आपसी भाईचारा बढ़ाती है और जीवन में खुशियाँ भी लाती है ईद

ललित गर्ग । Jun 24 2017 1:58PM

यह त्योहार रमजान के महीने की त्याग, तपस्या और व्रत के उपरांत आता है। यह प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करने वाला पर्व है। इस दिन चारों ओर खुशी और मुस्कान छाई रहती है। हर कोई ईद मनाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है।

भारत जहां साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी सद्भावना के कारण दुनिया में एक अलग पहचान बनाये हुए है वहीं यहां के पर्व−त्यौहारों की समृद्ध परम्परा, धर्म−समन्वय एवं एकता भी उसकी स्वतंत्र पहचान का बड़ा कारण है। इन त्योहारों में इस देश की सांस्कृतिक विविधता झलकती है। यहां बहुत−सी कौमें एवं जातियां अपने−अपने पर्व−त्योहारों तथा रीति−रिवाजों के साथ आगे बढ़ी हैं। प्रत्येक पर्व−त्यौहार के पीछे परंपरागत लोकमान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित है। इन पर्व−त्यौहारों की श्रृंखला में मुसलमानों के प्रमुख त्यौहार ईद का विशेष महत्व है। हिन्दुओं में जो स्थान 'दीपावली' का है, ईसाइयों में 'क्रिसमस' का है, वही स्थान मुसलमानों में ईद का है। यह त्योहार रमजान के महीने की त्याग, तपस्या और व्रत के उपरांत आता है। यह प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करने वाला पर्व है। इस दिन चारों ओर खुशी और मुस्कान छाई रहती है। हर कोई ईद मनाकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है।

इस वर्ष ईद−उल−फितर 26 जून 2017 को मनाया जाएगा। इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान का महीना कहते हैं और इस महीने में अल्लाह के सभी बंदे रोजे रखते हैं। इसके बाद दसवें महीने की 'शव्वाल रात' पहली चाँद रात में ईद−उल−फितर मनाया जाता है। इस रात चाँद को देखने के बाद ही ईद−उल−फितर का ऐलान किया जाता है। ईद−उल−फितर ऐसा त्यौहार है जो सभी ओर इंसानियत की बात करता है, सबको बराबर समझने और प्रेम करने की बात की राह दिखाता है। इस दिन सबको एक समान समझना चाहिए और गरीबों को खुशियाँ देनी चाहिए। कहते हैं कि रमजान के इस महीने में जो नेकी करेगा और रोजा के दौरान अपने दिल को साफ−पाक रखता है, नफरत, द्वेष एवं भेदभाव नहीं रखता, मन और कर्म को पवित्र रखता है, अल्लाह उसे खुशियां जरूर देता है। रमजान महीने में रोजे रखना हर मुसलमान के लिए एक फर्ज कहा गया है। भूखा−प्यासा रहने के कारण इंसान में किसी भी प्रकार के लालच से दूर रहने और सही रास्ते पर चलने की हिम्मत मिलती है।

ईद का आगमन मनुष्य के जीवन को आनंद और उल्लास से आप्लावित कर देता है। ईद लोगों में बेपनाह खुशियां बांटती है और आपसी मोहब्बत का पैगाम देती है। ईद का मतलब है एक ऐसी खुशी जो बार−बार हमारे जीवन में आती है और उसे बांटकर बहुगुणित किया जाता है। गरीब से गरीब आदमी भी ईद को पूरे उत्साह से मनाता है। दुख और पीड़ा पीछे छूट जाती है। अमीर और गरीब का अंतर मिट चुका है। खुदा के दरबार में सब एक हैं, अल्लाह की रहमत हर एक पर बरसती है। अमीर खुले हाथों दान देते हैं। यह कुरान का निर्देश है कि ईद के दिन कोई दुखी न रहे। यदि पड़ोसी दुख में है तो उसकी मदद करो। यदि कोई असहाय है तो उसकी सहायता करो। यही धर्म है, यही मानवता है, यही ईद मनाने का अर्थ है।

मुसलमान एक वर्ष में दो ईदें मनाते हैं। पहली ईद रमजान के रोजों की समाप्ति के अगले दिन मनायी जाती है जिसे ईद−उल−फितर कहते हैं और दूसरी हजरत इब्राहिम और हजरत इस्माइल द्वारा दिए गए महान बलिदानों की स्मृति में मनायी जाती है अर्थात् 'इर्द−उल−अजीहा।' ईद−उल−फितर अरबी भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य अफतारी और फितरे से है, जो हर मुसलमान पर वाजिब है। सिर्फ अच्छे वस्त्र धारण करना और अच्छे पकवानों का सेवन करना ही ईद की प्रसन्नता नहीं बल्कि इसमें यह संदेश भी निहित है कि यदि खुशी प्राप्त करना चाहते हो तो इसका केवल यही उपाय है कि प्रभु को प्रसन्न कर लो। वह प्रसन्न हो गया तो फिर तुम्हारा हर दिन ईद ही ईद है।

इस्लाम का बुनियादी उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण है और ईद का त्यौहार इसी के लिये बना है। धार्मिकता के साथ नैतिकता और इंसानियत की शिक्षा देने का यह विशिष्ट अवसर है। इसके लिए एक महीने का प्रशिक्षण कोर्स रखा गया है जिसका नाम रमजान है। इस प्रशिक्षण काल में हर व्यक्ति अपने जीवन में उन्नत मूल्यों की स्थापना का प्रयत्न करता है। इस्लाम के अनुयायी इस कोर्स के बाद साल के बाकी 11 महीनों में इसी अनुशासन का पालन कर ईश्वर के बताये रास्ते पर चलते हुए अपनी जिंदगी सार्थक एवं सफल बनाते हैं। 

रोजा वास्तव में अपने गुनाहों से मुक्त होने, उससे तौबा करने, उससे डरने और मन व हृदय को शांति एवं पवित्रता देने वाला है। रोजा रखने से उसके अंदर संयम पैदा होता है, पवित्रता का अवतरण होता है और मनोकामनाओं पर काबू पाने की शक्ति पैदा होती है। एक तरह से त्याग एवं संयममय जीवन की राह पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस लिहाज से यह रहमतों और बरकतों का महीना है। हदीस शरीफ में लिखा है कि आम दिनों के मुकाबले इस महीने 70 गुना पुण्य बढ़ा दिया जाता है और यदि कोई व्यक्ति दिल में नेक काम का इरादा करे और किसी कारण वह काम को न कर सके तब भी उसके नाम पुण्य लिख दिया जाता है। बुराई का मामला इससे अलग है जब तक वह व्यक्ति बुराई न करे उस समय तक उसके नाम गुनाह नहीं लिखा जाता।

- ललित गर्ग

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