प्रधानमंत्री यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम क्या है? इसकी क्या विशेषताएं हैं? भारत में यह कब से लागू होगा?

Universal Basic Income Scheme
कमलेश पांडेय । Oct 11 2021 4:51PM

बताया जाता है कि जल्द ही भारत में विदेशों की तरह ही देश के हर युवक युवती को प्रत्येक महीने बेरोजगारी भत्ता या फिर स्थायी सैलरी दी जाएगी, जिससे समाज में आर्थिक समानता को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी सिलसिले में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी घोषणा की है कि बहुत जल्द देश में यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम शुरू की जाएगी।

प्रधानमंत्री यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम भारत में व्याप्त गरीबी का एक संभव समाधान हो सकता है। क्योंकि हमारी जनकल्याणकारी योजनाएं अपनी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रही हैं। इस वजह से इसे एक सार्थक कदम करार दिया जा रहा है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि पीएम यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम हमें सामाजिक न्याय दिलाने के साथ-साथ हमारी मजबूत अर्थव्यवस्था बनने में भी मददगार साबित हो सकती है।

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# भारत में अब हर व्यक्ति को प्रति माह दी जा सकती है अनुमन्य धनराशि

बताया जाता है कि जल्द ही भारत में विदेशों की तरह ही देश के हर युवक युवती को प्रत्येक महीने बेरोजगारी भत्ता या फिर स्थायी सैलरी दी जाएगी, जिससे समाज में आर्थिक समानता को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी सिलसिले में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी घोषणा की है कि बहुत जल्द देश में यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम शुरू की जाएगी। प्रधानमंत्री की मानें तो इस योजना से उन सभी लोगों को वित्तीय सहायता दी जाएगी, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यह धनराशि लाभार्थी के सीधे बैंक खाते में पहुंचेगी। यह योजना बेरोजगार युवक युवतियों के साथ-साथ किसानों, मजदूरों, कारीगरों को भी सुविधा प्रदान करेगी। इस योजना के तहत लोगों की सामाजिक और आर्थिक अवस्था मायने नहीं रखती है। इसके लागू हो जाने के बाद देश के हर नागरिक के बैंक खाते में सीधे फिक्स अमाउंट ट्रांसफर किया जाएगा। इसकी खासियत यह है कि यह सब के लिए एक समान ही होगा, यानी कि जाति-धर्म-लिंग-भाषा आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

# पीएम यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम के तहत देश के 75 प्रतिशत लोगों को दी जाती है एक मुश्त फिक्स धनराशि 

पीएम यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम देश के 75 प्रतिशत लोगों को एक मुश्त फिक्स धनराशि देने की योजना है। जिसमें लाभार्थियों का चयन करने के लिए उनकी आय, रोजगार की स्थिति, भौगोलिक स्थिति इत्यादि का आकलन नहीं किया जायेगा। क्योंकि यूबीआई का उद्देश्य ही देश में गरीबी को कम करना और नागरिकों में आर्थिक समानता बढ़ाना है। हां, यहां पर एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि इमरजेंसी बेसिक इनकम (ईबीआई) और यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) में एक सबसे बड़ा अंतर होता है। वह यह कि जब सरकार को लगता है कि देश में पर्याप्त मांग आ चुकी है, लोगों के पास नौकरियां भी आ चुकीं हैं तो सरकार हालात सामान्य होने के बाद इमरजेंसी बेसिक इनकम देना बंद कर देती है। लेकिन यूनिवर्सल बेसिक इनकम के ऊपर यह बात लागू नहीं होती, बल्कि यह योग्य पात्रों को निरन्तर मिलता रहता है। इसे कभी बन्द नहीं किया जाता है।

