जागो नागरिक जागोः सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2020 के प्रावधानों को समझो
सरोगेसी एक महिला और एक दंपत्ति के बीच का एक समझौता है, जो अपनी स्वयं की संतान चाहता है। सरोगेसी का आशय 'किराये की कोख' अर्थात् किसी अन्य के मातृत्व सुख के लिए एक शिशु के जन्म हेतु अपनी कोख को सशुल्क/नि:शुल्क किराए पर प्रदान करना।
'मां' यह एक ऐसा शब्द है जो प्रत्येक विवाहिता महिला सुनने की लालसा मन में रखती है। परंतु दम्पत्तियों में शारीरिक अक्षमता के कारण कुछ को यह सुख प्राप्त नहीं हो पाता। जिसके कारण मानसिक तनाव के साथ-साथ सामाजिक दबाव में विवाहिता स्त्री इस अक्षमता को भावनात्मक एवं सामाजिक कलंक के रूप में भी देखना शुरू कर देती है।
परंतु वर्तमान परिदृश्य में गर्भाधान धारण न करना एक आम समस्या भी बनती जा रही है। इस समस्या से दुनिया के लगभग 15% दंपत्ति प्रभावित हैं। भारत में यह समस्या और भी ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में चार में से एक वैवाहिक जोड़ा बच्चा पैदा करने में परेशानी का सामना करता है।
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इस गंभीर समस्या से निजात के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया और इनफर्टिलिटी की बीमारी को दूर करने के लिए इसका ट्रीटमेंट खोजने का अथक प्रयास करते रहे। कालांतर में वैज्ञानिकों ने सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive technique) की खोज की। इस तकनीक में एग्स और भ्रूण दोनों को हैंडल किया जाता है। सामान्य तौर पर, एआरटी प्रोसेस में एक महिला के अंडाशय से अंडों को निकालना, उन्हें लेबोरेटरी में शुक्राणु के साथ संयोजित करना और उन्हें महिला के शरीर में वापस करना शामिल होता है। इसमें मुख्य रूप से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), आईसीएसआई, गैमेट्स या भ्रूण का क्रोप्रेजर्वेशन (अंडे या शुक्राणु), PGT (प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) शामिल होता है। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से कई नि:संतान दम्पत्तियों ने इलाज न होने वाली इन्फर्टिलिटी से उबर कर बच्चे को जन्म दिया है।
इस अनूठी तकनीक (ART) से नि:संतान दम्पत्तियों को लाभ भी मिलने लगा। परंतु ART के इजाद के बावजूद भी कुछ महिलाओं को गर्भाधान में समस्या बनी रही। सहायक प्रजनन तकनीकी के बावजूद कुछ महिलाओं द्वारा गर्भाधान ना होने और बार-बार गर्भपात हो जाने की स्थिति में चिकित्सकों ने एक विकल्प के रूप में सरोगेसी की खोज की।
सरोगेसी एक महिला और एक दंपत्ति के बीच का एक समझौता है, जो अपनी स्वयं की संतान चाहता है। सामान्य शब्दों में समझा जाए तो सरोगेसी का आशय 'किराये की कोख' अर्थात् किसी अन्य के मातृत्व सुख के लिए एक शिशु के जन्म हेतु अपनी कोख को सशुल्क/नि:शुल्क किराए पर प्रदान करना। प्रायः सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपत्ति को बच्चे को जन्म देने में कठिनाई आ रही हो और जो महिला किसी और दंपत्ति के बच्चे को अपनी कोख से जन्म देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है। यह भी देखने सुनने में आया है कि बिना किसी राशि के भी करीबी रिश्तेदार सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होती रही हैं।
एआरटी की सुविधा के कारण बांझपन की समस्या का निराकरण तो होने लगा परंतु कोई कानून या नियमन न होने के कारण विकसित राष्ट्रों की दृष्टि भारत की ओर पड़ी। सरोगेसी का लाभ उठाने के लिए चिकित्सा पर्यटन के रूप में भी भारत एक केंद्र बन गया क्योंकि भारत के पिछड़े इलाकों से सस्ते मूल्य पर किराए की कोख उपलब्ध हो जाती है। भारत में सेरोगेसी पर कोई कानून न होने के कारण सरोगेट मदर का शोषण भी होता रहा। किसी कानून के न होने की वज़ह से ही Indian Council for Medical Research (ICMR) ने भारत में ART क्लीनिकों के प्रमाणन, निरीक्षण और नियंत्रण के लिये 2005 में दिशा-निर्देश जारी किये थे परन्तु इनके उल्लंघन और बड़े पैमाने पर सरोगेट मदर्स के शोषण और जबरन वसूली के मामले सामने आते रहे हैं।
इस सुविधा का सदुपयोग कर नि:संतान दंपत्ति आज सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ इसका दुरुपयोग भी भारत में बढ़ा है। विदेशी दंपत्तियों व अत्याधुनिक दंपत्तियों के लिए सरोगेसी एक ऐसा माध्यम माध्यम बन गया है जिससे वे बिना किसी कष्ट के मातृत्व सुख प्राप्त करने लगे हैं। सरोगेट मदर के नाम पर महिलाओं के शोषण ने सरोगेसी पर कानून बनाने की मांग उठाने को मजबूर कर दिया। केंद्र सरकार ने भी माना है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत विभिन्न देशों के दंपत्तियों के लिये सरोगेसी के केंद्र के रूप में उभरा है। इसके चलते विशेषकर पिछड़े क्षेत्रों से आने वाली वंचित महिलाओं की दशा अत्यंत दयनीय हो गई।
