नींद की गोलियां लेना सेहत के लिए ठीक नहीं, इन उपायों को आजमाएँ
आज की जीवन शैली ने मनुष्य को नींद की दवाओं के चंगुल में जकड़ दिया है। अनगिनत लोग बिस्तर पर जाकर नींद का इंतजार करते रहते हैं पर नींद है कि आने का नाम नहीं लेती।
आज की जीवन शैली ने मनुष्य को नींद की दवाओं के चंगुल में जकड़ दिया है। अनगिनत लोग बिस्तर पर जाकर नींद का इंतजार करते रहते हैं पर नींद है कि आने का नाम नहीं लेती। आसानी से उपलब्ध नींद की विभिन्न दवाएं स्वयं चिकित्सकों की दृष्टि में स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। डॉ. श्रीनिवास के अनुसार, नींद की गोलियां गर्भवती महिलाओं द्वारा सेवन किए जाने पर बेहद दुखद परिणाम सामने आए हैं। एक अध्ययन से पता लगा कि नींद की गोलियां लेने की आदी गर्भवती महिलाओं ने अपंग बच्चों को जन्म दिया।
नींद की गोलियों का कभी−कभी उपयोग करने वाला भी इनमें उपस्थित रसायनों के प्रभाव के कारण इनका आदी हो जाता है। ऐसी दवाओं की मात्रा में भी धीरे−धीरे बढ़ोत्तरी करनी पड़ती है। शरीर और मस्तिष्क पर विभिन्न रूपों में नींद लाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव दिखाई देने लगते हैं। इन दवाओं के परोक्ष−अपरोक्ष प्रभाव से मरने वालों की संख्या भी कम नहीं होती। अधिक तनाव या परेशानी में ऐसी दवाओं की अधिक मात्रा का सेवन मौत का कारण बन जाता है।
संक्षेप में यही कहना उचित होगा कि यथासंभव नींद लाने वाली दवाओं के सेवन से बचना ही अच्छा है। अनिद्रा के कारणों पर थोड़ा विचार करना भी उचित होगा। तनाव, चिंता, अधिक थकान, अजीर्ण, उत्तेजना आदि कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं जिनके कारण प्रायः नींद नहीं आती। इसलिए सोने से लगभग आधा घंटा पहले इन स्थितियों में बदलाव लाने या इनसे उबरने का प्रयास करना चाहिए। सुपाच्य और शाकाहारी सादा भोजन, मौसमी फल−सब्जियां, आवश्यकतानुसार दूध, दही व घी आदि पौष्टिक व कब्ज से मुक्त रखने वाले खाद्य पदार्थों को ही भोजन के रूप में लेना चाहिए। दिन भर में 2−2.5 लीटर पानी आवश्यक रूप से पीना चाहिए। सामान्य स्वास्थ्य नियमों की जानकारी हेतु अच्छी पुस्तक और किसी जानकार व्यक्ति की सहायता भी ली जा सकती है। सही दिनचर्या अपनाने पर प्रायः अनिद्रा जैसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।
अनिद्रा रोग के रूप में होने पर प्रचलित औषधियों के स्थान पर प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में शरीर की जीवनी शक्ति बढ़ाने और शरीर में इकट्ठे हुए विजातीय या विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए पानी और फलों के रस का उपयोग किया जाता है। उपवास या निराहार रहने की विधि अपनाई जाती है। उपवास व पर्याप्त विश्राम से नींद बड़ी आसानी से आ जाती है। दो दिन से लम्बा उपवास किसी योग्य व्यक्ति की देखरेख में ही करना चाहिए। उपवास शरीर में इकट्ठे हुए विष को ढीला कर देता है अतः उपवास को करते हुए और अगले दिन भी एनिमा के द्वारा आंतों की सफाई भी जरूरी है। अन्यथा वह विष पुनः रक्त प्रवाह में पहुंच जाएगा।
विजातीय पदार्थों का विसर्जन फेफड़ों, त्वचा व वृक्कों से भी होता है। परन्तु आंतों की सफाई अति आवश्यक होती है। ध्यान रहे, उपवास के बाद तुरन्त ठोस आहार आरम्भ नहीं करना चाहिए। 4−5 दिन फलाहार पर रहना बहुत फायदेमंद होता है। इससे जहां उत्तेजक खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण होता है वहीं शरीर से मल निष्कासन में भी पर्याप्त सहायता मिलती है। फलाहार के बाद चोकर सहित आटे की रोटी, सलाद, मौसमी फल और सब्जियां आदि लेना चाहिए। तेज मिर्च, मसाले, खटाई, अधिक तले−भुने पदार्थ, मैदा, चीनी, मांस, मंदिरा व नशीली चीजें आदि से बचना चाहिए। अधिक गर्म या ठंडे पदार्थों का सेवन भी ठीक नहीं है। संतुलित, सुपाच्य, सादा और पौष्टिक भोजन और पानी की उपयुक्त मात्रा ग्रहण करने से अनिद्रा रोग दूर करने में पर्याप्त सहायता मिलती है।
