कुपोषण के बढ़ते मामले भारत के लिए शर्मिंदगी का सबब

राजेश कश्यप । Sep 7 2016 12:35PM

कुपोषण के मामले में दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति अन्य सब देशों से बुरी है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुपोषण की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

भारत में कुपोषण कहर बरपा रहा है और पूरी दुनिया में भारी शर्मिन्दगी की वजह बन रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में कुपोषण के कारण 5 साल से कम उम्र के लगभग 10 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। कुपोषण के मामले में दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति अन्य सब देशों से बुरी है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुपोषण की स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्थिति की गम्भीरता का सहज अनुमान इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि कुपोषण के मामले में भारत ब्राजील से 27 फीसदी, चीन से 26 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका से 21 फीसदी पीछे हैं। यहां तक की बांग्लादेश की स्थिति भी भारत से कहीं अधिक बेहतर है। संयुक्त राष्ट्र बालकोष (यूनीसेफ) द्वारा बच्चों के लिए कराए गए रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रेन 2013-14 के अनुसार भारत में 29.5 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिनकी उम्र 5 साल से कम है और जिनका वजन सामान्य से काफी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन बच्चों के कुपोषण की स्थिति को तीन मुख्य मानकों पर आंकता है, जिसमें अविकसित, कमजोर या शक्तिहीन और सामान्य से कम वजन शामिल हैं।

नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की तीसरी रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत बच्चे ग्रोथ की समस्या के शिकार हैं और 60 प्रतिशत बच्चों का कम वजन है। 5 साल से कम आयु के लगभग 20 प्रतिशत बच्चों की मौत की मुख्य वजह कुपोषण है। देश की राजधानी दिल्ली के स्लम इलाकों में 36 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2015 के प्रस्तुत मसौदे में कुपोषण के कारण मृत्यु दर के असंतुलन पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति बेहद गहरी चिंता जताई गई है। आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में 1000 प्रसव के दौरान लगभग 60 नवजात शिशुओं की और 40 माताओं की मौत हो जाती है। बेहद विडम्बना का विषय है कि प्रतिवर्ष लगभग एक लाख महिलाएं एनीमिया की वजह से यानि खून की कमी से जीवन की जंग हार रही हैं और मौत के मुंह में समा रही हैं और 83 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से गम्भीर बीमारियों की शिकार हैं। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा जारी ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट-2016 के अनुसार 48.1 फीसदी भारतीय महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी का शिकार हैं।

यदि खानपान और रहन-सहन के मामलों में सतर्कता से काम लिया जाए तो कुपोषण पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। गौर करने लायक बात यह है कि केवल पेट भरना ही पोषण नहीं है। हमारे भोजन में समुचित मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट्स, वसा, खनिज लवण, विटामिन व जल आदि शामिल होना बहुत जरूरी है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि प्रोटीन हमारे शरीर के लिए सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण तत्व है। प्रोटीन में मुख्यतः कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन के यौगिक होते हैं। इसमें लोहा, तांबा, फास्फोरस, मैग्निीज व आयोडीन आदि सब प्रकार की मात्रा पाई जाती है। कार्बोहाइड्रेटस कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बनते हैं। यह चावल, आटा, आलू, साबूदाना, मैदा, अनाजों व दालों में और भिण्डी व अरबी आदि रेशेदार सब्जियों में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। वसा का निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के मिलने पर होता है। हमें वसा दूध, मक्खन, पनीर, दही, अण्डे, चर्बी व मछली, सरसों, नारियल, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल आदि के तेल से प्राप्त होती है। खनिज लवण हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। खनिज लवण शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं को चलाते हैं। विभिन्न रसों का निर्माण करते हैं, खून बनाते हैं, हड्डियों व दांतों को मजबूत करते हैं और हमें शक्तिशाली बनाते हैं।

खनिज लवण कई प्रकार के होते हैं। खनिज लवणों में लोहा, कैल्शियम, नमक, पोटेशियम, मैग्नीशियम, तांबा, गन्धक, आयोडीन और फास्फोरस आदि शामिल हैं। लोहे की कमी से शरीर में ‘रक्तहीनता’ का रोग हो जाता है। लोहे की कमी को पूरा करने के लिए हमें पालक, मेथी, सलाद, पोदीना, टमाटर, अंगूर, अंजीर, दाल, अण्डे की जर्दी आदि का प्रयोग करना चाहिए। कैल्शियम की कमी से बच्चों को ‘रिकेटस’ और महिलाओं को ‘मृदुलास्थि’ रोग हो जाता है। इससे बचने के लिए हमें दूध, अरहर की दाल, मूँग की दाल, मठ्ठे आदि का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इनमें कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। नमक हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। पालक, शलगम, फूलगोभी आदि में नमक की उचित मात्रा पाई जाती है। पोटेशियम हृदय संबंधी रोगों को दूर करता है। इसलिए हमें खूब मात्रा में सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए। लगभग सभी सब्जियों में पोटेशियम की मात्रा विद्यमान होती है। फास्फोरस शरीर की उचित वृद्धि करता है और हड्डियों व दांतों को मजबूत करता है। इसके लिए हमें दूध, दही, पनीर, सेब, बादाम, मेवा, पालक, आलू, गोभी, मूली, भुट्टा, अण्डा, मछली, माँस आदि का रूचिनुसार प्रयोग करना चाहिए।

