विकास की अंधी दौड़ से प्रकृति बढ़ रही विनाश की ओर

वैज्ञानिकों के अनुसार अगर धरती का तापमान 2 डिग्री से ऊपर बढ़ता है तो धरती की जलवायु में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। जिसके असर से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, जमीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं।

हर साल पूरे विश्व में पांच जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। जब से इस दिवस को सिर्फ मनाया जा रहा है तबसे लगातार पूरे विश्व में पर्यावरण की खुद की सेहत बिगड़ती जा रही है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि आज जब विश्व पर्यावरण दिवस को मनाए जाने की खानापूर्ति की जा रही है तो प्रकृति भी पिछले कुछ दिनों से धरती के अलग अलग भूभाग पर, कहीं ज्वालामुखी फटने के रूप में, तो कहीं सुनामी, कहीं भूकंप और कहीं ऐसे ही किसी प्रलय के रूप में इस बात का ईशारा भी कर रही है कि अब विश्व समाज को इन पर्यावरण दिवस को मनाए जाने जैसे दिखावों से आगे बढ़ कर कुछ सार्थक करना होगा। विश्व के बड़े-बड़े विकसित देश और उनका विकसित समाज जहां प्रकृति के हर संताप से दूर इसके प्रति घोर संवेदनहीन होकर मानव जनित वो तमाम सुविधाएं उठाते हुए स्वार्थी और उपभोगी होकर जीवन बिता रहा है जो पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहे हैं। वहीं विकासशील देश भी विकसित बनने की होड़ में कुछ-कुछ उसी रास्ते पर चलते हुए दिख रहे हैं जो कि पर्यावरण और धरती के लिए लिए घातक सिद्ध हो रहा है।

2015 में 30 नवंबर से 12 दिसंबर के बीच फ्रांस के पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में विश्व के सभी देशों ने हिस्सा लिया था। पेरिस समझौता प्रमुख रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा हुआ है। पेरिस समझौता दुनिया के सभी देशों को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है। पेरिस समझौते को दुनिया के करीब 55 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को मानना है हालांकि अब अमेरिका के इससे अलग हो जाने पर इस संधि के भविष्य को लेकर आशंकाएं उठने लगी हैं। पेरिस संधि पर शुरुआत में ही 177 सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिये थे।

वैज्ञानिकों के अनुसार अगर धरती का तापमान 2 डिग्री से ऊपर बढ़ता है तो धरती की जलवायु में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। जिसके असर से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, जमीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं। वैज्ञानिक इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को जिम्मेदार मानते हैं। ये गैस बिजली उत्पादन, गाड़ियाँ, फैक्टरी और बाकी कई वजहों से पैदा होती हैं। चीन दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है, चीन के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका विश्व में कार्बन का उत्सर्जन करता है, जबकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है। अगर विश्व के ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश कॉर्बन उत्सर्जन में आने वाले समय में कटौती करते हैं तो यह विश्व के पर्यावरण और जलवायु के लिए निश्चित ही सुखद होगा। लेकिन अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में हुए जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने की घोषणा की है, जो कि निश्चित ही पेरिस समझौते को बहुत बड़ा झटका है। ट्रंप ने अपने वक्तव्य में कहा है कि पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के दौरान 191 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है।

चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है। ट्रंप ने कहा है कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे और चीन के साथ वह आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा और अमेरिका पर वित्तीय बढ़त हासिल कर लेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के जवाब में भारत को पर्यावरण हितैषी बताते हुए कहा कि भारत देश प्राचीन काल से ही इस जिम्मेदारी को निभाता आ रहा है। इसके लिए उन्होंने वेदों का उदाहरण दिया।

अगर बात भारत के वायु प्रदूषण करी जाये तो आज भारत देश के बड़े-बड़े शहरों में अनगिनत जेनरेटर धुंआ उगल रहे हैं, वाहनों से निकलने वाली गैस, कारखानों और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं और पर्यावरण की सेहत को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। लगातार जहरीली गैसों- कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड और अन्य गैसों सहित एसपीएम, आरपीएम, सीसा, बेंजीन और अन्य खतरनाक जहरीले तत्वों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है जो कि मुख्य कारण है वायु प्रदूषण का। कई राज्यों में इस समस्या का कारण किसानों द्वारा फसल जलाना भी है। साथ ही साथ अधिक पटाखों का जलाना भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देता है। केंद्र और प्रदेश सरकारों को वायु-प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य-जोखिम के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए और लोगों को विज्ञापन या अन्य माध्यम से वायु प्रदूषण व अन्य प्रदूषण के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। लेकिन विडंबना है कि इस पर अमल नहीं हो रहा है। सरकार को किसानों को फसलों को न जलाने के लिए जागरूक करना चाहिए। किसानों को फसलों (तूरियों) को जलाने की जगह चारे, खाद बनाने या अन्य प्रयोग के लिए जागरूक करना चाहिए। ज्यादा प्रदूषण करने वाले पटाखों पर भी सरकार को प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। हमारी सरकार को ईंधन की गुणवत्ता को बढ़ाकर पॉल्यूशन को काफी हद तक कंट्रोल करने पर जोर देना चाहिए जिससे उसमें उपलब्ध जरूरी तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक न हो तथा उत्सर्जन निर्धारित मानक अनुसार रहे।

