दिवाली पर अब कंदीलों की भी रहती है धूम

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। ऑफिस हो या घर, या फिर सड़कें हर जगह रंग-बिरंगी और दूधियां रोशनी की सजावट देखने को मिलती है। मगर इस चकाचौंध में कहीं तारें सी टिमटिमाती रोशनी दिखे, तो समझ लीजिए कि वह रोशनी दिवाली पर किसी की छत पर लटके कंदील की है। दरअसल समय के साथ-साथ कंदील का भी प्रचलन लगभग खत्म हो गया है। फैशनेबल और आकर्षक लडि़यां और बल्ब अब दिवाली में जगमगाहट के लिए इस्तेमाल किए जाने लगे हैं। पारम्परिक मिट्टी के दीये से पुराने समय में रोशनी की जाती थी। वहीं अब इन्हीं दीयों को नया रंग मिल गया है। अब ये दीये पारम्परिक नहीं बल्कि कई रंगों में मिल रहे हैं।
दिवाली पर भी आधुनकिता का रंग मढ़ने और पैसा फूंक कर तमाशा देखने वालों के लिए कंदील देश की परम्परा और मनुष्य की विनम्रता का संदेश देता है। घर की छत पर लटका कंदील न सिर्फ पर्यावरण बचाने का संदेश देता है, वहीं यह ऊर्जा संरक्षण का भी प्रतीक है। इन छोटे-बड़े कंदीलों से दिवाली पर फुंकने वाली बिजली को बचाया जा सकता है। इस दिन रोशनी के साथ-साथ घर को औरों से अलग दिखाने के लिए आप खुद भी कंदील बना सकते हैं। वैसे कंदील बाजार में मिलते तो हैं, पर लोगों को कम ही भाते हैं। इन कंदीलों की जगह तरह-तरह की लाइट वाली फैशनेबल चीजों ने ले ली है।
कंदील इको फ्रेंडली होते हैं और रंग-बिरंगे कागजों से बनाए जाते हैं। बांस के पतले टुकड़ों से पहले तरह-तरह की आकृति बनाई जाती है फिर उन पर रंगीन कागज या चमकते कागज लगाए जाते हैं। कंदील देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं और रोशनी के साथ तो इनकी खूबसूरती देखते बनती है। यह कई तरह के होते हैं। जैसे पेपर कंदील, घरेलू कागजों से बनी कंदील, डिजाइनर पेपर कंदील, हैंड मेड पेपर कंदील, डेकोरेटिव पेपर कंदील और कलर पेपर कंदील। इन कंदील को लालटेन भी कहते हैं।
आज जब ग्लोबलाइजेशन का दौर है, ऐसे में हर चीज बाजार में आसानी से मिल जाती है। दीपावली ऐसा त्योहार है जिसका मजा शायद ही कोई त्योहार दे पाए। ऐसे में दिवाली पर रोशनी के लिए भी लोग बाजार पर ही निर्भर रहते हैं। याद कीजिए बचपन के वो दिन जब मिट्टी के दीयों से घर को रोशन किया जाता था। साथ ही बड़े पेपर से तरह-तरह के कंदील बना कर उनमें एक बल्ब लगा कर दीवाली पर लोग अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश देते थे।
कंदील को आकाश दीप भी कहते हैं। प्राचीन समय में कंदील घर में सबसे ऊंची जगह पर लगाए जाते थे। यह इस बात का प्रतीक होता था कि दिवाली के दौरान उनके पूर्वज परछाई बन कर ही सही, मगर उनके साथ यह त्योहार जरूर मनाएं।
ईशा
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