सूर्य चिकित्सा में सूर्य की किरणें ही उपचार का साधन

वर्षा शर्मा । Jul 28 2016 2:34PM

सूर्य की किरणों के सात रंगों की अपनी−अपनी विशेषताएं हैं जिनके आधार पर इन्हें विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए चुना जाता है किसी भी रोग के उपचार के लिए इन रंगों का उपयोग स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए।

सौरमंडल के 9 ग्रहों में से पृथ्वी को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। पृथ्वी को यह खास दर्जा इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह एक ग्रह ऐसा है जहां जीवन पाया जाता है। सौरमंडल के अन्य ग्रहों पर जीवन के कोई पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। पृथ्वी पर जीवन के लायक परिस्थितियां पनपने में अन्य बातों के साथ−साथ सूर्य से एक निश्चित दूरी का बहुत बड़ा योगदान है। यदि सूर्य पृथ्वी से बहुत दूर या पृथ्वी के बहुत करीब होता तो पृथ्वी पर प्राणी जीवन संभव नहीं होता। सूर्य से पृथ्वी की संतुलित दूरी ने ही पृथ्वी के वातावरण को जीवन के लायक बनाया।

आदिकाल से ही सूर्य को शक्ति का पुंज माना गया है। सच भी है सौरमंडल में जब तक सूर्य है तब तक ही पृथ्वी पर हमारा आस्तित्व कायम रह सकेगा। ऊर्जा के इस परम स्रोत के प्रकाश में अनेक ऐसे गुण मौजूद होते हैं जिनके द्वारा कई रोगों का उपचार किया जा सकता है। सूर्य के द्वारा की जा सकने वाली यह चिकित्सा पूरी तरह प्राकृतिक होती है। सूर्य चिकित्सा के अंतर्गत अनन्त प्रकृति से अनंत प्राण की सुरक्षा की जाती है। इस चिकित्सा में किसी प्रकार की दवाई या जड़ी−बूटी का प्रयोग नहीं किया जाता। सूर्य चिकित्सा में सूर्य की किरणें ही उपचार का साधन होती हैं।

सन् 1666 में सर आइजक न्यूटन ने एक बंद कमरे में एक छेद से आते हुए सूर्य के प्रकाश को एक प्रिज्म की सहायता से दीवार पर डाला तो दीवार पर सात रगों की एक पट्टी बन गई। इस पट्टी के एक सिरे पर लाल तथा दूसरे सिरे पर बैंगनी रंग था। इसके अलावा उस पट्टी में नारंगी, पीला, हरा तथा नीला रंग भी था। इन्हीं सातों रंगों के मिश्रण के फलस्वरूप हमें सफेद धूप दिखाई देती है। इन सात रंगों की अपनी−अपनी विशेषताएं हैं जिनके आधार पर इन्हें विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए चुना जाता है किसी भी रोग के उपचार के लिए इन रंगों का उपयोग स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए परन्तु सुविधा तथा सरलता के लिए प्रायः सूर्य−चिकित्सक इन रंगों को तीन समूहों में बांट लेते हैं। दूसरी ओर प्रत्येक समूह के रंगों के प्रभाव में बहुत कम अन्तर पाया जाता है इसलिए भी ऐसा किया जाता है।

पहले समूह में लाल, पीले तथा नारंगी रंग को शामिल किया जाता है। दूसरे समूह में केवल हरा रंग होता है। नीले, आसमानी तथा बैंगनी रंग को तीसरे समूह में रखा जाता है। इन तीनों समूहों में एक−एक मुख्य रंग होता है। जैसे पहले समूह में मुख्य रंग नांरगी, दूसरे समूह में मुख्य रंग हरा तथा तीसरे समूह में मुख्य रंग नीला होता है। अन्य रंग गौण होते हैं जो इन तीन मुख्य रंगों के सहायक मात्र होते हैं। अर्थात् मुख्यतरू नारंगी, हरे एवं नीले रंग द्वारा ही सूर्य चिकित्सा की जाती है क्योंकि इन तीनों रंगों के अंदर अन्य सभी रंग शामिल होते हैं, जैसे नारंगी रंग लाल तथा पीला रंग मिलाने से बनता है। अन्य रंग जैसे हरा रंग नीले तथा पीले रंग को मिलाने से बनता है। वहीं बैंगनी रंग तथा आसमानी रंग को मिलाने से नीला रंग बनता है।

सूर्य चिकित्सा की दवाइयों को बनाना बहुत सरल होता है। इसमें ज्यादा धन खर्च नहीं होता तथा ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। इसे बनाने के लिए इच्छित रंग की बोतल में पानी भरकर धूप में 6 से 8 घंटों के लिए रख दें। दवा अपने आप तैयार हो जाती है।

