इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) क्या है? इससे भारत कैसे और कितना लाभान्वित होगा?

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कमलेश पांडेय । May 30 2022 3:19PM

आईपीईएफ के भागीदार देश परस्पर आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाने तथा साझा लक्ष्यों को अर्जित करने के बारे में ध्यान केंद्रित करते हुए प्रयत्नशील हो चुके हैं। क्योंकि इसको व्यापक रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए एक सामूहिक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।

इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क को संक्षेप में आईपीईएफ कहा जाता है। इसे हिंदी में भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा कहा जाता है। यह 21वीं सदी की वह आर्थिक व्यवस्था है, जो हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र में लचीलापन, स्थिरता, समग्रता, आर्थिक विकास, निष्पक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के उद्देश्य से भागीदार देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को मजबूत बनाने का इरादा रखती है। 

इसलिए इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) क्या है? इसका विचार कैसे सामने आया? इसमें कौन-कौन से देश शामिल हैं? भारत के सामने इससे जुड़ी कौन सी चिंता है और इस पर चीन की प्रतिक्रिया क्या होगी? ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिसका जवाब जानने की जिज्ञासा सबके मन में है। क्योंकि भले ही इसकी नींव अमेरिका ने रखी हो, लेकिन भारत द्वारा इसका समर्थन करते ही इसका क्षेत्रीय महत्व बढ़ गया। 

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# 13 देशों का यह गठबंधन दुनिया की कुल जीडीपी के 40 प्रतिशत हिस्से का करते हैं प्रतिनिधित्व 

बता दें कि इसके तेरह भागीदार देशों में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे चार सदस्यीय क्वाड देशों के अलावा ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे एशियाई और ऑस्ट्रेलियाई देश भी शामिल हैं। कहना न होगा कि 13 देशों का ये गठबंधन दुनिया की कुल जीडीपी का 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं। 

सबसे खास बात यह है कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर इस संगठन के सभी साझेदार एशिया महाद्वीप के हैं। इनमें से ज्यादातर देश चीन के पड़ोसी हैं और जिनके रिश्ते चीन के साथ अच्छे नहीं रहे हैं। लिहाजा, इस व्यापारिक प्लेटफॉर्म को बनाने का मकसद ही इंडो-पैसिफिक में विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ चीन के आर्थिक प्रभुत्व का मुकाबला करना है। 

# अब एशियाई नाटो बनाने में है अमेरिका-ब्रिटेन की अभिरूचि

वहीं, जैसा कि ब्रिटेन से संकेत मिला है कि इसे ही भविष्य में एशियाई नाटो के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। क्योंकि दुनिया को उम्मीद है कि भले ही भारत-रूस एक दूसरे के अटूट मित्र हैं, और रूस-चीन में भी ऐसा ही प्रगाढ़ रिश्ता है। लेकिन जब भारत-चीन अपने अपने हितों के मद्देनजर आमने-सामने होंगे और रूस तटस्थ रहेगा, तब भारत के साथ क्वाड और आईपीईएफ देश ही खड़े होंगे। इसलिए भारत की भी गहरी दिलचस्पी इन संगठनों में है, लेकिन वह अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर कीप एंड बैलेंस की रणनीति अख्तियार करते हुए बेहद सधी हुई राजनयिक चालें चल रहा है, ताकि सभी के हित अप्रभावित रहें।

