वैशाखी पर पंजाब में होती है धूम, जगह-जगह लंगर और ढोल

वैशाखी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और आनंदपुर साहब के गुरुद्वारे में पांच प्यारों से वैशाखी पर्व पर ही बलिदान का आह्वान किया था।

हिन्दुओं के देशी महीने वैशाख माह की मेष संक्रांति के दिन 13 अप्रैल को वैशाखी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है लेकिन पंजाब में इसकी छटा निराली ही होती है। पंजाब में इसका विशेष महत्व है। वैशाखी का सीधा और साफ मतलब है कि किसानों की फसलें कटने के लिए तैयार हैं। किसानों को इस बात की खुशी होती है कि जो मेहनत उन्होंने की थी, वह सफल रही और अब उसका फल मिलने वाला है। 

अप्रैल माह में रवी फसल कटकर घर आती है और किसान इसे बेचकर धन कमाते हैं। इसलिए इसे हर्ष और उल्लास का पर्व माना जाता है। हर वर्ष वैशाखी के दिन पंजाब में मेले लगते हैं और जगह-जगह लंगर एवं छबील लगाये जाते हैं तथा पंजाबी लोग खुशी-खुशी लंगर बांटते और खाते हैं। वैसे तो हर पंजाबी गुरूद्वारे में लंगर और छबील लगाई जाती है लेकिन आनंदपुर साहब में उस इलाके की सारी बेल्ट में कदम-कदम पर लंगर लगे होते हैं और जहग-जगह ढोल-नगाड़े एवं पंजाबी लोकगीतों की धमक सुनाई पड़ती है। वैशाखी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और आनंदपुर साहब के गुरुद्वारे में पांच प्यारों से वैशाखी पर्व पर ही बलिदान का आह्वान किया था।

यह पर्व पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके साथ ही जहां-जहां सिख धर्म से जुड़े लोग बसे हैं वहां वैशाखी पर्व जरूर मनाया जाता है़। वैशाखी के दिन रात होते ही आग जलाकर लोग उसके चारों तरफ एकत्र होते हैं और फसल कटने के बाद आए धन की खुशियां मनाते हैं। नए अन्न के दाने अग्नि को समर्पित करते हुए पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। लोग नाच गाकर खुशियां मनाते हैं। गुरुद्वारों में विशेष अरदास करते हैं। आनंदपुर साहब में, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, विशेष अरदास और पूजा होती है। गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से स्नान करवा कर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर प्रतिष्ठित किया जाता है और यह परम्परा साल दर साल निभाई जाती है। यह पर्व विशुद्ध रूप से धार्मिक है लेकिन इसका महत्व किसानों के लिए तब और बढ़ जाता है जब वे गुरु की अरदास के साथ-साथ अपनी खेती से होने वाली आय से होने वाले फायदे का जश्न मनाते हैं। पंज प्यारे पंजवाणी सुनाते हैं और लोग अरदास के बाद गुरु जी को कड़ाह प्रसाद का भोग लगाया जाता है और प्रसाद भोग लगाने के बाद सभी गुरुद्वारे के लंगर हाल में भोजन करते हैं।

- सोनिया चोपड़ा

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