लखनऊ सेंट्रल में कैदियों की निजी जिंदगी और दुर्दशा का बखान

film review of lucknow central
प्रीटी । Sep 16 2017 5:28PM

इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म ''लखनऊ सेंट्रल'' जेल पर आधारित एक और हिन्दी फिल्म है। अभी पिछले सप्ताह ही लगभग इसी विषय पर आधारित ''कैदी बैंड'' आई थी जोकि एक सप्ताह भी बड़े पर्दे पर नहीं टिक पाई।

इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'लखनऊ सेंट्रल' जेल पर आधारित एक और हिन्दी फिल्म है। अभी पिछले सप्ताह ही लगभग इसी विषय पर आधारित 'कैदी बैंड' आई थी जोकि एक सप्ताह भी बड़े पर्दे पर नहीं टिक पाई। इस फिल्म में फरहान अख्तर के होने और उनके द्वारा फिल्म के प्रचार में दिन-रात एक कर देने से यह लाइम लाइट में जरूर आई लेकिन धीमी गति से आगे बढ़ती इस फिल्म में ऐसा कुछ नया नहीं है जोकि आपने पहले नहीं देखा हो। मनोरंजन की दृष्टि से यदि इस फिल्म को देखने जाएंगे तो निराश होंगे।

फिल्म की कहानी जेल के कैदियों की निजी जिंदगी और जेलों में उनकी दुर्दशा की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है। किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) मुख्य किरदार है और वह एक बड़ा सिंगर बनना चाहता है। उसका सपना अपना एक बैंड बनाने का भी है इसके लिए वह हमेशा अपने दोस्तों को मनाता रहता है। एक दिन शहर में सिंगर मनोज तिवारी का कंसर्ट होता है तो किशन भी उसमें जाता है क्योंकि वह उनका बहुत बड़ा प्रशंसक है। वह अपने गानों की एक सीडी मनोज को देना चाहता है लेकिन उन तक पहुंच नहीं पाता, इस दौरान कार्यक्रम में एक आईएएस अधिकारी से उसकी झड़प हो जाती है। किशन की मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब कुछ ही देर बाद आईएएस अधिकारी की हत्या हो जाती है। झड़प के चश्मदीदों के बयानों के आधार पर किशन को गिरफ्तार कर लिया जाता है। जांच के दौरान किशन का दोस्त भी पुलिस की परेशानी से बचने के लिए किशन के खिलाफ गवाही दे देता है तो उसे उम्रकैद की सजा सुना कर जेल भेज दिया जाता है। किशन जेल में निराश रहता है लेकिन कैदियों के सुधार के लिए काम कर रही गायत्री कश्यप (डायना पेंटी) से जब उसकी मुलाकात होती है तो उसे कुछ राहत पहुंचती है। वह कैदियों का एक बैंड बनाना चाहती है। दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि 15 अगस्त को होने वाले कार्यक्रम में जेल का बैंड भी अपने कार्यक्रम का प्रदर्शन करे। वह गायत्री को बैंड बनाने की जिम्मेदारी सौंपते हैं और जेलर (रोनित रॉय) की अनिच्छा के बावजूद वह जेल के कुछ और कैदियों को साथ लेकर बैंड बनाती है।

फरहान अख्तर अच्छे अभिनेता हैं यह बात उन्होंने एक बार फिर साबित की है। डायना पेंटी अपने रोल में जमी हैं। मुख्यमंत्री के रोल में रवि किशन थोड़ा फीके नजर आये। दीपक डोबरियाल, रोनित रॉय और मनोज तिवारी प्रभावी रहे। अन्य सभी कलाकार सामान्य हैं। फिल्म का गीत-संगीत सामान्य है। निर्देशक रंजीत तिवारी की यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है खासकर इस बात के लिए कि जेल में कैदियों की हालत किस प्रकार दयनीय रहती है।

कलाकार- फरहान अख्तर, रवि किशन, मनोज तिवारी, दीपक डोबरियाल, डायना पेंटी, रोनित रॉय, संगीत- अर्जुन, निर्माता- निखिल आडवाणी और निर्देशक- रंजीत तिवारी।

प्रीटी

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