# भारत आदिकाल से ही इंडो पैसिफिक क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग, आर्थिक गतिविधि, वैश्विक व्यापार और निवेश का है केंद्र 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें तो भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा (इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क यानी आईपीईएफ), हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को ग्लोबल इकनोमिक ग्रोथ का इंजन बनाने की 'क्वाड' यानी भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान जैसे चार राष्ट्रों के समूहों और उसके हिमायती अन्य 9 देशों की सामूहिक इच्छाशक्ति की घोषणा है। जो इस बात से अवगत हैं कि भारत आदिकाल से ही इंडो पैसिफिक क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग, आर्थिक गतिविधि, वैश्विक व्यापार और निवेश का केंद्र है, जिसे थोड़ा और सहयोग तथा समर्थन दिया जाए तो वह एशिया और यूरोप में साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा रखने वाले विस्तारवादी देश चीन की काट बन सकता है। क्योंकि चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा और उकसाऊ कार्यों से एशिया महादेश के लगभग एक दर्जन देश परेशान हैं।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र के ट्रेड प्रवाहों में भारत सदियों से एक प्रमुख केंद्र रहा है। विश्व का सबसे प्राचीन कमर्शियल पोर्ट लोथल भी भारत के गुजरात में ही है। इसलिए यह आवश्यक है कि सभी समर्थक देश इस क्षेत्र की आर्थिक चुनौतियों के लिए एक साझा समाधान खोजें और रचनात्मक व्यवस्थाएं बनाएं, जिसमें भारत भी एक महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है। आईपीईएफ का गठन इस दिशा में उठाया हुआ एक महत्वपूर्ण कदम है। इस महत्वपूर्ण पहल के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को धन्यवाद ज्ञापित किया है।

# एक समावेशी और लचीला भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा के निर्माण के लिए क्वाड और उसके भागीदार सभी मित्र देशों के साथ काम करेगा भारत

भारत ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि एक समावेशी और लचीला भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा के निर्माण के लिए वह क्वाड और उसके भागीदार सभी मित्र देशों के साथ काम करेगा। वह विश्वास, पारदर्शिता और समयबद्धता के आधार पर इन देशों के बीच लचीला आपूर्ति श्रृंखला बनाने पर बल देगा। ये ऐसे तीन मुख्य आधार हैं, जो इन तीनों मुख्य स्तंभों को मजबूत करने में सहायक होगा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विकास, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने मंगलवार, 24 मई 2022 को जापान की राजधानी टोक्यो में इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (आईपीईएफ) के बारे में चर्चा शुरू करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति महामहिम जोसेफ आर. बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री महामहिम किशिदा फुमियो भी शामिल हुए। इसके साथ-साथ अन्य भागीदारी देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के नेताओं की भी वर्चुअल उपस्थिति इस कार्यक्रम में रही, जिससे इसके महत्व को समझा जा सकता है। कार्यक्रम के दौरान एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें आईपीईएफ में कल्‍पना किए गए प्रमुख तत्वों पर विस्तार पूर्वक  प्रकाश डाला गया।

# हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए साझा और रचनात्मक समाधान तलाशने का आह्वान किया है भारत ने

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्यक्रम में हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए साझा और रचनात्मक समाधान तलाशने का आह्वान किया है। इसके लिए उन्होंने सभी हिन्‍द-प्रशांत देशों के साथ मिलकर काम करने की भारत की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की, जो समावेशी भी है और लचीली भी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि लचीली आपूर्ति श्रृंखला की नींव में 3टी यानी ट्रस्‍ट (विश्वास), ट्रांसपरेंसी (पारदर्शिता) और टाइमलीनेस (समयबद्धता) होने चाहिए।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी साफ कर दिया है कि भारत एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि उसका विश्‍वास है कि आईपीईएफ के भागीदार देशों के बीच आर्थिक सम्‍पर्क को मजबूत बनाने के लिए निरंतर विकास, शांति और समृद्धि की पारस्परिक भावना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए भारत आईपीईएफ के तहत भागीदार देशों के साथ सहयोग करने और इस क्षेत्र में क्षेत्रीय आर्थिक जुड़ाव, एकीकरण और व्यापार तथा निवेश को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने का इच्छुक है।

# आईपीईएफ के भागीदार देश परस्पर आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाने तथा साझा लक्ष्यों को अर्जित करने के बारे में ध्यान केंद्रित करते हुए हो चुके हैं प्रयत्नशील 

गौरतलब है कि आईपीईएफ के भागीदार देश परस्पर आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाने तथा साझा लक्ष्यों को अर्जित करने के बारे में ध्यान केंद्रित करते हुए प्रयत्नशील हो चुके हैं। क्योंकि इसको व्यापक रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए एक सामूहिक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल इस इकोनॉमिक फ्रेमवर्क के पीछे का मूल उद्देश्य इसमें शामिल देशों में एक सप्लाई चेन यानी आपूर्ति श्रृंखला बनाकर चीन की अतिशय महत्वाकांक्षी शी जिनपिंग सरकार को अलग-थलग करना और बीजिंग पर इन देशों की निर्भरता को कम करना है। इसमें अमेरिका के अलावा भारत भी रणनीतिक भूमिका अदा  कर सकता है।

# इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क की पहली झलक मिली थी अक्टूबर 2021 में ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में 

याद दिला दें कि इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) की पहली झलक तो अक्टूबर 2021 में ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा कही गयी बातों से मिली थी। तब उन्होंने ऐलान किया था कि अमेरिका भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचे (आईपीईएफ) के डेवलपमेन्ट के लिए भागीदार देशों के साथ मिलकर काम करेगा। तब उन्होंने एक लक्ष्य देते हुए यहां तक कहा था कि आईपीईएफ हमारी ट्रेड फैसिलिटी (व्यापर सुविधा), डिजिटल इकनॉमिक्स और टेक्नोलॉजी के स्टैंडर्ड, आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन, डीकार्बोनाइजेशन और स्वच्छ ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, वर्कर स्टैंडर्ड और साझा हितों के अन्य क्षेत्रों के आसपास हमारे साझा उद्देश्यों को परिभाषित करेगा।

तब उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क के विकास की संभावनवाओं का पता लगाएगा। यूएस कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के इनसाइट पेपर के मुताबिक, आईपीईएफ कोई परंपरागत ट्रेड एग्रीमेंट नहीं है, बल्कि इसमें कई अलग-अलग मॉड्यूल होंगे, जिनमें फेयर एंड रेजिलिएंट ट्रेड, सप्लाई चेन रेजिलियंस, इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डिकार्बनाइजेशन और टैक्स एंड एंटीकरप्शन शामिल है। इसमें शामिल होने वाले देशों को एक मॉड्यूल के सभी कंपोनेंट्स में शामिल होना होगा, लेकिन उन्हें सभी मॉड्यूल में शामिल होने की जरूरत नहीं है।

प्रस्तावित मसौदे के मुताबिक, फेयर एंड रेजिलिएंट ट्रेड की अगुवाई यूएस ट्रेड रिप्रजेंटेटिव करेंगे और इसमें डिजिटल, लेबर और एनवायरमेंट से जुड़े मुद्दे होंगे। इनमें से कुछ बाध्यकारी होंगे। वहीं, आईपीईएफ में टैरिफ बैरियर कम करने जैसे मुद्दे नहीं होंगे। बल्कि यह एक तरह का एडमिनिस्ट्रेटिव अरेंजमेंट होगा जिसके लिए संसद की मंजूरी आवश्यक नहीं होगी। वहीं, ट्रेड एग्रीमेंट्स के लिए कांग्रेस की मंजूरी जरूरी है। 

# टीपीपी की जगह अब आईपीईएफ को बढ़ावा देगा अमेरिका, भारत का भी हासिल कर चुका है समर्थन

बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने वर्ष 2017 में ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से किनारा कर लिया था। इसलिए अब यह माना जा रहा है कि पूर्वी एशिया में फिर से अपनी विश्वसनीयता हासिल करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह नया पैंतरा चला है। देखा जाए तो अमेरिकी नेतृत्व वाला इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क चीनी नेतृत्व वाले ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) का एक विकल्प प्रतीत हो रहा है जिसे अमेरिका ने अपने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में वर्ष 2017 में ही छोड़ दिया था। 

इसलिए आईपीईएफ, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच अधिक से अधिक आर्थिक जुड़ाव (टैरिफ और बाजार रणनीति से आगे जाकर) सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा। क्योंकि इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच मुहैया कराना होगा, जहां इसमें शामिल देशों के अपने व्यक्तिगत मांगों और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बातचीत के लिए साथ आ सकें। इस तरह से आईपीईएफ को चीन से दूर एक अलग आर्थिक धुरी के रूप में भी देखा जा रहा है। 

