुमार की पटकथा लेकर मनोज तिवारी ने प्रासंगिक फिल्म बनाई है। पिछलें कुछ सालों में बाबाओं की करतूतों की सुर्खियां बनती रही हैं। हमें उनके अपराधों और कुकृत्यों की जानकारियां भी मिलती रही है। मनोज तिवारी ने 'ग्लोबल बाबा' को उत्तर प्रदेश की कथाभूमि और पृष्ठभूमि दी है। यों ऐसी कहानियां और घटनाएं किसी भी प्रदेश में पाई जा सकती हैं।

आंखों देखी

दिल्ली-6 या किसी भी कस्बे, छोटे-मझोले शहर के मध्यवर्गीय परिवार में एक गुप्त कैमरा लगा दें और कुछ महीनों के बाद उसकी चुस्त एडीटिंग कर दें तो एक नई 'आंखें देखी' बन जाएगी। रजत कपूर ने अपने गुरु मणि कौल और कुमार साहनी की तरह कैमरे का इस्तेमाल भरोसेमंद दोस्ट के तौर पर किया है। कोई हड़बड़ी नहीं है और न ही कोई तकनीकी चमत्कार दिखाना है। 'दिल्ली-6' की एक गली के पुराने मकान में कुछ घट रहा है, उसे एक तरतीब देने के साथ वे पेश कर देते हैं।

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