हमारे शरीर को विटामिनों की भी बहुत जरूरत होती है, क्योंकि विटामिन हमारे शरीर का समुचित विकास करते हैं। विटामिन ‘ए’ गाजर, पालक, गोभी, लहसून, पपीता, आम, केला, सलाद, टमाटर, दूध, घी, मक्खन, माँस, मछली आदि में मिलता है। विटामिन ‘बी’ बारह प्रकार का होता है। यह सभी छिलके वाले अनाजों, दालों, सब्जियों, खमीर, दूध व दूध से बने पदार्थों, माँस, मछली व अण्डे की जर्दी आदि में होता है। विटामिन ‘सी’ सन्तरा, मौसमी, नारंगी, अन्नानास आदि सभी खट्टे फलों, इमली व प्याज आदि में भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। विटामिन ‘डी’ दूध, मक्खन, मछली के तेल व अण्डे की जर्दी आदि में तो मिलता ही है, साथ ही यह सूर्य की किरणों में भी मौजूद होता है। विटामिन ‘के’ दूध, हरे पत्ते वाली सब्जियों, टमाटर, अण्डे की जर्दी, पनीर, कलेजी में जाया जाता है। इसकी कमी होने से शरीर से बहता हुआ खून नहीं रूकता है। जल हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक है। हमारे शरीर में जल की मात्रा 70 प्रतिशत होती है। इसकी कमी होने से शरीर बेहद कमजोर हो जाता है और अनेक बीमारियाँ आने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, हमें बिल्कुल साफ पानी पीना चाहिए और हो सके तो पानी उबालकर ठण्डा करने के बाद प्रयोग करना चाहिए।

हमें यह भी कदापि नहीं भूलना चाहिए कि कुपोषण से मुक्ति पाने में स्वच्छता एवं जागरूकता बेहद अहम भूमिका निभाती है। इन दिनों देश भर में ‘एक कदम स्वच्छता की ओर’ नारे के साथ घर-घर में शौचालय निर्माण का अभियान जोरशोर से चल रहा है। इसके लिए जन-जन की जागरूकता एवं सक्रिय भागीदारी बेहद आवश्यक है। सरकार की तरफ से बच्चों के विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण और गर्भवती महिलाओं के लिए कई प्रकार की स्वास्थ्य योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं, जिनका लाभ उठाकर कुपोषण की संभावनाओं को समाप्त किया जा सकता है। नवजात शिशु को प्रथम छह माह तक केवल माँ का दूध दिया जाना चाहिए और छह माह के बाद बच्चे को पूरक पोषाहार देना शुरू करना चाहिए। बच्चे को दो वर्ष तक स्तनपान करवाना बहुत जरूरी है। कुपोषण के लक्षणों का ज्ञान होना अति अनिवार्य है। कुपोषण से बच्चे में थकान, रूखी त्वचा, रूखे बाल, मसूड़ों में सूजन, मसूड़ों से रक्तस्त्राव, दांतों में सड़न, कम वजन, कम बढ़ोतरी, विचलित मन, मांस-पेशियों में दर्द, पेट का फूलना, चिड़चिड़पन, सीखने में असमर्थ आदि सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं। अति कुपोषित बच्चे में जोड़ों में दर्द, कमजोर मांस पेशियां, नाखून टूटना, बाल झड़ना या रंग बदलना, भूख न लगना, दुबलापन, पतलापन, पेट का फूलना आदि लक्षण देखने को मिलते हैं। कुपोषित बच्चे को अंधविश्वास में पड़कर झाड़-फूंक करने वाले बाबाओं के पास ले जाने के कारण निकट के अस्पताल में ले जाना चाहिए और पूरा इलाज करवाना चाहिए।

कहने की बात नहीं कि कुपोषण के मामलों में गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा आदि अहम भूमिका निभाती है। गरीबी की मार के चलते बच्चों और माताओं को समुचित मात्रा में पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता, जिससे उनके शहरी में ऊर्जा, वसा, प्रोटिन, वसा, कार्बोहाईड्रेट्स जैसे आवश्यक तत्वों की भारी कमी हो जाती है। इसी वजह से देश की 75 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं एनीमिया रोग (खून की कमी) का शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 63 फीसदी बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिल पाता है और कई बार उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है। इसका बच्चों पर भारी कुप्रभाव पड़ रहा है। इसलिए, देश-प्रदेश की सरकारों द्वारा कुपोषण के खिलाफ कारगर कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है। कुपोषण का कारण बनने वाली परिस्थितियों गरीबी, भूखमरी, स्वास्थ्य आदि हर स्तर पर व्यापक एवं ठोस नीतियां धरातल पर उतारना बेहद जरूरी है। इसके लिए गरीबों की पूरी गम्भीरता के साथ सुध लेनी होगी और गरीबी-उन्मूलन के लिए ईमानदार प्रयास करने होंगे।

कुल मिलाकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षणों, अध्ययनों और शोध रिपोर्टों के सनसनीखेज आंकड़े स्वतंत्रता के सात दशक पूरे करने जा रहे रहे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के लिए न केवल चिन्तनीय एवं चुनौतिपूर्ण हैं, बल्कि, बेहद शर्मनाक भी हैं। देश से भूखमरी व कुपोषण को मिटाने के लिए अचूक कारगर योजनाओं के निर्माण एवं उन्हें ईमानदारी से क्रियान्वित करने, सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति और स्वास्थ्य व शिक्षा के स्तर को सुधारना बेहद जरूरी है।

- राजेश कश्यप

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