गांधीजी के विरोध के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष बन गये थे बोस

अनु गुप्ता । Jan 23 2017 3:28PM

1938 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सुभाष बड़े नेता बन कर उभरते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए लेकिन गांधीजी किसी और को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे जिसका अंदाजा सुभाष को हो गया था।

भारत के महान क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के 120वें जन्मदिवस पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन और भारत की आज़ादी में उनके योगदान के बारे में। सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिताजी जानकीनाथ बोस कटक के एक नामी वकील थे और उनकी माताजी प्रभावती धार्मिक कार्यों में अग्रिम थीं। सुभाष चंद्र बोस इनकी चौदह संतानों में से नौवीं संतान थे। सुभाषचंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से हुई और आगे की पढाई के लिए उनका एडमिशन कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में करवा दिया गया। लेकिन वहां पर इन्होंने अपने प्रोफेसर पर भारत विरोधी टिप्पणी करने के कारण हमला कर दिया जिसके चलते उन्हें इस कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। बाद में इन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी के स्कोटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन लिया और दर्शनशास्त्र में बी.ए. किया। सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहे। सुभाष चंद्र बोस विवेकानंद की शिक्षाओं से खासे प्रभावित थे और उनमें देशभक्ति की भावना भी अत्यधिक थी। जवानी में ही उनका झुकाव देशभक्ति की तरफ हो गया था। 

1919 में उनके पिता ने उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा देने के लिए इंग्लैंड भेजने की बात कही और इस पर उन्हें सोचने के लिए एक दिन का समय दिया गया। जिसके लिए उन्होंने काफी सोच कर हां कर दी। इस परीक्षा के लिए वे इंग्लैंड रवाना हो गए और इस परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस ना केवल उत्तीर्ण हुए बल्कि इस परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान भी हासिल किया जो किसी भी भारतीय के लिए उस समय एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। और वहां पर ही काम करना भी शुरू कर दिया और साथ ही वहां रहते हुए उन्होंने दर्शनशास्त्र में एम.ए. भी पूरी की। दरअसल उस समय भारतीयों के लिए प्रशासनिक सेवा परीक्षा बहुत कठिन हुआ करती थी लेकिन नेताजी ने ये कर दिखाया था। ये एक ऐसा मुकाम था जो उस समय कई भारतीयों के लिए स्वप्न समान था लेकिन जैसा कि हमने पहले बताया सुभाष चंद्र बोस में राष्ट्रवाद की भावना इतनी प्रबल थी कि अपने देश की चिंताजनक हालात को देखते गए उन्होंने सिविल सेवा छोड़ देश को चुना और 1921 में अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के उद्देश्य से वे भारत लौट आये। और इस प्रकार शुरू हुआ सुभाषचंद्र बोस का भारत को आज़ाद बनाने का संग्राम। 

भारत आकर सुभाषचंद्र बोस महात्मा गांधी से मिले और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने चितरंजन दास के नेतृत्व में काम करना शुरू कर दिया। 1923 में उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष और बंगाल प्रदेश कांग्रेस का सचिव चुन लिया गया। राष्ट्रवादी गतिविधियों में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें 1925 में जेल में डाल दिया जहां उनकी तबीयत काफी ख़राब हो गई। 1927 में जेल से रिहा होकर सुभाष को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। लेकिन उनका जेल जाने का सिलसिला चलता रहा और 1937 के चुनावों से पहले अंग्रेजों ने उन्हें यूरोप की जेल भेज दिया लेकिन वे फरार होने में कामयाब रहे और यूरोप जाकर भी सुभाषचंद्र बोस ने आज़ादी की अलाव जलाई रखी। उन्होंने भारत यूरोप के संबंध बढ़ाने के लिए वहां कई शहरों में अपने केंद्र स्थापित किए। सुभाषचंद्र बोस के भारत आने पर अंग्रेजों ने पाबंदी लगा रखी थी लेकिन फिर भी वे भारत आये जिस कारण एक बार फिर अंग्रेजों ने उन्हें एक साल के लिए जेल में डाल दिया। 

1938 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सुभाष बड़े नेता बन कर उभरते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए लेकिन गांधीजी किसी और को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे जिसका अंदाजा सुभाष को हो गया था और साथ ही शुरू से ही गांधीजी और सुभाष में अहिंसा के प्रयोग को लेकर विवाद रहता था इसलिए उन्होंने समझदारी दिखाते हुए त्यागपत्र देते हुए कांग्रेस ही छोड़ दी थी।

दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड द्वारा भारतीय संसाधनों के प्रयोग का विरोध करने के लिए सुभाष ने जन आंदोलन शुरू किया और जनता ने भी पूरे जोश के साथ उनका साथ दिया। लेकिन अंग्रेजों ने बड़ा खतरा समझते हुए उन्हें अपने ही घर में नजरबंद कर दिया। 1941 में सुभाषचंद्र बोस अपने भतीजे की मदद से भागने में सफल हुए और सीधे जर्मनी जा पहुँचे जहां उन्होंने फ़ासीवाद और नाज़ीवाद देखा और फिर दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है कि कूटनीति को अपनाते हुए वे हिटलर से मिले और इंग्लैंड के खिलाफ इस संग्राम में उनसे सहायता करने को कहा। बर्लिन में ही सुभाषचंद्र बोस ने एमिली शेंकल नाम की युवती से विवाह रचा लिया और उनकी एक बेटी भी हुई जिसका नाम अनीता बोस रखा गया। 

1942 में इन्होंने रेडियो बर्लिन से प्रसारण करना शुरू किया और भारतीयों का उत्साह बढ़ाया। 1943 में वे जर्मनी से सिंगापुर आ गए और रास बिहारी बोस जो उस समय वहां स्वतंत्रता आंदोलन चला रहे थे उनसे बागडोर लेकर सेना का पुनर्गठन किया और इसे आज़ाद हिंद सेना का नाम दिया। इस सेना की स्थापना जापानी सेना द्वारा अंग्रेज़ी फ़ौज से पकड़े गए भारतीय युद्धबंदियों को लेकर हुई थी। इसके बाद से ही सुभाष चंद्र बोस को नेताजी कहा जाने लगा। 1944 में नेताजी अपनी इस सेना को लेकर बर्मा पहुँचे और वहां एक रैली के दौरान उन्होंने “तुम मुझे खून दो में तुम्हें आज़ादी दूंगा” और “जय हिंद” जैसे प्रसिद्ध नारे दिए और भारतीयों को अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग लड़ने के लिए प्रेरित किया। लेकिन नेताजी की आज़ाद हिंद फ़ौज का सपना उस समय टूट गया जब जर्मनी और जापान की दूसरे विश्व युद्ध में हार हो गई। 1944 में ही नेता जी ने आज़ाद हिंद रेडियो से भाषण दिया और सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया और भारत की आज़ादी के लिए शुभकामनाएं दीं जिसके बाद से गाँधी जी को राष्ट्रपिता कहा जाने लगा। 

उनकी मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 में टोक्यो जाते समय ताइवान में हुई विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी लेकिन उनका शव नहीं मिला पाया। कुछ लोगों ने कहा नेता जी जिन्दा है औए उन्होंने उन्हें देखा भी है। भारत सरकार ने इस मामले को सुलझाने के लिए मई 1956 में शाहनवाज कमिटी भी बनाई लेकिन कुछ भी पता नहीं चल पाया। इतने साल बाद भी उनकी मौत को लेकर संशय बरक़रार है।

अनु गुप्ता

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