ईंधन से ज्यादा प्रदूषण करने वाले तत्वों की कमी कैसे की जाए इस पर भी सरकारों को मिलकर काम करना चाहिए। कम पॉल्यूशन करने वाले ईंधन जैसे सीएनजी, एलपीजी इत्यादि का अधिक प्रयोग करने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। साथ ही साथ यातायात प्रणाली में सुधार करना चाहिए। आज सरकारों को उत्सर्जन मानकों का भी सुदृढ़ीकरण करने की जरूरत है। अगर लोग साइलेंसर पर केटालिक कनवर्टर लगाएं तो भी वाहन द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। सरकार को लोगों को वाहनों का समय पर मेंटीनेंस कराने के लिए जागरूक करना चाहिए। जागरूक लोगों को स्वतः ही अपने वाहनों का मेंटीनेंस करना चाहिए। जब प्रदूषण स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो स्वास्थ्य के लिए घातक हो जाता है, और तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि फेफड़ों में संक्रमण व आंख, नाक व गले में कई तरह की बीमारियों और ब्लड कैंसर जैसी तमाम घातक बीमारियों को जन्म देता है। अगर क्षेत्र में वायु प्रदूषण मानकों से ज्यादा है तो लोगों को मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे कि वायु में मिले हुए घातक तत्वों और गैसों से काफी हद तक बचा जा सके। आज प्रदूषण को कम करने के लिए हमारी सरकारों को सम-विषम फॉर्मूला के अलावा अन्य कई उपाय करने पड़ेंगे।  सम-विषम फॉर्मूला में बाइक और स्कूटी को भी शामिल करना होगा। साथ ही साथ नियमों को सख्ती से लागू करना होगा। अगर लोग देश में निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें तो सम-विषम जैसे फॉर्मूले कि जरूरत ही नहीं पड़ेगी और वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी, इसके लिए लोगों को खुद सोचना होगा। अगर देश में वायु प्रदूषण से जुड़े हुये कानूनों का सख्ती से पालन हो तो वायु प्रदूषण जैसी समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है। इससे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने में भी मदद मिलेगी।

आज यदि धरती के स्वरूप को गौर से देखा जाए तो साफ पता चल जाता है कि आज नदियां, पर्वत, समुद्र, पेड़ और भूमि तक लगातार क्षरण की अवस्था में हैं। यह भी सबको स्पष्ट दिख रहा है कि आज कोई भी देश, कोई भी सरकार, कोई भी समाज इनके लिए उतना गंभीर नहीं है जितने की जरूरत है। बेशक लंदन की टेम्स नदी को साफ करके उसे पुनर्जीवन प्रदान करने जैसे प्रशंसनीय और अनुकरणीय प्रयास भी हो रहे हैं मगर ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। ऐसे अनुकरणीय प्रयास भारत में भी हो सकते हैं जिसके द्वारा भारत की प्रदूषित नदियों को निर्मल और अविरल बनाया जा सकता है। चाहे वो गंगा नदी हो या यमुना नदी इस सबके लिए जरूरी है दृढ़ इच्छा शक्ति की जो कि भारतीय सरकार के साथ-साथ भारत के हर इंसान में होनी चाहिए। भारत में गंगा की स्वच्छता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने प्रतिबद्धता जतायी है। देखना होगा कि निर्धारित समयसीमा तक गंगा निर्मल हो पाती है या नहीं। आज जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण पृथ्वी के ऊपर से हरा आवरण लगातार घटता जा रहा है जो पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म दे रहा है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए वनों का संरक्षण और नदियों का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विवाह, जन्मदिन, पार्टी और अन्य ऐसे समारोहों पर उपहार स्वरूप पौधों को देने की परंपरा शुरू की जाए। फिर चाहे वो पौधा, तुलसी का हो या गुलाब का, नीम का हो या गेंदे का। इससे कम से कम लोगों में पेड़ पौधों के प्रति लगाव की शुरूआत तो होगी। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आएगी और ईको फ्रेंडली फैशन की भी शुरुआत होगी। सभी शिक्षण संस्थानों, स्कूल कालेज आदि में विद्यार्थियों को उनके प्रोजेक्ट के रूप में विद्यालय प्रांगण में, घर के आसपास और अन्य परिसरों में पेड़ पौधों को लगाने का कार्य दिया जाए। यदि इन छोटे छोटे उपायों पर ही संजीदगी से काम किया जाए तो ये निःसंदेह कम से कम उन बड़े-बड़े अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों से ज्यादा ही परिणामदायक होगा। और इससे अपने पर्यावरण और अपनी धरती को बचाने की दिशा में एक मजबूत पहल होगी। अब सोचना छोड़िये और खुद से कहिए कि चलो ज्यादा नहीं पर हम एक शुरुआत तो कर सकते हैं। सच पूछें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमें कुछ ज्यादा करना भी नहीं है। सिर्फ एक पहल करनी है यानी खुद को एक मौका देना है। हमारी छोटी-छोटी, समझदारी भरी पहल पर्यावरण को बेहद साफ-सुथरा और तरो-ताजा कर सकती है।

ब्रह्मानंद राजपूत

(लेखक पर्यावरण प्रेमी और पर्यावरण जागरूक समिति के संयोजक हैं)

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