अनिद्रा से मुक्ति में शरीर के सही रक्त संचालन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए मालिश, उचित व्यायाम−योगासन व स्नान का उपयुक्त ढंग अपनाना चाहिए। रक्त संचालन के लिए पानी में भिगोकर निचोड़े मोटे तौलिए से सम्पूर्ण शरीर की रगड़कर मालिश करना एक बेहतर उपाय है। बारी−बारी से ठंडे व गर्म पानी में पैर रखने से भी रक्त संचालन तेज होता है। यह कार्य सोने से पहले किया जाना चाहिए। गर्म पानी में 3 मिनट और ठंडे (सादा) पानी में 10−15 सेंकेड रखें। ऐसा 3 बार करें। अंत में ठंडे पानी में पैर रखें। पैरों का गर्म स्नान भी अनिद्रा से लाभप्रद होता है।
प्रायरू तनाव अनिद्रा का मूल होता है। इसके लिए मेरूदण्ड की कुछ देर मालिश करने के लिए थोड़े गर्म पानी से 15−20 मिनट स्नान किया जाए तो तनाव बहुत कम हो जाता है। इसी प्रकार बहुत अधिक थकान और उत्तेजना भी नींद में बाधक होती है। इसके लिए चादर को पानी में भिगोकर निचोड़ लें फिर कंधों से घुटनों तक शरीर पर लपेट दें। यह लपेट 1 से 2 घंटे तक रह सकती है। लपेट खोलकर भीगे−निचोड़े तौलिए से शरीर को रगड़कर पोंछने से पर्याप्त लाभ मिलता है।
नियमित शारीरिक सफाई के साथ अनिद्रा के रोगी के लिए पेडू पर मिट्टी की पट्टी का स्नान व साधारण स्नान भी जरूरी है। सोने से आधा घंटा पहले सूखे तौलिए से पूरे शरीर को रगड़ना भी लाभप्रद होता है। जब तक अच्छा लगे, तभी तक ऐसा करें। ऐसा न कर सकें तो गीले हाथों से पूरे शरीर को भलीभांति पोछें व जंघा, संधि आदि को ठंडा कर लें फिर सोएं। सोने जाने से पहले स्नान करने से भी पर्याप्त लाभ मिलता है। सोने से पहले हाथ−पैर−मुंह धोकर आंखों में छींटें मारना भी अच्छा है। इससे शरीर की उत्तेजना नष्ट होती है और अच्छी नींद आती है।
सुबह−शाम हल्के और मौसम के अनुकूल कपड़े पहनकर टहलना मामूली अनिद्रा रोग में गुणकारी सिद्ध होता है। मस्तिष्क में रक्त की अधिकता के कारण अनिद्रा की स्थिति में सिरहाना कुछ ऊंचा कर देना चाहिए। प्रो. कोराल्ट के अनुसार, नमक का उपयोग बंद कर देने पर नींद अपेक्षाकृत अधिक आसानी से आ जाती है। अनिद्रा के रोगियों को रात्रि भोजन में उबली सब्जियां और फलाहार ही अपनाना चाहिए। मोटापे या अधिक वजन से परेशान अनिद्रा के रोगियों को वजन घटने का लाभ भी उससे मिलेगा। शरीर को शीघ्र विषैले पदार्थों से मुक्त करने के लिए अनिद्रा के रोगी को नींबू का रस मिला काफी पानी भी पीना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक उपचार के अन्तर्गत अलग−अलग व्यक्तियों के लिए अनिद्रा के अलग−अलग कारण हो सकते हैं। किसी व्यक्ति की अनिद्रा के शारीरिक कम और मानसिक कारण प्रमुख होते हैं। अनिद्रा के रोगी को ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, भय आदि मनोविकारों को छोड़कर संतोष, आशा, धैर्य, प्रेम, ईश्वर के प्रति विश्वास आदि जैसे सार्थक मनोभावों और गुणों को अपनी दिनचर्या में प्रमुखता देनी चाहिए। चिंता से बचना चाहिए। नींद लाने के लिए 100 तक गिनती गिनना या अपने ईष्ट देव अथवा ईश्वर के नाम पर जाप या मनन करने पर उत्पन्न एकाग्रता नींद लाने में सहायक होती है। अनगिनत लोग इस उपाय को अपनाते हैं। अनेक लोगों को स्वाध्याय भी रास आता है। आवश्यक हो तो मनोचिकित्सक से भी परामर्श लिया जा सकता है।
कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखने से भी स्वाभाविक नींद आसानी से आ सकती है−
− सोने का निर्धारित समय बार−बार न बदलें। निश्चित समय सोने का प्रतिदिन प्रयास करें।
− अधिक दिमागी कार्य करने वाले लोगों का कुछ शारीरिक श्रम या व्यायाम जरूर करना चाहिए।
− सोने से पहले हाथ−मुंह धोना चाहिए या स्नान करना चाहिए।
− अधिक गरिष्ठ भोजन के स्थान पर सुपाच्य सादा शाकाहारी भोजन करें। पेट से ऊपर न खाएं।
− रात को भोजन दोपहर के भोजन से कम और सोने से 2−2.5 घंटे पहले करें।
− दिन में न सोएं। रात में देर तक न जागें। सुबह देर तक न सोएं। जल्दी सोएं, जल्दी जागें।
−अधिक मिर्च मसालों, मांस, मदिरा व अन्य नशों के स्थान पर स्वास्थ्यप्रद तरल पदार्थ, मौसमी फल सब्जियां, दूध, दही, मट्ठा, घी आदि अपनाएं।
− सोने के स्थान पर अधिक रोशनी और अधिक सामान न हो। बिस्तर बहुत कड़ा या मुलायम न हो।
− सोने के कमरे में बहुत हल्की हरे रंग की रोशनी नींद के लिए अच्छी होती है। आंखों के लिए भी हरी रोशनी ठंडी और सुखद होती है।
− सोने के स्थान पर साफ सुथरा, हवादार, रंगीन चित्रों वाला, रूचिकर व संभव हो तो बाहर या आकाश का दृश्य वहां से दिख सके ऐसा हो।
- टीसी चंदर
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