पर्दे पर ज्यादा समय नहीं रह पाएगी ''ग्रेट ग्रैंड मस्ती''
इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म ''ग्रेट ग्रैंड मस्ती'' कथानक और निर्देशन के लिहाज से इतनी कमजोर है कि दो तीन सप्ताह भी बड़े सेंटरों पर टिक पाएगी इसकी गुंजाइश कम ही है।
इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'ग्रेट ग्रैंड मस्ती' दिखाती है कि पैसा कमाने के लिए कैसे राह बदल ली जाती है। रोमांटिक और साफ सुथरी हिट फिल्में देने वाले कामयाब निर्देशक इंद्र कुमार की पहचान 'दिल', 'बेटा', 'राजा', 'इश्क' और 'धमाल' फिल्में यदि आपने देखी हैं तो आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि 'ग्रेट ग्रैंड मस्ती' भी उन्होंने बनाई है। इंद्र कुमार ने द्विअर्थी संवादों वाली फिल्म बनाने का सिलसिला 'मस्ती' से शुरू किया जोकि सफल रही थी उसके बाद वह 'ग्रैंड मस्ती' लेकर आए जोकि अपनी लागत निकाल ले गयी थी लेकिन यह फिल्म कथानक और निर्देशन के लिहाज से इतनी कमजोर है कि दो तीन सप्ताह भी बड़े सेंटरों पर टिक पाएगी इसकी गुंजाइश कम ही है।
फिल्म की कहानी पहले की तरह ही तीन दोस्तों के इर्दगिर्द घूमती है। अमर सक्सेना (रितेश देशमुख), मीत मेहता (विवेक ओबेरॉय) और प्रेम चावला (आफताब शिवदासानी) की खूबसूरत बीवियां हैं लेकिन तीनों पारिवारिक जिंदगी से खुश नहीं हैं और बाहर जब भी मौका मिलता है हाथ मारने की कोशिश करते हैं। अमर अपनी बरसों पुरानी हवेली को बेचने के लिए गांव जा रहा होता है तो अमर के साथ मीत और प्रेम भी मस्ती करने के लिए गांव जाते हैं। यहां इन्हें पता लगता है कि गांव वाले अमर की हवेली को भूतिया कहते हैं पर ये तीनों दोस्त इस बात को नहीं मानते और हवेली जाते हैं। यहां इनकी मुलाकात रागिनी (उर्वशी रौतेला) से होती है। रागिनी से मिलने के बाद तीनों उसको पाने के सपने देखने लगते हैं। कहानी में अंताक्षरी बाबा (संजय मिश्रा) रामसे (सुदेश लहरी) और गांव की खूबसूरत लड़की शिनी (सोनाली राउत) भी है।
अभिनय के मामले में एक रितेश देशमुख ही कुछ ठीकठाक नजर आये। रितेश मराठी फिल्मों के भी कामयाब अभिनेता हैं और हिंदी फिल्मों में भले ही उन्हें एक ही तरह के रोल मिल रहे हों लेकिन अभिनय उनका अच्छा रहता है। विवेक ओबेराय ने बॉलीवुड में जिस तरह के रोलों से एंट्री ली थी अब वह सब कुछ उसके विपरीत करते हुए नजर आते हैं। आफताब शिवदासानी का काम ठीकठाक रहा। उनकी गाड़ी ऐसे ही चलती रहे तो भी ठीक ही है। रितेश की सास के रोल में ऊषा नाडकर्णी का काम दर्शकों को पसंद आएगा। उर्वशी और श्रद्धा दास का काम भी ठीकठाक है। अन्य सभी कलाकार सामान्य रहे। गीत-संगीत साधारण है। इंद्र कुमार की पहले की फिल्मों में गीत संगीत बेहद उम्दा किस्म का हुआ करता था। श्रेयश तलपड़े और सुदेश लहरी का फिल्म में कैमियो है। फिल्म द्विअर्थी संवादों से भरी पड़ी है। निर्देशन के लिहाज से इंद्र कुमार ने निराश किया। फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है और इंटरवल से पहले कहानी की रफ्तार बेहद सुस्त है।
कलाकार- रितेश देशमुख, विवेक ओबेराय, आफताब शिवदासानी, उर्वशी रौतेला, सोनाली राउत, सना खान।
निर्देशक इंद्र कुमार।
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