कार्तिक पूर्णिमा पर आपके सभी मनोरथ इस तरह हो सकते हैं पूरे

All your aspirations on Karthik Purnima can be done in this way
शुभा दुबे । Nov 3 2017 4:17PM

इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। इस दिन ब्राह्मणों को विधिवत आदर भाव से निमंत्रित करके भोजन कराना चाहिए। इस दिन देव दिवाली भी होती है।

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इसी दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल प्राप्त होता है।

देव दिवाली

इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। इस दिन ब्राह्मणों को विधिवत आदर भाव से निमंत्रित करके भोजन कराना चाहिए। इस दिन देव दिवाली भी होती है। इस उत्सव का असल आनंद देखना हो तो शिव की नगरी काशी आइये। यहां गंगा नदी के किनारे रविदास घाट से लेकर राजघाट तक सैंकड़ों दिये जलाकर गंगा नदी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि देव दिवाली की परम्परा सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में शुरू हुई थी।

मुहूर्त

इस दिन सुबह 11:48 से दोपहर 12:32 बजे तक का समय बहुत शुभ है। आप कुछ नया काम या नई शुरुआत करना चाहें तो इस समय कर सकते हैं।

पर्व की महत्ता

ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत पर्व की संज्ञा दी है। इसीलिए इसमें किये हुए गंगा स्नान, दीप दान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पद्मक योग होता है, जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन संध्या काल में त्रिपुरोत्सव करके दीप दान करने से पुनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। यह भी मान्यता है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी मिली है। इस दिन स्वर्ण के मेष दान करने से ग्रह योग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान करने से संतान व्रत पूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।

व्रत कथा

एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने वर में मांगा, ''न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।''

इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतः महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया।

इस दिन क्षीर सागर दान का अनन्त माहात्म्य है। क्षीर सागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता है।

- शुभा दुबे

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