भीष्म द्वादशी व्रत से होती है मनोकामनाएं पूरी

Bhishma Dwadashi
Prabhasakshi

माघ पूर्णिमा की द्वादशी को भीष्म द्वादशी के नाम से मनाया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी के भी नाम से जाना जाता हैं। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पंडितों का मानना है कि जिन लोगों के संतान न हो, इस दिन व्रत रखने से उसको संतान की प्राप्ति होती है।

आज भीष्म द्वादशी है, इस दिन अपने पितरों के तपर्ण का खास महत्व है, तो आइए हम आपको भीष्म द्वादशी व्रत के पूजा विधि और महत्व के बारे में बताते हैं। 

जानें भीष्म द्वादशी व्रत के बारे में 

माघ पूर्णिमा की द्वादशी को भीष्म द्वादशी के नाम से मनाया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी के भी नाम से जाना जाता हैं। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पंडितों का मानना है कि जिन लोगों के संतान न हो, इस दिन व्रत रखने से उसको संतान की प्राप्ति होती है। भीष्म द्वादशी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को किया जाता है। यह व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है। इस दिन महाभारत की कथा के भीष्म पर्व का पठन किया जाता है, साथ ही भगवान श्री कृष्ण का पूजन भी होता है। शास्त्रों के अनुसार भीष्म अष्टमी के दिन ही भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग अष्टमी तिथि को किया था लेकिन उनके निमित्त जो भी धार्मिक कर्मकाण्ड किए गए उसके लिए द्वादशी तिथि का चयन किया गया था.अत: उनके निर्वाण दिवस के पूजन को इस दिन मनाया जाता है।

भीष्म द्वादशी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा 

पंडितों के अनुसार भीष्म द्वादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुम-कुम, दूर्वा का उपयोग करें। पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार कर प्रसाद बनाएं व इसका भोग भगवान को लगाएं। इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें। देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें।  ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें और सम्पूर्ण घर-परिवार सहित अपने कल्याण धर्म,अर्थ,मोक्ष की कामना करें।

भीष्म द्वादशी व्रत का महत्व 

शास्त्रों के अनुसार भीष्म द्वादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भीष्म द्वादशी पर भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की आराधना करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं व सामर्थय के अनुसार दक्षिणा दें। इस दिन स्नान-दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस उपवास से समस्त पापों का नाश होता है। भीष्म द्वादशी का उपवास संतोष प्रदान करता है।

इसे भी पढ़ें: महाशिवरात्रि से लेकर सोमवती अमावस्या तक, फरवरी माह में मनाएं ये खास व्रत और त्योहार

भीष्म द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा

राजा शांतनु की रानी गंगा ने देवव्रत नामक पुत्र को जन्म दिया और उसके जन्म के बाद गंगा शांतनु को छोड़कर चली जाती हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा वचन दिया था। शांतनु गंगा के वियोग में दुखी रहने लगते हैं। परंतु कुछ समय बीतने के बाद शांतनु गंगा नदी पार करने के लिए मत्स्य गंधा नाम की कन्या की नाव में बैठते हैं और उसके रूप-सौंदर्य पर मोहित हो जाते हैं। राजा शांतनु कन्या के पिता के पास जाकर उनकी कन्या के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखते हैं। परंतु मत्स्य गंधा के पिता राजा शांतनु के समक्ष एक शर्त रखते हैं कि उनकी पुत्री को होने वाली संतान ही हस्तिनापुर राज्य की उत्तराधिकारी बनेगी, तभी यह विवाह हो सकता है। यही (मत्स्य गंधा) आगे चलकर सत्यवती नाम से प्रसिद्ध हुई। राजा शांतनु यह शर्त मानने से इंकार करते हैं, लेकिन वे चिंतित रहने लगते हैं। देवव्रत को जब पिता की चिंता का कारण मालूम पड़ता है तो वह अपने पिता के समक्ष आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेते हैं। पुत्र की इस प्रतिज्ञा को सुनकर राजा शांतनु उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान देते हैं। इस प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत, भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए।

जब महाभारत का युद्ध होता है तो भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे होते हैं और भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से कौरव जीतने लगते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण एक चाल चलते हैं और शिखंडी को युद्ध में उनके समक्ष खड़ा कर देते हैं। अपनी प्रतिज्ञा अनुसार शिखंडी पर शस्त्र न उठाने के कारण भीष्म युद्ध क्षेत्र में अपने शस्त्र त्याग देते हैं। जिससे अन्य योद्धा अवसर पाते ही उन पर तीरों की बौछार शुरू कर देते हैं। महाभारत के इस महान योद्धा ने शरशैय्या पर शयन किया।

इसीलिए कहा जाता हैं कि सूर्य दक्षिणायन होने के कारण शास्त्रीय मतानुसार भीष्म ने अपने प्राण नहीं त्यागे और सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। उन्होंने अष्टमी को अपने प्राण त्याग दिए थे। उनके पूजन के लिए माघ मास की द्वादशी तिथि निश्चित की गई है, इसीलिए इस तिथि को भीष्म द्वादशी कहा जाता है। भगवान ने यह व्रत भीष्म पितामह को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया था, जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पडा।

भीष्म द्वादशी पूजा मुहूर्त

इस वर्ष भीष्म द्वादशी 02 फरवरी 2023 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी.

द्वादशी तिथि आरंभ - 01 फरवरी 2023, 14:04 से.

द्वादशी समाप्त - 02 फरवरी 2023, 16:27.

भीष्म द्वादशी पर करें तिल का दान

भीष्म द्वादशी का दिन तिलों के दान की महत्ता भी दर्शाता है। इस दिन में तिलों से हवन करना। पानी में तिल दाल कर स्नान करना और तिल का दान करना ये सभी अत्यंत उत्तम कार्य बताए गए हैं। तिल दान करने से अपने जीवन में खुशियों का आगमन होता है। सफलता के दरवाजे खुलते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन को लेकर अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं, लेकिन इस पर्व पर तिलों को बेहद ही महत्वपू्र्ण माना जाता है।

भीष्म द्वादशी के दिन तिलों के दान से लेकर तिल खाने तक को शुभ बताया गया है। हिन्दू धर्म में तिल पवित्र, पापनाशक और पुण्यमय माने जाते हैं। शुद्ध तिलों का संग्रह करके यथाशक्ति ब्राह्मणों को दक्षिणासहित तिल का दान करना चाहिए। तिल के दान का फल अग्निष्टोम यज्ञ के समान होता है। तिल दान देने वाले को गोदान करने का फल मिलता है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़