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय के एक अधिकारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इसका लक्ष्य चीन को अलग-थलग महसूस कराना नहीं है। बल्कि इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने साफ कर दिया है कि अमेरिका की उन सभी विषयों में रणनीतिक रुचि है जिसमें चीनी शामिल होता है। यही कारण है कि अमेरिका की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रुचि है, जो एक ऐसा उर्वर क्षेत्र है, जिसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी रहती है और यहां उतना ही आर्थिक उत्पादन होता है।

# अमेरिका के अलावा क्वाड (क्यूयूएडी) के अन्य तीन सदस्य देश- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान- भी क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर हैं चिंतित 

बता दें कि अमेरिका के अलावा क्वाड (क्यूयूएडी) के अन्य तीन सदस्य देश- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान- भी इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर समान रूप से चिंतित हैं। इसलिए उनकी सामूहिक चिंताओं के साझा समाधान के लिए इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क को अमेरिका आगे लेकर आया है, जिसमें जापान ने भी बहुत रुचि दिखाई है। जबकि भारत ने भी इस फ्रेमवर्क पर सावधानी के साथ कदम बढ़ाया है। 

# इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क और भारत के दूरगामी हित

सवाल है कि भारत को आईपीईएफ में शामिल होने के मुद्दे पर सतर्क क्यों होना चाहिए? तो जवाब होगा कि भारत जोखिम से बचना चाहेगा, क्योंकि यह आसियान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) का भागीदार देश नहीं है। उल्लेखनीय है कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। लेकिन चीन के साथ अपने तनाव और आर्थिक नीतियों पर अपने संरक्षणवादी स्टैंड के कारण भारत इसमें शामिल नहीं हुआ।

जहां तक बड़ी आर्थिक अपेक्षाओं से जुड़े जोखिमों की बात है तो आईपीईएफ के सदस्य देश के रूप में अमेरिका को भारत से कुछ परेशानी हो सकती है। क्योंकि आईपीईएफ में प्रस्तावित कई बात भारत के हितों के अनुरूप नहीं हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु और बुनियादी ढांचे के मुद्दे पर अमेरिका द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों पर भारत शायद ही सहमत हो। वहीं, व्यापार के लचीलेपन पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील श्रम (लेबर) और पर्यावरण मानक भारत के लिए एक चुनौती साबित हो सकते हैं।

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बता दें कि दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियों अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से शह मात का खेल चल रहा है। इसलिए अपने इस नए इनिशिएटिव के जरिए अमेरिका क्लीन एनर्जी, डिकार्बनाइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सप्लाई चेन में सुधार जैसे साझा हित के मुद्दों पर एशिया के देशों के साथ पार्टनरशिप करेगा। गौरतलब है कि कोरोना काल में चीन से सप्लाई बाधित हुई है। यही वजह है कि पूरी दुनिया इसके लिए एक ठोस विकल्प तैयार करना चाहती है। इसलिए नजरिए से भारत भी कई बार कह चुका है कि दुनिया को एक विश्वसनीय सप्लाई चेन की जरूरत है। भारत के लिए इलाके में इकनॉमिक कोऑपरेशन अहम है और प्रधानमंत्री का फोकस इसी बात पर रहेगा। 

# हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन के दबदबे को कम करना चाहता है अमेरिका

जहां तक चीन के दबदबे की बात है तो चीन टीपीपी का प्रभावशाली सदस्य है और कंप्रहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट ऑन ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप में भी मेंबर बनना चाहता है। चीन 14 सदस्यों वाले रीजनल कंप्रहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आर-सेप) का भी हिस्सा है। अमेरिका इसका मेंबर नहीं है जबकि भारत इससे बाहर निकल चुका है। इसलिए बाइडन प्रशासन आईपीईएफ को पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ जुड़ने का एक नया जरिया मान रहा है। हाल ही में अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलीवन ने इसे 21वीं सदी की आर्थिक व्यवस्था बताया था।

लेकिन आईपीईएफ को लेकर इंडो-पैसिफिक रीजन के कई देश ज्यादा उत्साहित नहीं होंगे। इसकी वजह यह है कि इसके ट्रेड रूल्स बाध्यकारी हैं, लेकिन मार्केट एक्सेस की कोई गारंटी नहीं है। जापान ने इस पहल का स्वागत किया है जबकि थाइलैंड ने भी बातचीत में शामिल होने की बात कही है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इसमें शामिल हो सकते हैं। दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और सिंगापुर ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है।