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ऐसी चिंताओं ने भारत सरकार को सरोगेसी पर अब कानून बनाने को मजबूर किया है। कानून बन जाने से सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही सरोगेसी के कॉमर्शियल होने पर रोक लगेगी। इसके अलावा, सरोगेट मदर्स एवं सरोगेसी से जन्मी संतान के संभावित शोषण पर भी रोक लगेगी। भारत में सरोगेसी के तेज़ी से बढ़ने का मुख्य कारण इसका सस्ता और सामाजिक रूप से मान्य होना भी है। इसके अलावा, गोद लेने की जटिल प्रक्रिया के चलते भी सरोगेसी एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरी है।
भारत सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 बनाकर लोकसभा में प्रस्तुत किया। लोकसभा से यह विधेयक पास होने के बाद जब राज्यसभा में गया तब इस विधेयक में कुछ खामियों के कारण संसद के उच्च सदन में इसका विरोध हुआ। विरोध के बाद इस विधेयक को राज्यसभा की प्रवर समिति के सामने भेजा गया। अभी हाल में ही राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में गठित प्रवर समिति ने इस विधेयक में कुछ संशोधन करके पुनः केंद्र सरकार को भेजा था और केंद्रीय मंत्रिमंडल में हाल ही में इन संशोधन को मंजूरी देकर नया विधेयक तैयार किया है। अब सरकार संसद के अगले सत्र में एक नए विधेयक के रूप में इसे प्रस्तुत करने की तैयारी कर चुकी है। सरकार की सक्रियता से देश की सरोगेसी को एक कानूनी ढांचे में देखने की मुराद जल्दी ही पूरी हो सकती है।
संशोधित विधेयक, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 का उद्देश्य व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना और परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देना है। इस विधेयक के अनुसार-
-मानव भ्रूण की बिक्री और खरीद सहित वाणिज्यिक सरोगेसी निषिद्ध होगी और निःसंतान दंपत्तियों को नैतिक सरोगेसी की शर्तों को पूरा करने पर ही सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
-यह विधेयक किसी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट मदर बनने की अनुमति देता है जिससे विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के अलावा निःसंतान भारतीय जोड़ों को लाभ प्राप्त होगा।
-यह विधेयक सरोगेसी से संबंधित प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड (National Surrogacy Board) एवं राज्य स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड (State Surrogacy Board) के गठन का प्रावधान करता है।
-इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, केवल भारतीय दंपत्ति ही सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं।
-यह विधेयक इच्छुक भारतीय निःसंतान विवाहित जोड़े जिसमें महिला की उम्र 23-50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष हो, को नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है।
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-यह विधेयक यह भी सुनिश्चित करता है कि इच्छुक दंपत्ति किसी भी स्थिति में सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़े नहीं। नवजात बच्चा उन सभी अधिकारों का हकदार होगा जो एक प्राकृतिक बच्चे को उपलब्ध होते हैं।
-यह विधेयक सरोगेसी क्लीनिकों को विनियमित करने का प्रयास भी करता है। सरोगेसी या इससे संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये देश में सभी सरोगेसी क्लीनिकों का उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना आवश्यक है।
-यह विधेयक सरोगेट मदर के लिये बीमा कवरेज सहित विभिन्न सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है। विधेयक के अनुसार सरोगेट मदर के लिये प्रस्तावित बीमा कवर 36 महीने रहेगा, जिससे उसकी सामाजिक सुरक्षा मजबूत रहे।
-विधेयक के अनुसार सरोगेसी की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का लिंग चयन नहीं किया जा सकता है।
-यह विधेयक निःसंतान दंपति के लिये सरोगेसी की प्रक्रिया से पहले आवश्यकता और पात्रता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है।
भारत में सरोगेसी पर कोई कानून ना होने कारण जिस प्रकार इसका दुरुपयोग बढ़ा है, ऐसे में यदि प्रस्तावित विधेयक कानून बनता है तो सरोगेसी को एक कानूनी जामा पहनाया जा सकता है और इसके व्यवसायीकरण पर भी रोक लगेगी। इस कानून से सेरोगेट मदर और नवजात शिशु दोनों के कानूनी अधिकारों की भी रक्षा सुनिश्चित हो सकेगी परंतु सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विधेयक में निहित प्रावधानों का बेहतर क्रियान्वयन हो सके जिससे सरोगेसी के अनैतिक कारोबार पर रोक लग सके।
-आशीष राय
(लेखक उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता हैं)
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