कालाष्टमी पर भैरवजी को इस तरह करें प्रसन्न, सब कष्ट दूर हो जाएंगे
कालाष्टमी हर महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा होती है जिन्हें शिव का अवतार भी माना जाता है। इस दिन को भैरव जयन्ती या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
कालाष्टमी हर महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा होती है जिन्हें शिव का अवतार भी माना जाता है। इस दिन को भैरव जयन्ती या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। कालाष्टमी को भगवान भैरव और मां दुर्गा का दर्शन और पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है।
कालाष्टमी का महत्व
इस दिन कालभैरव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। कालभैरव भगवान शिव का ही रौद्र रूप हैं। इसलिए कालभैरव की पूजा से शिव का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही काली देवी की पूजा होती है। काली देवी की पूजा मां दुर्गा की तरह ही होती है। भगवान भैरव की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।
कालाष्टमी व्रत की विधि
कालाष्टमी के दिन भैरव की पूजा करें। उनके भजन गाएं, श्रवण और मनन करें। रात में 12 बजे के बाद घंटा बजा कर आरती करें। भैरव नाथ की सवारी कुत्ता है। इसलिए कालाष्टमी के दिन कुत्तों को बुलाकर भोजन कराएं। कालभैरव की पूजा करने से भूत-पिशाच भी दूर होते हैं।
फलदायी होता है कालाष्टमी व्रत
कालाष्टमी का व्रत करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन पूजा और उपासना से न केवल सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं बल्कि कार्यों में सफलता भी मिलती है।
कालाष्टमी से जुड़ी कथा
ऐसी मान्यता है कि विष्णु और ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया। इस विवाद को खत्म करने के लिए भगवान शिव ने एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में बहुत से ऋषि-मुनि और महात्मा आए। शिव ने इस सभा में जो निर्णय लिया वह सभी को स्वीकार्य था। लेकिन ब्रह्मा शिव के इस फैसले से नाखुश थे। तब ब्रह्मा ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया। इस अपमान को शिव सहन न कर सके और उन्होंने रूद्र रूप धारण कर लिया। अपने रौद्र रूप में वह कालभैरव कहे जाते हैं। इस रौद्र रूप में कुत्ते पर सवार थे और उनके हाथों में दण्ड था। भगवान शिव ने क्रुद्ध होकर ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। तब से भगवान शिव के कालभैरव रूप की पूजा होती है।
-प्रज्ञा पाण्डेय
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