वहीं, जानकारों का कहना है कि अमेरिका के हाई स्टैंडर्ड से भारत सहज महसूस नहीं करेगा और जोखिम से बचना चाहेगा। इसकी वजह यह है कि आईपीईएफ में कई ऐसे प्रस्ताव है जो भारत के हितों के अनुरूप नहीं हैं। उदाहरण के लिए, आईपीईएफ में डिजिटल गवर्नेंस की बात है, लेकिन इसके फॉर्म्युलेशन में ऐसे मुद्दे हैं जो बात की तय स्थिति से मेल नहीं खाते हैं।

# चीन की तिलमिलाहट बताती है कि आईपीईएफ का बढ़ चुका है महत्व

बताते चलें कि आईपीईएफ को क्वाड शिखर सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले लांच किया गया था। इसलिए अब तक जो चीन, क्वाड को एक 'नाकामयाब गठबंधन' कहता आ रहा था, वही अचानक अब क्वाड को चीन की सुरक्षा के लिए गम्भीर 'खतरा' बताने लगा है। वहीं, आईपीईएफ के गठन के बाद इस बात की संभावना भी बनने लगी है कि भविष्य में क्वाड का विस्तार किया जा सकता है और आईपीईएफ के सदस्य देशों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है, जो एशियाई नाटो का रूप भी ले सकता है। 

दरअसल, पिछले महीने ही ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने एशिया में नाटो का विस्तार करने की बात कही थी। इसलिए अब उसका चेहरा भी बनता हुआ दिखाई दे रहा है आईपीईएफ। लिहाजा अब चीन काफी ज्यादा गंभीर हो गया है। वहीं, अमेरिकी वाणिज्य सचिव जीना रायमोंडो ने भी इस व्यापारिक प्लेटफॉर्म को लांच करने के बाद कहा कहा कि, "यह (आईपीईएफ) इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक जुड़ाव है। इसका शुभारंभ, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी आर्थिक नेतृत्व को बहाल करने और इंडो-पैसिफिक देशों को महत्वपूर्ण मुद्दों पर चीन का विकल्प बनने का एक प्लेटफॉर्म बनाना है।" स्पष्ट है कि आने वाले वक्त में इस प्लेटफॉर्म से इंडो-पैसिफिक देशों के सामने आयात-निर्यात का एक अलग विकल्प खुल जाएगा, जो चीन के लिए बहुत बड़ा झटका साबित होगा।

# समझिए, आईपीईएफ से भारत को कितना हो सकता है फायदा

गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच की व्यापारिक भागीदारी 125 अरब डॉलर को पार कर गई है, लेकिन इसमें चीन का हिस्सा काफी ज्यादा है। वहीं, भारत के बार बार कहने के बाद भी चीन भारत से ज्यादा सामान आयात नहीं करता है। लिहाजा, भारत भी किसी विकल्प की तलाश में था।  स्वाभाविक है कि आईपीईएफ से भारतीय सामानों के लिए ना सिर्फ बाजार खुलेंगे, बल्कि भारत इन देशों से ऐसे सामान भी आसानी से आयात कर सकता है, जिसके लिए भारत को अबतक चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए भारत को इससे काफी फायदा हो सकता है।

# जानिए, आईपीईएफ में भारत का क्या हो सकता है योगदान?

जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है कि, आईपीईएफ में भारत की भूमिका 'स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु प्राथमिकताओं, महामारी को लेकर तेज प्रतिक्रिया, आपूर्ति श्रृंखला विविधता और लचीलापन, उभरती टेक्नोलॉजी, निवेश स्क्रीनिंग' पर डेलपमेंट के लिए 'महत्वपूर्ण' है। उन्होंने कहा कि, 'इस क्षेत्र में हमारे सकारात्मक आर्थिक जुड़ाव में भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार है और हमारा मानना है कि भारत अधिक विविध और लचीला वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने के वैश्विक प्रयासों में एक अभिन्न भूमिका निभा रहा है।' 