सूर्य चिकित्सक चाहे तो अपनी समझ−बूझ से समूह के मुख्य रंग के अलावा अन्य रंगों का प्रयोग भी कर सकता है। जैसे− यदि किसी रोगी को नीले रंग वाली दवा देनी है तो उसे नीले रंग की दवा के सेवन के दो घंटे बाद आसमानी तथा बैंगनी रंग की दवा भी दी जा सकती है।

सूर्य चिकित्सा करने से पहले प्रमुख रंगों की प्रकृति तथा गुणों की जानकारी होना आवश्यक है अन्यथा रोगी को अभीष्ट लाभ नहीं मिल पाता। पहले समूह का प्रमुख रंग नारंगी होता है। सूर्य की सात किरणों में यह एक स्वतंत्र किरण होती है परन्तु यह रंग लाल और पीले रंग को मिलाने से बनता है। नारंगी रंग का स्वभाव गर्म तथा उत्तेजक होता है। चूंकि यह रंग लाल और पीले का मिश्रण होता है इसलिए इसमें दोनों के गुण होते हैं। यह पीले रंग से अधिक गर्म तथा लाल रंग से कम गर्म होता है।

इसकी प्रकृति गर्म होने के कारण यह शीत के प्रकोप तथा कफजनित रोगों के निदान के लिए बहुत उपयोगी है। यह शरीर में रक्त संचार बढ़ाता है। कमजोरों तथा वृद्धों के लिए यह शक्तिवर्धक टॉनिक का काम करता है। पेट, यकृत, गुर्दे तथा आतों की कमजोरी दूर करने के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है। इस रंग के प्रयोग से पाचन शक्ति बढ़ती है। यह रंग गतिहीन तथा निर्बल अंगों को बल प्रदान कर उनमें चेतना का संचार करता है। नारंगी रंग का सबसे आश्चर्यजनक गुण यह है कि यह आयोडीन की कमी को भी दूर करता है।

यह रंग कफजनित खांसी, इन्फ्लूएंजा, निमोनिया, बुखार, क्षय रोग, गैस, फेफडे़ के रोग, स्नायु रोग, गठिया, खून में लाल रक्त कणों की कमी आदि में विशेष रूप से लाभकारी है। स्नायु दुर्बलता, पक्षाघात, हृदय रोग, सांस से संबंधित बीमारियां, बदहजमी, भूख बढ़ाने, मोटापा घटाने तथा शारीरिक दुर्बलता को मिटाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी कष्टों को भी यह दूर कर सकता है।

नारंगी रंग का नियमित प्रयोग करने से मानसिक शक्ति का विकास होता है। इससे बौद्धिक विकास होता है और व्यक्ति में अद्भुत साहस का संचार होता है तथा व्यक्ति जोखिम उठाने को तैयार होता है। नारंगी रंग का सेवन करते हुए व्यक्ति का मानसिक दशा पर नियंत्रण रखना जरूरी होता है क्योंकि इससे इच्छा शक्ति प्रबल होती है जिससे महत्वाकांक्षा रखने वाले व्यक्ति अनावश्यक रूप से अहंकारी हो सकते हैं।

नारंगी रंग की प्रकृति गर्म होती है इसलिए इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए। बिना जरूरत के लंबे समय तक नारंगी रंग की दवा का प्रयोग हानि पहुंचा सकता है। इस दवा का प्रयोग भोजन या नाश्ते के 20−30 मिनट बाद ही करना चाहिए, खाली पेट इस दवा का प्रयोग नहीं करना चाहिए हरे रंग की दवा नारंगी रंग से बिल्कुल विपरीत असर देने वाली होती है अतरू नारंगी रंग की दवा के प्रयोग से होने वाले किसी भी दुष्प्रभाव को हरे रंग की दवा से रोका जा सकता है।

दूसरे समूह में केवल हरा रंग है। हालांकि यह रंग पीले तथा नीले रंग के मिलने से बनता है। सूर्य की किरणों में हरा एक स्वतंत्र रंग होता है। यह रंग जीवन और खुशहाली का प्रतीक है। हरा रंग ठंडी प्रकृति का तथा रक्त शोधक होता है। यह शरीर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को नष्ट करता है। यह पसीना, पेशाब, कफ तथा मल आदि के रूप में शरीर से अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन में सहायता करता है। वात प्रकोप को नष्ट करने में इस रंग का विशेष महत्व है। यह उदर संबंधी रोगों को नष्ट करने में सहायक होता है। शरीर में मांस पेशियों का निर्माण कर उन्हें शक्ति प्रदान करता है। यह रंग संक्रामक जीवाणुओं को नहीं पनपने देता। अपनी ठंडी प्रकृति के कारण यह रंग दिमाग ठंडा रखता है और मस्तिष्क को बल देता है। चर्म रोगों में भी हरा रंग विशेष रूप से लाभकारी है इसका नियमित प्रयोग त्वचा की रौनक बढ़ाता है। आंखों की सभी बीमारियों के निदान में भी हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। इस रंग का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि यह शरीर के समस्त क्रियाकलाप तथा तापमान को संतुलित रखता है।

