निष्पक्ष ढंग से ''आपातकाल के दौर'' को नहीं दिखा पाई इंदु सरकार

इस फिल्म को देखकर आपातकाल के दौर के बारे में जानना चाहे तो कहा जा सकता है कि यह फिल्म निष्पक्ष ढंग से उस दौर की हकीकत को नहीं रख पायी है। फिल्म के कुछ संवाद वाकई अच्छे बन पड़े हैं।
निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म 'इंदु सरकार' आखिरकार काफी विवादों के बाद बड़े पर्दे पर आ गयी। फिल्म 1975-77 के बीच देश में लगे आपातकाल के दौर की कहानी है। जब इतने गंभीर विषय पर फिल्म बन रही हो तो अपेक्षा की जाती है कि होमवर्क ठीक से किया जाये लेकिन ऐसा लगता है कि फिल्म को बनाने की बड़ी जल्दबाजी थी इसलिए किसी भी पक्ष को निर्देशक ठीक से नहीं कह पाये हैं। अगर आज की पीढ़ी इस फिल्म को देखकर आपातकाल के दौर के बारे में जानना चाहे तो कहा जा सकता है कि यह फिल्म निष्पक्ष ढंग से उस दौर की हकीकत को नहीं रख पायी है। फिल्म के कुछ संवाद वाकई अच्छे बन पड़े हैं।
फिल्म की कहानी इंदु (कीर्ति कुल्हारी) के इर्दगिर्द घूमती है। उसका पति सरकारी कर्मचारी है और आपातकाल के दौरान सरकार के आदेशों का पालन करते करते फायदा उठाना चाहता है लेकिन उसकी पत्नी को यह सब ठीक नहीं लगता और वह विद्रोही बन जाती है। जब वह यह देखती है कि उसका पति नेताओं के सुर में सुर मिलाकर सारे नियम तोड़ रहा है और लोगों के मानवीय अधिकारों का हनन किया जा रहा है तो उससे चुप नहीं बैठा जाता। वह हिम्मत इंडिया संगठन से जुड़ जाती है और विद्रोह का झंडा बुलंद कर लेती है।
अभिनय के मामले में इंदु के रोल में कृति कुल्हारी का काम प्रभावी रहा। उन्हें फुटेज भी ज्यादा मिली है और उनके हिस्से में संवाद भी अच्छे आये हैं। इंदु के पति के रोल में तोता रॉय चौधरी का काम भी दर्शकों को पसंद आयेगा। अनुपम खेर, नील नितिन मुकेश और अन्य कलाकारों का काम भी अच्छा रहा। फिल्म में एक कव्वाली भी है लेकिन यह कहानी की गति को प्रभावित करती हुई प्रतीत हुई। फिल्म में राजनीतिक साजिशों को निर्देशक ने बहुत अच्छे ढंग से दिखाया है। निर्देशक मधुर भंडारकर की यह फिल्म उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले बहुत कमजोर साबित हुई है।
कलाकार- कृति कुल्हारी, तोता रॉय चौधरी, अनुपम खेर, नील नितिन मुकेश और निर्देशक मधुर भंडारकर।
- प्रीटी
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