संकष्टी चतुर्थी व्रत से होती है सभी बाधाएं दूर, ऐसे करें पूजा

Sankashti Chaturthi

संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित कई कथाएं प्रचलित है। एक बार शिवजी और माता पार्वती एक दूसरे साथ समय व्यतीत कर रहे थे। तब मां पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। लेकिन इस खेल में सवाल यह उठा कि दोनों के बीच हार-जीत का फैसला कौन करेगा।

आज संकष्टी चतुर्थी है, इस दिन गणपति की विधि-विधान से पूजा होती है। इस चतुर्थी को संकट हरने वाली चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत से विशेष फल की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं। 

संकष्टी चतुर्थी पर शुभ योग

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार संकष्टी चतुर्थी पर शिव और परिघ योग रहेगा। ये दोनों ही योग बहुत शुभ माने जाते हैं। 30 अप्रैल सुबह 08 बजकर 03 मिनट तक परिघ योग रहेगा। इसके बाद से शिव योग आरंभ हो जाएगा। पंडितों का मानना है कि यदि कोई शत्रु से संबंधित मामला हो तो परिध योग में विजय प्राप्ति होती है। शिव बहुत ही शुभ फलदायक माना जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार इस दिन गणेश भगवान की विधि विधान से पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा 

संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित कई कथाएं प्रचलित है। एक बार शिवजी और माता पार्वती एक दूसरे साथ समय व्यतीत कर रहे थे। तब मां पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। लेकिन इस खेल में सवाल यह उठा कि दोनों के बीच हार-जीत का फैसला कौन करेगा। इस समस्या से निपटने के लिए भगवान शिव ने घास-फूंस का एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके बाद पुतले से कहा कि अब हार-जीत का फैसला करना। चौपड़ खेलने के दौरान पार्वती तीन बार जीतीं। लेकिन बालक से पूछने पर उसने उत्तर दिया कि महादेव जीते। इस पर माता पार्वती बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने उसे कीचड़ में पड़ने रहने का अभिशाप दे दिया। इससे बालक दुखी हो गया उसने देवी से प्रार्थना की। तब देवी ने कहा कि आज से एक साल बाद यहां नागकन्याएं आएंगी उनके कहे अनुसार तुम गणेश जी की पूजा करना। ऐसा करने तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। उस बालक ने गणेश जी का व्रत किया। उपवास से देवता प्रसन्न हुए और उन्होने बालक से वर मांगने को कहा। बालक ने कहा कि मुझे अपने माता-पिता से मिलने कैलाश पर्वत जाना है। आप मुझे आर्शीवाद दें। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। इसके बाद उसने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 दिन तक गणेश जी का व्रत करने से माता पार्वती प्रसन्न हो गयीं।

संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा 

संकष्टी चतुर्थी का अवसर बहुत खास होता है। इसलिए इस दिन जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले वस्त्र पहनें। इसके बाद चौकी साफ आसन बिछाएं और उस पर गंगाजल का छिड़कें। अब चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र विराजित करें। गणेश जी को फूल माला चढ़ाएं। अब दीपक, अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाएं। उसके बाद  गणेश चालीसा पढ़ें तथा गणेश मंत्रों का जाप करें। भगवान गणेश की आरती करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा करें।

संकष्टी चतुर्थी के हैं कई नाम 

संकष्टी चतुर्थी भक्तों के बीच में कई नामों से प्रसिद्ध है। कहीं इसे संकट चौथ कहा जाता है तो कोई इसे संकटहारा के नाम से जानता है। मंगलवार को पड़ने वाला चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। अंगारकी चतुर्थी छः महीने में एक बार आती है। इस दिन व्रत रहने से पूर्ण संकष्टी का फल मिलता है। दक्षिण भारत में यह व्रत बहुत हर्ष के साथ मनाया जाता है। 

संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में जानकारी

हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को दूर करने वाली चतुर्थी माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी की खास बात यह है कि यह पूजा सुबह और शाम दोनों समय में की जाती है। जहां सुबह व्रत का संकल्प लिया जाता है, वहीं शाम को आरती की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से संकट से मुक्ति मिलती है। गणेश चतुर्थी का व्रत भगवान गणेशजी को समर्पित है तथा यह व्रत हर महीने की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।

पूरे देश में प्रसिद्ध है संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी न केवल उत्तर भारत में बल्कि दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत में भी यह व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक किया जाता है। 

संकष्टी चतुर्थी व्रत से  लाभ

धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि संकष्टी के दिन गणपति की पूजा-आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने भक्तों की सारी विपदाओं को दूर करते हैं और उनकी मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं। चन्द्र दर्शन भी चतुर्थी के दिन बहुत शुभ माना जाता है। सूर्योदय से प्रारम्भ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है।

- प्रज्ञा पाण्डेय 

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