टाइफाइड, मलेरिया, यकृत और गुर्दों की सूजन, सिरदर्द, बदहजमी, कब्ज, चेचक, फुंसी, दाद, खाज, मिर्गी, सूखी खांसी आदि रोगों के उपचार में हरे रंग की दवा बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। हिस्टीरिया तथा पथरी के निदान में भी इसका प्रयोग होता है। हरे रंग की दवा उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करती है सावधानीपूर्वक प्रयोग करने पर कैंसर जैसे घातक रोगों का निदान भी इसके द्वारा संभव है।

हरे रंग का प्रयोग मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। बेचैनी दूर करता है। यह रंग मन मस्तिष्क को प्रसन्न रखता है और ईर्ष्या, द्वेष और स्वार्थ जैसी भावनाओं को नष्ट कर देता है। यह रंग सदैव उत्तम कार्य करने की प्रेरणा देता है। मित्रता की भावना तथा भावनात्मक सम्पर्क बनाए रखने के लिए भी हरे रंग की दवा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

हरे रंग की दवा का प्रयोग सुबह खाली पेट या भोजन करने के लगभग आधा घंटा पूर्व ही करना चाहिए। तीसरे समूह का प्रमुख रंग नीला है। तीसरे समूह में नीले के अतिरिक्त आसमानी तथा बैंगनी रंग भी होते हैं। नीले रंग में आसमानी तथा बैंगनी रंग के गुण भी होते हैं इसलिए यह इन दोनों रंगों की कमी भी पूरी कर देता है। इस रंग की प्रकृति शीतल होती है इस रंग की दवा का प्रयोग कीटाणुनाशक तथा वायरसरोधी होता है। इस रंग के वातावरण में जीवाणु ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकते। नीले रंग का प्रयोग प्रायरू मुंह, गला तथा गले के ऊपरी भाग (सिर तक) के रोगों के निदान के लिए किया जाता है। किसी भी प्रकार के दाह का शमन इस रंग की दवा के द्वारा किया जाता है। वात प्रकोप के कारण शरीर में यदि सूजन आ जाए तो उसका उपचार भी इस रंग की दवा के द्वारा किया जाता है। शरीर के किसी हिस्से में पस बनने की क्रिया को रोकने में इस रंग के आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं। गर्मी के मौसम में उत्पन्न अनेक रोगाणुओं को भी यह रंग नष्ट कर देता है।

पित्त प्रकोप के कारण शरीर में उत्पन्न विकारों के इलाज के लिए भी इस रंग की दवा का प्रयोग किया जाता है यदि रोगी को बहुत तेज बुखार हो तो नीले रंग के विभिन्न प्रयोग फायदेमंद साबित होते हैं। सिरदर्द, लू लगना, आंतरिक रक्त स्राव, उच्च रक्त चाप, दांत दर्द, मसूढे फूलना, टॉसिल, डायरिया, मुंह के छाले, पायरिया, हैजा जैसे रोगों में भी नीले रंग की दवा तुरन्त लाभ पहुंचाती है।

हिस्टीरिया, पागलपन, उन्माद जैसे मानसिक रोगों में भी नीले रंग की दवा के प्रयोग से लाभ होता है। यह रंग एक अच्छा विष प्रतिरोधक भी होता है। यह साधारण विष को निष्क्रिय कर देता है और फूड पॉयजनिंग होने पर लाभदायक है। कई स्त्री रोगों जैसे श्वेत प्रदर, मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्त स्राव तथा शरीर की जलन मिटाने में इस रंग की दवा का प्रयोग आशातीत लाभ देता है।

नीले रंग का प्रयोग मानसिक उत्तेजना मिटाता है। यह रंग व्यक्ति के आध्यामिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। इस रंग का प्रयोग व्यक्ति को एकाग्रचित्त भी बनाता है। नीले रंग का निरन्तर प्रयोग व्यक्ति को उत्तरोत्तर दृढ़ बनाता है जिससे उसमें आत्मविश्वास तथा सत्य बोलने की शक्ति उत्पन्न होती है।

चूंकि नीले रंग की प्रकृति ठंडी होती है इसलिए कफ तथा वातजनित रोगों के इलाज के लिए इस रंग का प्रयोग नहीं किया जाता अन्यथा और अधिक विकार उत्पन्न हो सकते हैं। नीले रंग की दवा की काट नारंगी रंग की दवा है। यदि किसी कारणवश नीले रंग के प्रयोग से कोई दुष्प्रभाव उत्पन्न हो जाए तो उसका निदान करने के लिए नारंगी रंग की दवा का प्रयोग करना चाहिए।

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