# विदेशों में भी इमरजेंसी बेसिक इनकम दिए जाने का है प्रावधान, कोविड काल मे भी मिला

बता दें कि वर्तमान में कोविड 19 के कारण विश्व के बहुत से देशों में इमरजेंसी बेसिक इनकम को शुरू किया गया है। जहां जापान ने अपने देश में हर व्यक्ति को एक लाख येन देने का फैसला किया है, वहीं कनाडा ने 25 मार्च 2020 से हर नागरिक को 2500 डॉलर प्रति माह देने का फैसला किया है। सर्वप्रथम लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने अमीर-गरीब, सबको एक सुनिश्चित अंतराल पर तयशुदा रकम देने का विचार पेश किया है। इसे ही यूनिवर्सल बेसिक इनकम का नाम दिया गया, जिसे भारत की पिछली यूपीए सरकार में भी लागू किए जाने की चर्चा चली थी, जो सफल नहीं हो सकी। उसके बाद मोदी सरकार के वर्ष 2016-17 के बजट और उसके बाद के अन्य बजटों में भी यूबीआई स्कीम की घोषणा की उम्मीद बंधी थी, लेकिन वह भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है। हालांकि, वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वे में मोदी सरकार ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) का जिक्र किया। तब आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर 40 से अधिक पेजों का एक खाका तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सल बेसिक इनकम भारत में व्याप्त गरीबी का एक संभव समाधान हो सकता है।

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# आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में भी गरीबी व आय असमानता को कम करने के लिए की गई है यूबीआई की वकालत

आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में भी देश में गरीबी और आय असमानता को कम करने के प्रयास में, तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश में विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के स्थान पर यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम (यूबीआई) की वकालत की थी। तभी अर्थशास्त्री सुरेश तेंदुलकर ने भी देश के गरीब लोगों को पोषण युक्त भोजन खाने के लिए या गरीबी रेखा से बाहर निकालने के लिए प्रति व्यक्ति न्यूनतम प्रति वर्ष 7,620 रुपये देने की सिफारिश की थी। बताया जाता है कि एनडीए सरकार देश की 75 प्रतिशत आबादी को प्रति व्यक्ति न्यूनतम 7,620 रुपये देने की योजना बना रही है, जिसका नाम पीएम यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम होगा, जिसकी अनुमानित लागत सकल घरेलू उत्पाद की 4.9 फीसदी हो सकती है।

इकनॉमिक सर्वे 2016-17 में कहा गया था कि भारत में केंद्र सरकार की तरफ से प्रायोजित कुल 950 स्कीम हैं और जीडीपी बजट आवंटन में इनकी हिस्सेदारी करीब 5 फीसदी है। ऐसी ज्यादातर स्कीमें आवंटन के मामले में छोटी हैं और टॉप 11 स्कीमों की कुल बजट आवंटन में हिस्सेदारी 50 फीसदी है। इसे ध्यान में रखते हुए सर्वे में यूबीआई को मौजूदा स्कीमों के लाभार्थियों के लिए विकल्प के तौर पर पेश करने का प्रस्ताव दिया गया है। इस तरह से तैयार किए जाने पर यूबीआई न सिर्फ जीवन स्तर बेहतर कर सकता है, बल्कि मौजूदा स्कीमों का प्रशासनिक स्तर भी बेहतर कर सकता है।

आर्थिक सर्वे 2016-17 में अनुमान जताया गया था कि देश के एक-एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने वाली कोई योजना अपने मकसद में सफल नहीं हो सकती है। इसलिए आर्थिक सर्वे में कुछ उपाय सुझाए गए थे। इसके मुताबिक, पहला, आर्थिक दृष्टि से निचले पायदान की 75 प्रतिशत आबादी को यूबीआई के दायरे में लाया जाए। दूसरा, सिर्फ महिलाओं को इसके दायरे में लाया जाए क्योंकि महिलाओं को रोजगार के अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं वित्तीय समावेशन के मोर्चों पर हमेशा पिछड़ेपन का सामना करना पड़ता है। इससे आबादी का आधा हिस्सा यूबीआई के दायरे में आएगा। क्योंकि महिलाओं के हाथ में पैसे गए तो उनके दुरुपयोग की आशंका भी नहीं के बराबर रहेगी।तीसरा, शुरुआत में यूबीआई स्कीम का लाभ विधवाओं, गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ वृद्ध एवं बीमार आबादी को दिया जा सकता है।

