दमे के रोगी का जीवन बहुत हद तक बदल जाता है
इस रोग में सांस की नली की भीतरी दीवारों में सूजन आ जाती है तथा वायुनली की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं। इस कारण इसमें बलगम चिपक जाता है जो श्वास नली में रुकावट पैदा कर देता है।
दमा एक गंभीर रोग है। हमारे देश में लगभग चार करोड़ लोग दमे के रोगी हैं। इसमें भी लगभग दस प्रतिशत रोगी स्कूल बच्चे हैं। दमे की भयावहता इसी बात से स्पष्ट है कि दमे के रोगी का जीवन सामान्य व्यक्ति से बहुत हद तक बदल जाता है।
इस रोग में रोगी की सांस की नली की भीतरी दीवारों में सूजन आ जाती है तथा वायुनली की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं। इस कारण इसमें बलगम चिपक जाता है जो श्वास नली में रुकावट पैदा कर देता है। यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है।
अधिकांश लोगों में दमा एलर्जन्स के कारण होता है। ये एलर्जन्स कुछ भी हो सकते हैं जैसे फूलों के परागकण, धूल, धुआं या कोई रसायन आदि। ये एलर्जन्स हवा में तैरते हैं और मौसमी तौर पर उत्पन्न होते हैं। गैर मौसमी एलर्जन्स पंखों तथा अन्य धूल भरे स्थानों में पाए जाते हैं। जिन लोगों की वायुनली काफी संवेदनशील होती है। उनमें से किसी भी गैर−विशिष्ट किस्म के उत्प्रेरक की उपस्थिति में वह (वायुनली) सक्रिय हो उठती है और दमा उभर आता है। ये उत्प्रेरक कई हो सकते हैं।
रोगी की तकलीफ तब ज्यादा बढ़ जाती है जबकि दमा उखड़ता है। ऐसा प्रायः रात में या सुबह तड़के होता है। दमा के उखड़ने पर छाती में जकड़न सी महसूस होती है। साथ ही सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। विशेष तौर पर सांस छोड़ते हुए दम घुटने सा लगता है। सामान्यता कुछ घंटों बाद यह अटैक तब खत्म होता है जबकि काफी कड़ा और चिपचिपा सा बलगम निकलता है। दमे का यह अटैक कब होगा और कितनी अवधि तक रहेगा इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस अटैक के बाद या इसके साथ सूखी खांसी का दौरा भी उठता है।
दमे के इलाज के लिए इसके लक्षणों को पहचान कर उन्हें कम से कम दवाओं के प्रयोग से कम या खत्म करने का प्रयास किया जाता है। इलाज के लिए कई बातों को ध्यान में रखा जाता है जैसे रोगी को अटैक कितने समय में कितनी बार पड़ता है और कितनी देर तक रहता है। रात के समय रोगी की श्वास प्रक्रिया कैसी रहती है, उसकी निश्वसन की क्षमता आदि। इन सब बातों को ध्यान में रखकर प्रत्येक रोगी के लिए विशेष इलाज योजना बनाई जाती है। अक्सर डॉक्टर रोगी को दमे के अटैक के कारणों, दवाओं के सही तथा पर्याप्त उपयोग तथा इन्हेलर के प्रयोग के बारे में बताते हैं जो इलाज में सहायक होता है। अपने रोग के बारे में जानकर प्रायः रोगी अटैक की स्थिति में बच सकता है। इसके अतिरिक्त डॉक्टर पीक फ्लोमीटर के प्रयोग की सलाह भी देते हैं यह एक छोटा सा यंत्र है जिसे आसानी से कहीं भी ले जाया सकता है। यह दमे के इलाज में काफी मददगार साबित होता है।
दमे के इलाज के लिए दवा लेने का सबसे बेहतर तरीका है ऐयरोसोल आधार की दवाएं लेना। यह दवा सीधे सांस की नली में पहुंचकर तुरन्त तथा तेजी से आराम पहुंचाती है। इसमें दवा की बहुत कम मात्रा प्रयोग की जाती है अतः इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता। ऐयरोसोल ब्रेस दवा लेने के लिए 'मीटर्ड डोज इन्हेलर' काफी सफल होते हैं परन्तु इनके प्रयोग के लिए काफी सावधानी की जरूरत पड़ती है गंभीर अटैक के दौरान ऐयरोसोल बनाने वाली मशीन नेबुलाइजर का प्रयोग किया जाता है।
दमे के इलाज के लिए दो प्रकार की दवाओं का प्रयोग किया जाता है। पहले प्रकार की दवाइयां तेजी से आराम पहुंचाती हैं जैसे सालब्युरामोल। यह दवा सांस की नली की मांसपेशियों को ढीला कर सांस का प्रवाह ठीक कर देती है। अटैक से तुरन्त आराम देने के लिए इस दवा का प्रयोग किया जाता है। दूसरे प्रकार की दवाइयां कुछ लंबे समय बाद ही अटैक पर नियन्त्रण पाती हैं ये दवाएं अपने एंटी इन्फ्लेमेटरी असर से वायुनली की संवेदनशीलता को कम करती हैं। इन सब दवाओं का प्रयोग केवल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
हालांकि इसका अभी तक कोई उपाय नहीं ढूंढ़ा जा सका है परन्तु फिर भी कुशल डॉक्टर तथा अच्छी दवाओं के साथ रोगी बहुत हद तक सामान्य जीवन जी सकता है।
- वर्षा शर्मा
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