बुधिया सिंहः फिल्म अच्छी, पर कई सवाल अनुत्तरित

प्रीटी । Aug 8 2016 3:30PM

कुछ वर्षों पहले खूब सुर्खियों में रहे धावक बुधिया सिंह की कहानी पर आधारित है इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म ''बुधिया सिंहः बार्न टू रन''। वैसे इस फिल्म का असल नाम ''दूरंतो'' है।

कुछ वर्षों पहले खूब सुर्खियों में रहे धावक बुधिया सिंह की कहानी पर आधारित है इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'बुधिया सिंहः बार्न टू रन'। वैसे इस फिल्म का असल नाम 'दूरंतो' है। फिल्म को विदेशी फिल्म समारोहों में इसी नाम से प्रदिर्शत किया गया लेकिन जब भारत में फिल्म रिलीज करने का समय आया तो निर्माता ने बुधिया के नाम को भुनाने के लिए फिल्म का टाइटल बदल दिया। वैसे यह चौंकाने वाली बात है कि किस तरह सुर्खियों में रहा व्यक्ति समय के साथ गुमनामी के दौर में चला जाता है और उसकी मदद को सदैव तत्पर रहने वाले लोग समय के साथ अपना हाथ पीछे खींच लेते हैं।

बुधिया सिंह (मास्टर मयूर) की गरीब मां (तिलोत्तमा शोम) ने अपनी गुजर बसर के लिए कुछ रुपयों के लिए अपने चार साल के बेटे को कोच बिरंची दास को दे दिया था। जूडो सेंटर चलाने वाले कोच बिरंची दास (मनोज बाजपेयी) ने बुधिया को एक उद्देश्य के साथ तैयार करना शुरू किया। एक दिन बुधिया ने किसी कारणवश सेंटर के एक बच्चे को गाली दी तो बिरंची ने उसे सजा के तौर पर सेंटर का चक्कर लगाने की सजा दी। उसके बाद वह परिवार के साथ बाजार चले गए। जब वह कई घंटों के बाद लौटे तो देखा बुधिया तब से ही दौड़ रहा है। बिरंची को लगता है कि बुधिया में दौड़ने की अद्भुत क्षमता है और वह बुधिया को अलग तरह का प्रशिक्षण देना शुरू कर देते हैं। इसकी बदौलत बुधिया 65 किमी की दूरी सिर्फ 7 घंटे 2 मिनट में दौड़कर पूरी कर लेता है।

बुधिया पुरी से भुवनेश्वर तक की जिस दूरी को दौड़कर पूरा करता है वह दूरी मैराथन रेस से भी कहीं ज्यादा थी। इस दौड़ में बुधिया और उसके कोच के साथ शहर के हजारों लोग और सीआरपीएफ के जवान भी शामिल होते हैं। चार साल के बुधिया सिंह का नाम सबसे कम उम्र के मैराथन रेसर के रूप में लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में दर्ज होता है तो देश भर के लोग इस बच्चे को 2016 में होने वाले ओलिंपिक में स्वर्ण पदक का दावेदार घोषित कर देते हैं तो दूसरी ओर ओडिशा के बाल कल्याण विभाग को यह रास नहीं आता।

बुधिया के रोल में मास्टर मयूर ने बहुत अच्छा काम किया है। मनोज वाजपेयी ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। फिल्म की पटकथा इतनी कसी हुई है कि आपको कहीं भी आराम का मौका ही नहीं मिलेगा। निर्देशक की यह सफलता कही जा सकती है कि उन्होंने कहानी के शुरू से लेकर अंत तक सभी किरदारों पर पूरी पकड़ बनाए रखी। फिल्म का अचानक कई सवाल छोड़कर खत्म हो जाना दर्शकों को जरूर खटकेगा। गीत संगीत कहानी के मिजाज के मुताबिक ही है।

कलाकार- मनोज वाजपेयी, मास्टर मयूर, तिलोत्तमा शोम, गजराज रॉव, श्रुति मराठे, छाया कदम।

निर्देशक सौमेन्द्र पढी।

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