# ये हैं पीएम यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम की कुछ खास विशेषताएं 

कहना न होगा कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम की कुछ खास विशेषताएं हैं, जो इसकी प्रासंगिकता पर मुहर लगवा रही हैं। पहला, यह यूनिवर्सल स्कीम है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम मुख्य रूप से एक सार्वभौमिक योजना है, जिसका मतलब है कि यूबीआई समाज के किसी वर्ग विशेष के लिए खास तौर से नहीं बनायी गयी है अर्थात इस योजना का लाभार्थी देश का कोई भी नागरिक हो सकता है। 

दूसरा, इस योजना के तहत एक निश्चित आय होगी, यानी लाभार्थियों को एक सुनिश्चित अंतराल पर यानी मासिक या वार्षिक रूप से धन वितरित किया जाएगा। तीसरा, यह नकद भुगतान योजना होगी, जिसके अंतर्गत तय राशि को लाभार्थियों के खाते में सीधे ट्रान्सफर किया जायेगा। अर्थात इस योजना में कैश के अलावा कैश जैसी कोई और वस्तु जैसे कूपन इत्यादि नहीं दी जाएगी। 

चतुर्थ, यह बिना शर्त योजना होगी, जिसमें लाभार्थी की आर्थिक स्थिति या रोजगार की स्थिति को ध्यान में नहीं रखा जायेगा। अर्थात लाभार्थी को इस योजना का लाभ लेने के लिए सामाजिक-आर्थिक पहचान को साबित करने की आवश्यकता नहीं है। पांचवां, यह व्यक्तिगत लाभार्थी योजना है, जिसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य (या वयस्क नागरिक) को व्यक्तिगत रूप से लाभ दिया जायेगा, अर्थात इस योजना में लाभार्थी की इकाई व्यक्ति होगी पूरा परिवार नहीं।

# आखिर लोगों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की आवश्यकता क्यों हैं? इसके क्या लाभ होंगे

सवाल है कि आखिर लोगों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की आवश्यकता क्यों हैं? तो जवाब होगा कि पहला, देश में असमानता को कम करने और गरीबी दूर करने के लिए यूबीआई एक मील का पत्थर साबित होगी। दूसरा, यह समाज के गरीब तबके की क्रय शक्ति को बढ़ाएगा, इसलिए अर्थव्यवस्था में सकल मांग अधिक होगी जो उत्पादन और निवेश को प्रेरित करेगी जिससे देश का समग्र विकास होगा। तीसरा, यह योजना देश के सभी व्यक्तियों के लिए सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करेगी।

जहां तक यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लाभ का सवाल है तो पहला, वर्तमान में सरकार विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से लोगों के कल्याण को बढ़ाने का प्रयास करती है। लेकिन अब सरकार उन्हें नकद पैसा देकर इस प्रवृत्ति को बदलना चाहती है ताकि लोग अपनी पसंद की सेवाएं व सामान खरीद सकें। दूसरा, यूबीआई व्यक्तियों को सुरक्षित और फिक्स्ड इनकम प्रदान करेगी। तीसरा, यह स्कीम देश में गरीबी और आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करेगी। चतुर्थ, यह स्कीम देश के लोगों के हाथों में अतिरिक्त क्रय शक्ति देगी, जिससे देश में उत्पादनकारी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। पांचवां, इस योजना को लागू करना आसान है, क्योंकि इसमें लाभार्थियों को चिन्हित नहीं करना पड़ेगा। छठा, यह योजना सरकारी धन के अपव्यय और भ्रष्टाचार को कम करेगी, क्योंकि इसका कार्यान्वयन बहुत सरल है और पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में भेजा जायेगा।

