जानिए किस तरह होता है भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
14वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल में 4,896 सदस्य हैं, जिसमें 776 सांसद और 4,120 विधायक शामिल हैं। इन सबका कुल मत मूल्य 10,98,882 था। वर्तमान में प्रत्येक सांसद का मत मूल्य 708 है।
भारत के 14वें राष्ट्रपति के चुनाव का बिगुल बज चुका है, चुनाव आयोग ने चुनाव के लिए तारीख की घोषणा कर दी है। उम्मीदवारों का नामांकन हो चुका है और अब 17 जुलाई को देश के अगले राष्ट्रपति के लिए मतदान होगा और 20 जुलाई को वोटों की गिनती होगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहाँ एक लिखित संविधान के जरिये शासन का संचालन होता है। राष्ट्रपति का यहां सर्वोच्च संवैधानिक पद है। यहाँ हर 5 वर्षों में राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। हमारे देश में राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका अन्य देशों से सर्वथा अलग और अनूठा है। इसे आप सबसे अच्छा संवैधानिक तरीका भी कह सकते हैं। इसमें कई देशों में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के तरीकों की अच्छी बातों को शामिल किया गया है। दुनिया के सर्वोत्तम संविधान में भारत का संविधान है।
देश के 14वें राष्ट्रपति का चुनाव करीब 46 साल पुरानी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा। राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान से होता है। देश के सभी राज्यों की विधान सभा, विधान परिषद और संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा लेते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में आम मतदाता वोट नहीं डालते हैं, जनता की जगह उसके चुनिंदा प्रतिनिधि वोट डालते हैं यानि ये सीधे नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष चुनाव हैं। राष्ट्रपति को राज्यों के चुने हुए प्रतिनिधि यानि विधायक, लोकसभा और राज्यसभा के सांसद चुनते हैं। राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा के मनोनीत सांसद और विधायक राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डालते हैं। भारत में 9 राज्यों में विधान परिषद है लेकिन वो भी राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि वो जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि नहीं हैं। सभी केंद्रशासित प्रदेश इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन दिल्ली और पुद्दुचेरी के विधायक हिस्सा लेते हैं क्योंकि इनकी अपनी विधानसभाएं हैं। राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1971 की जनसंख्या को आधार मानते हुए 1974 से चल रही है और ये 2026 तक लागू रहेगी।
14वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल में 4,896 सदस्य हैं, जिसमें 776 सांसद और 4,120 विधायक शामिल हैं। इन सबका कुल मत मूल्य 10,98,882 था। वर्तमान में प्रत्येक सांसद का मत मूल्य 708 है। सांसदों का कुल मत मूल्य 5,49,408 और विधायकों का कुल मत मूल्य 5,49,474 है। राज्यों में उत्तर प्रदेश विधानसभा का मत मूल्य सर्वाधिक 83,824 है। इसके बाद क्रमशः महाराष्ट्र विधानसभा का मत मूल्य 50,400, पश्चिम बंगाल का 44,394, आंध्र प्रदेश का 43,512 और बिहार विधानसभा का मत मूल्य 42,039 है। सिक्किम विधानसभा का मत मूल्य सबसे कम 224 है। लोकसभा के 543, राज्यसभा के 233 सांसद और सभी राज्य विधानसभाओं के विधायक मिलकर राष्ट्रपति के लिए मतदान करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव की यह प्रक्रिया 1974 से चली आ रही है जो 1971 की जनसंख्या के आधार पर लागू हुई थी। संभवतः 2026 के बाद इस प्रक्रिया में बदलाव हो सकता है। इन वोटों की 50 प्रतिशत संख्या पर जीत सुनिश्चित मानी जाती है। वोटिंग के दौरान राष्ट्रपति को वोट देते वक्त नाम के आगे वरीयता देनी पड़ती है। जैसे कि आपको राष्ट्रपति के लिए पसंदीदा उम्मीदवार के आगे 1 लिखना पड़ता है। जिस उम्मीदवार के जितने 1 नंबर की वरीयता कम होती जाती है वो उम्मीदवारी से हटता जाता है। जिस उम्मीदवार के नाम के आगे सबसे ज्यादा 1 होते हैं, वही उम्मीदवार जीत का हकदार होता है। भारत के राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह सक्रिय रहती हैं।
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति से होता है। राष्ट्रपति को भारत की संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्य सभा के साथ राज्य विधायिकाओं के निर्वाचित सदस्य पांच वर्ष के लिए निर्वाचित करते हैं। वोट आवंटित करने के लिए एक विधिमान्य फार्मूला तय किया गया है ताकि हर राज्य की जन संख्या और उस राज्य से विधान सभा के सदस्यों द्वारा मत डालने की संख्या के मध्य एक अनुपात रहे और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों और सांसदों के बीच एक समानुपात की स्थिति बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिले तो एक स्थापित पद्धति है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटाकर उसके मत अन्य उम्मीदवारों को हस्तान्तरित किये जाते हैं।
भारत में अब तक 13 व्यक्ति राष्ट्रपति का पद ग्रहण कर चुके हैं, जिनमें से प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 2 बार इस पद को सुशोभित किया है। राष्ट्रपति की पदावधि 5 वर्ष की होती है। लेकिन राजेन्द्र प्रसाद 10 वर्ष से अधिक की अवधि तक राष्ट्रपति का पद धारण किये थे। इसका कारण यह था कि 1952 में राष्ट्रपति के प्रथम चुनाव के पूर्व ही 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के द्वारा राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का चुनाव कर लिया गया था। संविधान के प्रवर्तन की तिथि अर्थात् 26 जनवरी, 1950 से लेकर 12 मई, 1952 तक राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के पद पर रहे।
भारत में अब तक 13 बार राष्ट्रपति के चुनाव हुए हैं, जिनमें से एक बार, अर्थात् 1977 में, श्री नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गये थे। शेष 12 बार राष्ट्रपति पद के चुनाव में एक से अधिक उम्मीदवार थे। अब तक केवल डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी तथा ज्ञानी जैल सिंह को छोड़कर अन्य सभी राष्ट्रपति पूर्व में उपराष्ट्रपति के पद को सुशोभित कर चुके थे। डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में वी.वी. गिरी ऐसे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे, जिन्होंने कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत होते हुए भी उसके उम्मीदवार को पराजित किया था। अब तक नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जो एक बार चुनाव में पराजित हुए तथा बाद में निर्विरोध निर्वाचित हुए।
बाल मुकुन्द ओझा
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