वरुथिनी एकादशी व्रत करने से मिलती है सभी पापों से मुक्ति
वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा का पता इसी बात से चलता है कि सभी दानों में सबसे उत्तम तिलों का दान कहा गया है और तिल दान से श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है और स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ इस एकादशी का व्रत करने का उपरान्त जो फल प्राप्त होता है, वह कहा गया है।
वरुथिनी एकादशी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत करके जुआ खेलना, नींद, पान, दातुन, परनिन्दा, क्षुद्रता, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा झूठ को त्यागने का माहात्म्य है। ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है। इस व्रत को करने वाले को हविष्यान खाना चाहिए तथा व्रती के परिवार के सदस्यों को रात्रि को भगवद् भजन करके जागरण करना चाहिए।
भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है-
कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।
शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।
इससे तात्पर्य यह है कि कांस्य पात्र, मांस तथा मसूर आदि का ग्रहण नहीं करें। एकादशी को उपवास करें और इस दिन जुआ और निद्रा का त्याग करें। रात को भगवान का नाम स्मरण करते हुए जागरण करें और द्वादशी को मांस, कांस्य आदि का परित्याग करके विधि विधान से पारण करें।
शुभ फलों की प्राप्ति होती है
शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से दुखी को सुख मिलता है तथा राजा के लिए स्वर्ग का मार्ग खुलता है। सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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इस व्रत की महिमा
इस व्रत की महिमा का पता इसी बात से चलता है कि सभी दानों में सबसे उत्तम तिलों का दान कहा गया है और तिल दान से श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है और स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ इस एकादशी का व्रत करने का उपरान्त जो फल प्राप्त होता है, वह कहा गया है। भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
कथा− प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मांधाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त ही दानशील और तपस्वी राजा था। एक दिन तपस्या करते समय वह जंगली भालू राजा मांधाता का पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद भालू राजा को घसीटकर वन में ले गया। राजा घबराकर विष्णु भगवान से प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मारकर अपने भक्त की रक्षा की। भगवान विष्णु ने राजा मांधाता से कहा− हे वत्स मथुरा में मेरी वाराह मूर्ति की पूजा वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारा पूर्व जन्म का अपराध था।
-शुभा दुबे
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