# ये हो सकती हैं यूबीआई की संभावित कमियां

जहां तक यूबीआई की संभावित कमियों की बात है तो हरेक सिक्के के दो पहलू होते हैं। हमें इसके सकारात्मक पक्षों का लाभ लेना चाहिए और नकारात्मक तथ्यों को नजरअंदाज करना चाहिए। पहला, इस योजना के लागू होने के बाद इस बात की प्रबल संभावना है कि गरीबों को मुफ्त पैसा उन्हें आलसी बना सकता है और वे काम ना करने के लिए प्रेरित होंगे। दूसरा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दी गई नकदी उत्पादक गतिविधियों, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि पर ही खर्च की जाएगी। बल्कि यह तंबाकू, शराब, ड्रग्स और अन्य लक्जरी वस्तुओं आदि पर भी खर्च की जा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो इस योजना का उद्येश्य ही विफल हो जायेगा। तीसरा, इस योजना के तहत लोगों को मुफ्त नकद देने से अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होगी, क्योंकि देश में उपभोक्तावादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।

चतुर्थ, एक बड़ी साधारण सी बात यह है कि जब किसी को मुफ्त में खाने पीने को मिलता रहेगा तो फिर वह व्यक्ति काम ही क्यों करेगा? पांचवां, ऐसा भी हो सकता है कि लोग फसल की कटाई के समय काम करने से मना कर दें, जैसा कि मनरेगा के मामले में देखा गया था। छठा, ऐसा भी हो सकता है कि लोग अधिक मजदूरी की मांग करने लगें, जिससे कि कृषि उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी, जिसका किसानों की आय पर विपरीत असर पड़ेगा।

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# क्या हमारी अर्थव्यवस्था यूबीआई के लिए सक्षम है?

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' स्कीम को लागू करने पर जीडीपी का 3 से 4 फीसदी खर्च आएगा, जबकि अभी कुल जीडीपी का 4 से 5 फीसदी सरकार सब्सिडी में खर्च कर रही है। आर्थिक सर्वे 2016-17 में भी योजना को लागू करने के लिए जो तीन सुझाव दिए गए थे, उनमें पहला सुझाव सबसे गरीब 75 प्रतिशत आबादी को लाभ दिए जाने का था। इसमें कहा गया था कि इस पर जीडीपी का 4.9 प्रतिशत हिस्सा खर्च होगा। वहीं, 2016-17 के आर्थिक सर्वे में 2011-12 के डिस्ट्रीब्यूशन और कंजम्पशन को आधार मानते हुए गरीबी के स्तर का अनुमान 0.45 फीसदी लगाया गया था, जबकि इस दायरे को गरीबी से उबारने के लिए 7,620 करोड़ के सालाना इनकम या यूबीआई की जरूरत बताई गई थी।

# आखिर में पीएमयूबीआईएस को कैसे लागू किया जाएगा?

देश में गरीबी रेखा के दायरे में कौन-कौन आता है, इसका आकलन ठीक से नहीं हुआ है। तेंदुलकर फॉर्म्युले में 22 फीसदी आबादी को गरीब बताया गया था, जबकि सी. रंगराजन फॉर्म्युले ने 29.5 आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। इन उलझनों के बीच सरकार आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को एक निश्चित रकम दे सकती है। इसके लिए सरकार 2011 में सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना के तहत जुटाए गए आंकड़ों का सहारा ले सकती है। हालांकि, यूबीआई लागू करने के लिहाज से जाति-धर्म का आंकड़ा नजरअंदाज किया जाएगा।

# पीएमयूबीआईएस से कितनी आबादी को होगा फायदा?

एक अनुमान है कि यूबीआई स्कीम के तहत पहले देश की सबसे गरीब आबादी को देशभर के करीब 20 करोड़ जरूरतमंदों को फायदा मिलेगा। वैसे भी अगर खाद्य सुरक्षा अधिनियम का लाभ ले रही आबादी को ही यूबीआई स्कीम का लाभ मिलता है तो देश के 97 करोड़ लोग इसके दायरे में आएंगे। अगर एक परिवार में औसतन पांच लोग हैं तो इसका मतलब है कि देश के 20 करोड़ परिवारों में बदल जाती है।

