सभी पापों का नाश करती है पापमोचिनी एकादशी, इस तरह करें पूजा

Papmochini Ekadashi destroys all sins

चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। पापमोचिनी एकादशी साल में आने वाली अन्य एकादशियों से भिन्न और विशेष फलदायी होती है। इस साल पापमोचिनी एकादशी 13 मार्च दिन मंगलवार को पड़ रही है।

चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। पापमोचिनी एकादशी साल में आने वाली अन्य एकादशियों से भिन्न और विशेष फलदायी होती है। इस साल पापमोचिनी एकादशी 13 मार्च दिन मंगलवार को पड़ रही है। तो आइए पापमोचिनी एकादशी के बारे में कुछ खास जानकारी पर चर्चा करते हैं। 

पापमोचिनी एकादशी का महत्व 

होलिका दहन तथा चैत्र मास की नवरात्रि के बीच में आने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुराणों में ऐसी माना जाता है कि मनुष्य अगर अपने किए गए पापों का पश्चाताप करना चाहता है तो उसे पापमोचिनी एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। यह एकादशी व्यक्ति को उसके द्वारा किए पापों से मुक्त करती है। 

पापमोचिनी एकादशी से सम्बन्धित कथा

ऐसी कथा प्रचलित है कि चित्ररथ नामक जंगल में एक ऋषि घोर तपस्या में लीन थे। उनके तप से देवराज इन्द्र बहुत चिन्तित हुए और उन्होंने एक अप्सरा को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। उस अप्सरा का नाम मंजूघोषा था। मंजूघोषा को देख ऋषि मोहित हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर उसके साथ वैवाहिक जीवन का सुख लेने लगे। उसके बाद मंजूघोषा ने कहा कि अब उन्हें स्वर्ग जाना होगा। इस बात से ऋषि क्रुद्ध हुए और उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया। 

ऋषि के द्वारा दिए गए शाप से मंजूघोषा बहुत दुखी हुईं और उन्होंने ऋषि से शाप मुक्त करने की प्रार्थना की। तब ऋषि ने उन्हें पापमोचिनी एकादशी करने का आदेश दिया और स्वयं भी उनके साथ एकादशी का व्रत किया। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से दोनों श्राप मुक्त हुए और पुनः अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

पापमोचिनी एकादशी की पूजा विधि 

पापमोचिनी एकादशी के दिन प्रातः उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें और अपना ध्यान ईश्वर में ही लगाएं। इस दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी के दीए जलाएं और अपने आपको सभी पापों से मुक्त करने के लिए ईश्वर से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें। साथ ही एकादशी के दिन पापमोचिनी एकादशी की व्रत कथा भी सुनें। एकादशी को व्रत रह कर द्वादशी के दिन अपना व्रत खोलें। यह याद रखें कि द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ही पारण करें। 

इसके अलावा जो भक्त एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें दशमी के दिन सादा और सात्विक किस्म का भोजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन प्रातः स्नान कर, भगवान विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

-प्रज्ञा पाण्डेय

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