आपको बता दें कि, चीन पहले ही 'आरसीईपी-आरसेप' के तहत सभी क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला लिंकेज पर हावी होने की कोशिश कर रहा है, और कोविड-19 महामारी एवं यूक्रेन में युद्ध ने दिखाया है कि किसी एक देश पर ज्यादा निर्भर होना किसी भी देश की संप्रभुता के लिए भी खतरा है। लिहाजा, आईपीईएफ में भारत का योगदान काफी अहम रहने वाला है।

# भारत के लिए क्वाड समिट हुआ कामयाब, अब चीन का ध्यान लद्दाख से बंटेगा ताइवान की ओर 

जापान में गत 24 मई 2022 को आयोजित क्वाड समिट में इस बार सबसे खास बात यह हुआ है कि अमेरिका ने ताइवान की सैन्य मदद करने की बात कह दी है। लिहाजा अब यह तय हो चुका है, कि आने वाले वक्त में ताइवान को लेकर तनाव बढ़ेगा और चीन अपनी ताकत ताइवान का तरफ शिफ्ट करेगा। इससे लद्दाख में भारत को कुछ राहत मिलेगी। वहीं, पिछले हफ्ते चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष अधिकारियों के बीच का एक ऑडियो टेप भी लीक हुआ था, जिसमें ताइवान पर मिलिट्री एक्शन लेने की बात कही गई थी। लिहाजा इस क्षेत्र में अब तनाव और बढ़ेंगे। 

वहीं, क्वाड को लेकर पहली बार चीन ना सिर्फ गंभीर हुआ है, बल्कि उसकी चिंताएं बढ़ गईं हैं और आने वाले वक्त में इसकी भी संभावना है कि क्वाड को नाटो जैसा गठबंधन बनाया जाए। लिहाजा, रूस की कमजोर आर्थिक और सैन्य स्थिति को देखते हुए क्वाड आने वाले वक्त में भारत के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। इसलिए भारत भी इसमें दिलचस्पी ले रहा है।

# क्वाड फेलोशिप प्रोग्राम से भारत जैसे देश को भी होगा फायदा

भारतीय छात्रों को क्वाड फेलोशिप कार्यक्रम ने बेहतर भविष्य का निर्माण करने वाले एसटीईएम नेताओं और इनोवेटर्स की अगली पीढ़ी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है। आपको बता दें कि ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के नेताओं ने टोक्यो में क्वाड फेलोशिप की शुरुआत की है, जिसमें सदस्य देशों के 100 छात्रों को विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में स्नातक डिग्री के लिए अमेरिका में अध्ययन के लिए प्रायोजित किया जाएगा। 

वाकई यह अपनी तरह का पहला छात्रवृत्ति कार्यक्रम है जो एसटीईएफ में ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के शीर्ष दिमागों को एक साथ लाएगा। क्वाड फेलोशिप पर पीएम मोदी ने भी कहा है कि, 'क्वाड फेलोशिप कार्यक्रम एक अद्भुत और अनूठी पहल है। यह प्रतिष्ठित फेलोशिप हमारे छात्रों को स्नातक और डॉक्टरेट कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के महान अवसर प्रदान करेगी।'

# इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) पर चीन ने जताई कड़ी प्रतिक्रिया

साम्राज्यवादी देश चीन ने स्वाभाविक रूप से टोक्यो में क्वाड देशों की बैठक से पहले संभावित इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) पर अपनी कड़ी नाराजगी जताई है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दो टूक कहा है कि आईपीईएफ, अमेरिका द्वारा 'स्वतंत्रता और खुलेपन' की आड़ में गढ़ा गया है। क्योंकि वाशिंगटन, चीन के पड़ोस में माहौल को बदलने के लिए उत्सुक है। उन्होंने आईपीईएफ को "क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक आधिपत्य बनाए रखने और जानबूझकर खास देशों को बाहर करने के लिए अमेरिका का राजनीतिक उपकरण" कहा है। हालांकि उन्होंने यह भी जोर देकर कहा है कि "एशिया-प्रशांत में कैंप या एशियाई नाटो बनाने या शीत युद्ध शुरू करने के उसके प्रयास सफल नहीं होंगे।"

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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