# क्या पीएमयूबीआईएस लागू होने के बाद हट जाएगी सब्सिडी?

जानकारों के मुताबिक, यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम और सब्सिडी दोनों का साथ-साथ चलना ठीक नहीं है। सरकार का वित्तीय अनुशासन प्रभावित नहीं हो, इसके लिए सरकार सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटा सकती है। यानी, एक वक्त के बाद सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो सकती है और इसकी जगह निश्चित रकम सीधे लोगों के खाते में जाती रहेगी। कुछ अर्थशास्त्री यह भी कहते हैं कि 'वित्तीय दृष्टि से हम बजट में पूरी तरह से यूबीआई को वहन नहीं करते हैं। इसकी शुरुआत सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने से हो सकती है। इसके बाद पायलट प्रॉजेक्ट और बाद में कुछ सब्सिडी वाली स्कीमों को वापस लाकर उन्हें यूबीआई के दायरे में लाया जा सकता है।'

# आखिर में क्या क्या हैं पीएमयूबीआईएस की चुनौतियां?

चूंकि आर्थिक सर्वे 2016-17 में स्पष्ट कहा गया है कि यूबीआई के दायरे में देश की पूरी आबादी को नहीं लाया जा सकता है, इसलिए इसके वास्तविक लाभार्थियों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती है। सर्वे में जिन तीन सुझाव दिए गए थे, उनमें एक को भी आधार मानकर यूबीआई की शुरुआत की जाती है तो वास्तविक हकदार के योजना से बाहर छूटने की आशंका बनी रहेगी, जैसा कि हर कल्याणकारी योजना के साथ होता है। फिर यह योजना भी अपनी प्रकृत्ति में यूनिवर्सल (व्यापक) नहीं रह पाएगा और अपने मूल मकसद से भटक जाएगी। विशेषज्ञों की राय में यह कॉन्सेप्ट अच्छा दिखता है, लेकिन वास्तविक लाभार्थी की पहचान करना बड़ी चुनौती है। आधार हर शख्स की पहचान को स्थापित करता है, लेकिन यह लोगों का वर्गीकरण नहीं करता। लिहाजा, अगर लाभार्थी की बेहतर तरीके से पहचान की जाती है, तो यूबीआई आगे बढ़ने योग्य कदम है।

# पीएमयूबीआईएस को फेज वाइज लागू कर सकती है मोदी सरकार

वैसे तो मोदी सरकार में यूनिर्वसल बेसिक इनकम स्कीम पर पेश एक रिसर्च को इकनॉमिक सर्वे रिपोर्ट में शामिल किया गया था और नीति आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया ने संकेत दिया था कि सरकार इसे फेज वाइज लागू कर सकती है। इसके बावजूद यह दावा नहीं किया जा सकता है कि इस तरह की योजनाएं हमेशा अर्थव्यवस्था को लाभ ही पहुंचाती हैं। ऐसी योजनाएं अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति को प्रभावित करती हैं और महंगाई बढ़ाने का काम भी कर सकती हैं।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि मुफ्तखोरी ने लोगों की आर्थिक स्थितियों को कभी नहीं बदला है। इसलिए प्रति व्यक्ति 7,620 रुपये प्रति वर्ष देने से बहुत कुछ नहीं बदलेगा, जैसा कि मनरेगा जैसी योजना के साथ हुआ है जिसमें गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को हर साल 10 हजार रुपये दिए जाते हैं। अब तो लगभग 2 एकड़ जमीन वाले किसान परिवारों को भी प्रति वर्ष 6 हजार रुपये दिए जा रहे हैं। 

इसलिए समय की नजाकत यह है कि सरकार लोगों को काम करना सिखाये ना कि उन्हें मुफ्त में भोजन बांटे। क्योंकि यदि आप किसी को भोजन देंगे तो वह अपना पेट भर लेगा। लेकिन यदि आपने उसको काम करना सिखा दिया तो वह अपने परिवार का पेट भर लेगा। इसलिए शिक्षा और कामकाजी माहौल पर सरकार फोकस करे तो बेहतर रहेगा। जनस्वास्थ्य व जनसुरक्षा भी उसकी प्राथमिकताएं होनी चाहिए।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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