छोटे भाई की जिज्ञासाओं को शांत करना बड़े का कर्तव्य

सौरभ बोला- मुझे नहीं पता था श्याम कि तुम आईएसबीएन नंबर भी नहीं जानते, मैं तो तुम्हें बहुत होशियार समझता था। आईएसबीएन नंबर क्या होता है यह तो तुम्हें अब तक मालूम होना ही चाहिये था।

श्याम बहुत ही जिज्ञासु और स्वाभिमानी बालक था। वह 7 साल का था और उसका बड़ा भाई सौरभ 15 साल का। वे दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। एक दिन सौरभ को स्कूल लाइब्रेरी से कोई किताब निकलवानी थी। वह अपने भाई श्याम के साथ लेकर स्कूल लाइब्रेरी में गया और लाइब्रेरियन को किताब के नाम के साथ किताब के आईएसबीएन नंबर की पर्ची पकड़ाकर किताब मांगी। लाइब्रेरियन ने तुरंत ही लाइब्रेरी से किताब निकाल कर सौरभ को दे दी।

श्याम अचंभित था इतनी बड़ी लाइब्रेरी में से लाइब्रेरियन ने तुरंत ही सौरभ की मांगी हुई किताब निकालकर कैसे दे दी। श्याम से रहा न गया, वह अपने बड़े भाई सौरभ से बोला-भईया! लाइब्रेरियन ने इतनी जल्दी किताब निकालकर कैसे दे दी। सौरभ बोला- यह आईएसबीएन नंबर का कमाल है श्याम। श्याम बोला-भईया! ये आईएसबीएन नंबर क्या होता है। सौरभ आश्चर्य से बोला- श्याम तुम्हें इतना भी नहीं पता क्या कि आईएसबीएन नंबर क्या होता है, लगता है तुमने जो भी पढ़ा बेकार ही पढ़ा है, अब इतना तो सबको मालूम ही होता है कि आईएसबीएन नंबर क्या होता है, किताबें नहीं देखीं क्या तुमने कभी। पढ़े-लिखे निरे गधे हो तुम श्याम।

सौरभ बोला- मुझे नहीं पता था श्याम कि तुम आईएसबीएन नंबर भी नहीं जानते, मैं तो तुम्हें बहुत होशियार समझता था। आईएसबीएन नंबर क्या होता है यह तो तुम्हें अब तक मालूम होना ही चाहिये था। सौरभ आईएसबीएन नंबर का मतलब न पता होने के लिए श्याम को लगातार शर्मसार किए जा रहा था और श्याम अचरज में था कि पता नहीं उसने ऐसा क्या पूछ लिया कि सौरभ ने उसकी समझदारी पर इतने प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए।

श्याम का मुंह इस तरह से लटक गया था कि जैसे उससे बहुत बड़ी गलती हो गई थी कि उसने आईएसबीएन नंबर का मतलब पूछ लिया था। श्याम स्वयं को बहुत नासमझ महसूस कर रहा था। अंततः सौरभ से आईएसबीएन नंबर का मतलब तो श्याम को पता नहीं चल सका बल्कि वह अब स्वयं को इतना बुद्धिहीन महसूस कर रहा था कि उसने किसी और से भी इसका अर्थ पूछने की हिम्मत नहीं की। श्याम इतना नर्वस था कि अब किसी भी नई चीज के प्रति उसने जिज्ञासा दिखाना बंद कर दिया था। किसी विषय को पढ़ते समय या किन्हीं कार्यों को करते समय अभी भी श्याम के मन में कई जिज्ञासु प्रश्न उठते थे किन्तु वह मुंह बन्द कर रह जाता था। अब किसी से भी उसने अपनी जिज्ञासा शेयर करना बंद कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि जिज्ञासा न दिखाने के कारण बहुत सी बातों से श्याम अब अनजाना था।

एक दिन की बात है श्याम और सौरभ घर पर ही थे। उनके गांव से घर पर जामुन आए हुए थे। सौरभ ने श्याम से कहा- लो जामुन खाओ। श्याम पहली बार ही जामुन खा रहा था इसे कैसे खाते हैं उसे पता नहीं था पर, सौरभ से वह कैसे पूछता कि जामुन कैसे खाते हैं तो अपने को समझदार दिखाने के लिए श्याम ने एक जामुन उठाया और उसे पूरा का पूरा चबा गया। जामुन का स्वाद कसैला लगने पर तुरंत ही श्याम ने उसे थूक दिया। सौरभ ने देखा श्याम ने जामुन को गुठली सहित चबा लिया था। सौरभ को गुस्सा आया वह बोला- श्याम! क्या तुम्हें पता नहीं जामुन खाते समय गुठली निकाल देते हैं। श्याम को डांटते समय सौरभ की नजर श्याम के पहने जूतों पर पड़ी। सौरभ बोला- श्याम! जरा अपने जूतों की लेस को तो देखो कितनी गलत बांधी हुई है। अरे तुम्हें यह सब नहीं आता तो किसी से पूछ सकते थे और मैं तो हमेशा ही तुम्हारे पास रहता हूं।

श्याम की आंखों में आंसू थे उसने कहा- पर, भईया मुझे तो आईएसबीएन नंबर का मतलब भी नहीं पता था और उसे आप से ही तो पूछा था। सौरभ को श्याम द्वारा आईएसबीएन नंबर का मतलब पूछने पर आया अपना गुस्सा याद आ गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। सौरभ को ज्ञात हो गया था कि उसका भाई उससे काफी छोटा था और उसे वह सब बातें सीखने की जरूरत थी जो कभी सौरभ ने खुद भी किसी से सीखी थीं।

सौरभ ने श्याम को प्यार से अपने पास बैठाया और उसे समझाया कि जूते की लेस कैसे बांधते हैं और जामुन कैसे खाए जाते हैं। सौरभ ने घर पर रखी एक किताब उठाकर उसके पीछे के पेज पर एक बॉक्स की शेप में बनी कुछ लाइनों को दिखाया और समझाया कि यह है किताब का आईएसबीएन नंबर या इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नंबर जो हर किताब का एक विशिष्ट नंबर होता है, जिसे बार कोड रीडर भी कहा जाता है। इसमें 13 अंक होते हैं। आईएसबीएन नंबर से किसी की किताब को आसानी से पहचाना और खोजा जा सकता है और इससे ही बुक की बिक्री कितनी हुई, इसका हिसाब भी लगाया जाता है। सौरभ ने श्याम को बताया कि आईएसबीएन नंबर को ब्रिटेन स्थित अंतर्राष्ट्रीय आईएसबीएन एजेंसी आवंटित करती है, जो हर किताब के लिए अलग होता है।

आईएसबीएन नंबर क्या होता है श्याम जान चुका था। सौरभ के प्यार भरे व्यवहार से वह द्रवित था और किसी चीज के बारे में जानने-पूछने की उसकी झिझक भी अब समाप्त हो चुकी थी। श्याम ने एक और जामुन उठाकर खाया और उसकी गुठली को निकालकर डस्टबिन में डालते हुए दो जामुन सौरभ की ओर बढ़ा दिए। सौरभ ने जामुन खाए और हंसते हुए अपने भाई को गले लगा लिया। 

- अमृता गोस्वामी

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