सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करता है कामदा एकादशी का व्रत

kamda ekadshi vrat

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। सभी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति हेतु कामदा एकादशी का व्रत किया जाता है। कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 27 मार्च 2018 को पड़ रही है।

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। सभी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति हेतु कामदा एकादशी का व्रत किया जाता है। कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 27 मार्च 2018 को पड़ रही है। 

एकादशी का महत्व

एकादशी महीने में दो बार आती है एक शुक्ल पक्ष की एकादशी और एक कृष्ण पक्ष की एकादशी। हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में एकादशी करने का अलग-अलग विधान है। जो भक्त एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें दशमी से नियम का पालन करना होता है। साथ ही द्वादशी के दिन भी पारण होने तक नियमबद्ध होना पड़ता है।

खास है कामदा एकादशी

कामदा एकादशी वर्ष भर में आने वाली सभी एकादशियों में सबसे खास है। नवसंवस्तर में आने के कारण खास है कामदा एकादशी। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति कामदा एकादशी का उपवास करता है उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। साथ ही कामदा एकादशी को भलीभांति करने से वाजपेयी यज्ञ के समान फल मिलता है।

कामदा एकादशी से जुड़ी कथा

एक राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कामदा एकादशी के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। तब राजा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उन्हें विधिवत कथा सुनायी। प्राचीन काल में एक नगर था उसका नाम रत्नपुर था। वहां के राजा बहुत प्रतापी और दयालु थे जो पुण्डरीक के नाम से जाने जाते थे। पुण्डरीक के राज्य में कई अप्सराएं और गंधर्व निवास करते थे। इन्हीं गंधर्वों में एक जोड़ा ललित और ललिता का भी था। ललित तथा ललिता में अपार स्नेह था। एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में नृत्य का आयोजन किया गया जिसमें अप्सराएं नृत्य कर रही थीं और गंधर्व गीत गा रहे थे। उन्हीं गंधर्वों में ललित भी था जो अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था। गाना गाते समय वह अपनी पत्नी को याद करने लगा जिससे उसका एक पद खराब गया। कर्कोट नाम का नाग भी उस समय सभा में ही बैठा था। उसने ललित की इस गलती को पकड़ लिया और राजा पुण्डरीक को बता दिया।

कर्कोट की शिकायत पर राजा ललित पर बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया। राक्षस बनकर ललित जंगल में घूमने लगा। इस पर ललिता बहुत दुखी हुयी और वह ललित के पीछ जंगलों में विचरण करने लगी। जंगल में भटकते हुए ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंची। तब ऋषि ने उससे पूछा तुम इस वीरान जंगल में क्यों परेशान हो रही हो। इस पर ललिता ने अपने अपनी व्यथा सुनायी। श्रंगी ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने को कहा। कामदा एकादशी के व्रत से ललिता का पति ललित वापस गंधर्व रूप में आ गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी स्वर्ग लोक जाकर वहां खुशी-खुशी रहने लगे।

शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि का प्रारम्भ 27 मार्च को 3.43 से होगा। एकादशी तिथि 28 मार्च 1.31 तक रहेगी।

पूजा विधि

कामदा एकादशी के व्रत में सबसे पहले मन से शुद्ध होने का संकल्प करें। उसके बाद प्रातः स्नान कर शुद्ध हो जाएं। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु की पूजा दूध, तिल, फल-फूल और पंचामृत से करना चाहिए। साथ ही एकादशी की कथा का विशेष महत्व होता है। इसके बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा दें फिर पारण करने। इस प्रकार पारण करने से भक्तों को पुण्य मिलता है।

पारण का समय

पारण 28 मार्च को 6.59 से 8.46 तक कर सकते हैं।

-प्रज्ञा पाण्डेय

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