भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है मकर संक्रान्ति पर्व

सरफ़राज़ ख़ान । Jan 14 2017 12:56PM

मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्यौहार को मनाया जाता है।

भारत में समय-समय पर अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं इसलिए भारत को त्योहारों का देश कहना गलत न होगा। कई त्योहारों का संबंध ऋतुओं से भी है। ऐसा ही एक पर्व है मकर संक्रान्ति। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्यौहार को मनाया जाता है। दरअसल, सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया को संक्रान्ति कहते हैं। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मकर संक्रान्ति कहा जाता है। यह इकलौता ऐसा त्यौहार है, जो हर साल एक ही तारीख़ पर आता है। दरअसल यह सौर्य कैलेंडर के हिसाब से मनाया जाता है। इस साल 28 साल के बाद मकर संक्रान्ति पर महायोग बन रहा है। 14 जनवरी को दोपहर 1.51 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा और सूर्य उत्तरायण हो जाएगा। मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है। इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।

तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग शाम होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि को तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति देते हैं। इस पर्व पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। देहात में बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। बच्चे तो कई दिन पहले से ही लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं। लोहड़ी पर बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। यह त्यौहार सर्दी के मौसम के बीतने की ख़बर देता है। मकर संक्रान्ति पर दिन और रात बराबर अवधि के माने जाते हैं। इसके बाद से दिन लंबा होने लगता है और रातें छोटी होने लगती हैं। मौसम में भी गरमाहट आने लगती है। 

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है। इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में तो पहले इस एक महीने में किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था। मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए हैं। 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है। उत्तराखंड के बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते हैं। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। 

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं:- 'तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।

बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। 

तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रान्ति पर भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।

- सरफ़राज़ ख़ान

(स्टार न्यूज़ एजेंसी)

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