महाभारत के महानायक भी हैं विष्णु अवतार श्रीकृष्ण

शुभा दुबे । Aug 24 2016 5:12PM

महाभारत काल में हुए युद्ध को रोकने के लिए श्रीकृष्ण शांतिदूत बने, लेकिन धृतराष्ट्र के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन के अहंकार के कारण युद्ध शुरू हो गया और भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने।

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के एक अवतार हैं। यह अवतार उन्होंने द्वापर में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में लिया था। उस समय चारों ओर पाप कृत्य हो रहे थे। धर्म नाम की कोई भी चीज नहीं रह गई थी। इसलिए धर्म को स्थापित करने के लिए श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे। श्रीकृष्ण ने तब पापों का नाश करके धर्म की स्थापना तो की ही उस काल में महाभारत में भी उनका अमूल्य योगदान रहा। समस्त देवताओं में श्रीकृष्ण ही ऐसे थे जो इस पृथ्वी पर सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अवतरित हुए थे। महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष है। इस ग्रंथ के मुख्य विषय तथा इस महायुद्ध के महानायक भगवान श्रीकृष्ण ही हैं। निःशस्त्र होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण ही महाभारत के प्रधान योद्धा हैं।

महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम दर्शन द्रौपदी स्वयंवर के अवसर पर होता है। जब अर्जुन के लक्ष्यवेध करने पर द्रौपदी उनके गले में जयमाला डालती हैं तब कौरव पक्ष के लोग तथा अन्य राजा मिलकर द्रौपदी को पाने के लिए युद्ध की योजना बनाते हैं। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनको समझाते हुए कहा कि इन लोगों ने द्रौपदी को धर्मपूर्वक प्राप्त किया है, अतः आप लोगों को अकारण उत्तेजित नहीं होना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण को धर्म का पक्ष लेते हुए देखकर सभी लोग शांत हो गये और द्रौपदी के साथ पांडव सकुशल अपने निवास पर चले गये।

इसी प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में जब यह प्रश्न खड़ा हुआ कि यहां सर्वप्रथम किस की पूजा की जाए तो उस समय महात्मा भीष्म ने कहा कि वासुदेव ही इस विश्व के उत्पत्ति एवं प्रलय रूप हैं और इस जगत का अस्तित्व उन्हीं से है। वासुदेव ही समस्त प्राणियों के अधीश्वर हैं, अतएव वे ही प्रथम पूजनीय हैं। भीष्म के इस कथन पर चेदिराज शिशुपाल ने श्रीकृष्ण की प्रथम पूजा का विरोध करते हुए उनकी कठोर निंदा की और भीष्म पितामह को भी खरी खोटी सुनाई। भगवान श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक उसकी कठोर बातों को सहते रहे और जब वह सीमा पार करने लगा तब उन्होंने सुदर्शन चक्र के द्वारा उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सबके देखते−देखते शिशुपाल के शरीर से एक दिव्य तेज निकला और भगवान श्रीकृष्ण में समा गया। इस अलौकिक घटना से यह सिद्ध होता है कि कोई कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, भगवान के हाथों मरकर वह सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है।

महाभारत में पांडवों को भगवान श्रीकृष्ण का ही सहारा था। उनके एकमात्र रक्षक भगवान श्रीकृष्ण ही थे, उन्हीं की कृपा और युक्ति से ही भीमसेन के द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ संपन्न हुआ। राजसूय यज्ञ का दिव्य सभागार भी मयदानव ने भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से ही बनाया। द्यूत में पराजित हुए पांडवों की पत्नी द्रौपदी जब भरी सभा में दुःशासन के द्वारा नग्न की जा रही थी, तब उसकी करुणा पुकार सुनकर उन्होंने वस्त्रावतार धारण किया। इसके अलावा उन्होंने शाक का एक पत्ता खाकर दुर्वासा के कोप से पांडवों की रक्षा की।

महाभारत काल में हुए युद्ध को रोकने के लिए श्रीकृष्ण शांतिदूत बने, लेकिन धृतराष्ट्र के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन के अहंकार के कारण युद्ध शुरू हो गया और भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने। संग्राम भूमि में उन्होंने अर्जुन के माध्यम से विश्व को गीतारूपी दुर्लभ रत्न प्रदान किया। भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे महारथियों के दिव्यास्त्रों से भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों की रक्षा की। आखिरकार युद्ध का अंत हुआ और युधिष्ठिर का धर्मराज्य स्थापित हुआ।

- शुभा दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़