वन संरक्षण आज की जरूरतः अरुणिमा पालीवाल

[email protected] । Oct 1 2017 11:04PM

उत्तराखण्ड में वर्ष 2016 में घटित अग्नि त्रासदी के कारण 3500 हेक्टेयर वन भूमि का नुकसान हो गया। अतः भविष्य में आने वाली इस चुनौती से निपटने के लिए वन संरक्षण एवं संवर्धन जरूरी है।

जैव विविधता तथा पर्यावरण को स्थिर बनाये रखने में वनों का बहुत अधिक योगदान है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है, जिसके कारण वन संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में अरुणिमा पालीवाल से हुई चर्चा को यहाँ प्रश्न-उत्तर स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। अरुणिमा पालीवाल गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर, उत्तराखण्ड में शोधरत हैं।

प्रश्न- वर्तमान में उत्तराखण्ड के वनों की क्या स्थिति है?

उत्तर- उत्तराखण्ड वन सांख्यिकी, 2014-15 के अनुसार वन क्षेत्रफल 37,999.60 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के पूर्ण भू-भाग का 64.79% है। सन् 1998-99 में राज्य गठन से पूर्व अविभाजित उत्तर प्रदेश में वन क्षेत्रफल 51,428 वर्ग किलोमीटर था, जो राज्य गठन के बाद घटकर 16,888 वर्ग किलोमीटर ही रह गया और नवनिर्मित राज्य-उत्तराखण्ड का सन् 1999 में वन क्षेत्रफल 34,540 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया। जिसमें सन् 2011 तक 111 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि पायी गयी है। 

प्रश्न- राज्य में कितने प्रकार के वन हैं?

उत्तर- भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में कुल 9 वन प्रकार के समूह हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं- उष्ण कटिबंधीय नम पर्णपाती वन (18.71%), उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (6.38%), उपोष्ण कटिबंधीय पाईन वन (28.72%), हिमालय नम शीतोष्ण (36.71%), हिमालय शुष्क शीतोष्ण (1.81%), सब अल्पाइन वन (4.19%), नम अल्पाइन स्क्रब (0.69%), शुष्क अल्पाइन स्क्रब (0.16%) और बाग़ान (2.63%)। जिसमें हिमालय नम शीतोष्ण का अनुपात अन्य वनों की अपेक्षा अधिक है।

प्रश्न- वनों का क्या महत्व है?

उत्तर- अग्निपुराण में कहा गया है- ‘दशपुत्रो समोद्रुमः’ अर्थात् दस पुत्र एक वृक्ष के समान हैं। इसीलिए जितने अधिक वन होंगे, उतना अधिक पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। वनों का महत्त्व इस प्रकार है- जलवायु नियंत्रण में सहायक, बाढ़ नियंत्रण, पशुओं के चारे का आधार, जड़ी-बूटियों का भण्डारण, वन्य प्राणियों का आश्रय स्थान, कृषि यंत्रों एवं औद्योगिक कच्चे माल का भण्डारण।

प्रश्न- वनों के कम होने के क्या दुष्परिणाम आपको नज़र आते हैं?

उत्तर- “पृथ्वी को यदि बचाना है, तो वन जमाना है।

मत लो तुम वृक्षों की जान, पृथ्वी बनेगी रेगिस्तान।।”

इस कथन को ध्यान में रखते हुए वनोन्मूलन के दुष्परिणामों को इस प्रकार देखा जा सकता है- जलवायु परिवर्तन, मृदा अपरदन के परिणामस्वरूप भूस्खलन का होना, जैव विविधता में गिरावट, जंगली पशुओं का आबादी में प्रवेश करना, प्राकृतिक पर्यटन में गिरावट, निचले क्षेत्रों में बाढ़ का आना और फसल बर्बाद होना।

वन विभाग के अनुमानों के अनुसार उत्तराखण्ड में वर्ष 2016 में घटित अग्नि त्रासदी के कारण 3500 हेक्टेयर वन भूमि का नुकसान हो गया। अतः भविष्य में आने वाली इस चुनौती से निपटने के लिए वन संरक्षण एवं संवर्धन जरूरी है।

प्रश्न- वन संरक्षण एवं संवर्धन की क्यों आवश्यकता है?

उत्तर- पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार एक परिपक्व वन वातावरण को निम्न चीजें प्रदान करते हैं जैसे- ऑक्सीजन आपूर्ति, वायु प्रदूषण रोकने में सहायक, नमी नियंत्रण, जल प्रदूषण रोकने में मददगार, मृदा की उर्वरता बढ़ने के साथ अपरदन रोकना। अतः वनों का संरक्षण आवश्यक है।

प्रश्न- वन संरक्षण हेतु कौन-कौन से आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिए?

उत्तर- वन संरक्षण हेतु प्रतिवर्ष उत्साह के साथ वन महोत्सव का आयोजन, वर्षा ऋतु में सामुदायिक वानिकी द्वारा नए छोटे पौधे रोपने, वनों को लगाकर वन क्षेत्रफल में वृद्धि करना और लोगों को वनों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार कार्यक्रम व जागरूकता फैलाना ऐसे आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं।

अन्ततः यह पंक्तियाँ सार्थक हो सकती हैं-

“हरी भरी धरती की बस यही पुकार है, आने वाले समय के लिए बस पेड़ों की दरकार है।”

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