संतान चाहिए या संतान की रक्षा की कामना है तो करें पुत्रदा एकादशी व्रत

Pausha Putrada Ekadashi 2017: Know What Is The Importance Of this Day
शुभा दुबे । Dec 29 2017 10:06AM

इस दिन रखा जाने वाला व्रत संतानदायी है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से संतान की रक्षा भी होती है। निःसंतान और संतान सुख की चाहत रखने वाले दंपतियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।

पौष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन रखा जाने वाला व्रत संतानदायी है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से संतान की रक्षा भी होती है। निःसंतान और संतान सुख की चाहत रखने वाले दंपतियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। पुत्रदा एकादशी वर्ष में दो बार आती है, एक बार श्रावण माह में तो दूसरी पौष माह में। इस बार पुत्रदा एकादशी हिंदू पंचाग के अनुसार 29 दिसंबर 2017 को है।

व्रत एवँ पूजन विधि

दशमी तिथि की रात से ही भगवान श्री विष्णु का नाम जपना शुरू कर देना चाहिए। एकादशी के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान श्री विष्णु की पूजा करें। भगवान के चित्र के आगे दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें और कलश स्थापित कर उस पर लाल कपड़ा जरूर चढ़ाएँ। चित्र की जगह यदि आपके पास श्री विष्णुजी की प्रतिमा है तो उसे स्नान कराएँ और फिर चंदन, सिंदूर, फूल आदि से पूजन करें। व्रत का निष्ठापूर्वक पालन करें और रात्रि को ही पारण करें। इस दिन दान पुण्य का भी काफी महत्व है और भगवान का भजन-कीर्तन भी करना चाहिए।

व्रत कथा-

सुकेतु नामक गृहस्थ की पत्नी का नाम शैव्या था। वह निःसंतान थी। दोनों पति-पत्नी संतान के लिए व्याकुल थे। एक बार निराश होकर सुकेतु ने आत्महत्या करने की ठान ली। वह पत्नी को अकेला छोड़कर जंगलों में चला गया और भूखा प्यासा एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने भाग्य को कोसने लगा। तभी उसे किसी ऋषि के कंठ से उच्चरित वेद मंत्र सुनाई दिये। ना जाने उस आवाज में कैसा जादू था कि वह उस ध्वनि की ओर चल दिया।

थोड़ी दूर चलने पर उसने देखा कि एक स्थान पर बहुत से ब्राह्मण कमलों से भरे तालाब के तट पर वेदों का पाठ कर रहे हैं। सुकेतु भी श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके वेद-पाठ सुनने के लिए बैठ गया। वेद-पाठ के उपरांत सुकेतु ने ब्राह्मणों को अपने आने का कारण बताया। ब्राह्मणों ने उसकी व्यथा समझ कर उसे 'पुत्रदा एकादशी' का व्रत करने की सलाह दी। सुकेतु ने घर आकर कालांतर में पत्नी समेत विधिपूर्वक 'पुत्रदा एकादशी' का व्रत किया जिसके फलस्वरूप उसे पुत्र प्राप्त हुआ।

तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ है। अतः निःसंतानों को चाहिए कि वे पूरे श्रद्धा भाव से इस व्रत को करें, भगवान जरूर ही फल प्रदान करेंगे।

-शुभा दुबे

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