विकराल समस्या जल की, आने वाले कल की

आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत विश्व का 2.24% भू-भाग रखता है। जहाँ विश्व की 16.9% जनसंख्या निवास करती है। भारत में विश्व के कुल जल का 4% ही मीठा जल उपलब्ध है।

‘जल ही जीवन है’- यह कथन तो सब ने ही सुना होगा, परन्तु सोचने का विषय यह है कि यदि पृथ्वी पर कुल उपयोग हेतु जल कभी समाप्त हो जाए, तो क्या होगा? भविष्य में आने वाली इस चुनौती का एक सरलतम उपाय यह भी हो सकता है- “वर्षा जल संरक्षण”। आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत विश्व का 2.24% भू-भाग रखता है। जहाँ विश्व की 16.9% जनसंख्या निवास करती है। भारत में विश्व के कुल जल का 4% ही मीठा जल उपलब्ध है। वैज्ञानिकों के ताज़ा अध्ययानुसार वर्ष 2030 तक 40% भारतीय जनसंख्या पीने योग्य पानी से वंचित हो जाएगी। 9 नवम्बर 2000 को देश का 28वां राज्य बना उत्तराखण्ड, भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.61% भू-भाग रखता है। जहाँ देश की कुल आबादी की 0.82% जनसंख्या निवास करती है।

उत्तराखण्ड के कुल क्षेत्रफल का 85% भाग पहाड़ी तथा 15% भाग मैदानी है जिसमें मात्र 14% भू-भाग ही कृषि योग्य है। राज्य की औसत वर्षा 1545 है। तथ्यों के अनुसार, प्रतिवर्ष राज्य के लगभग 88% भू-भाग में मृदा अपरदन 10 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर की दर से हो रहा है, जिससे अक्सर भूस्खलन का खतरा मंडराया रहता है। वर्षा जल का अनियंत्रित प्रवाह तथा बदल फटने जैसी गंभीर समस्याएं भूस्खलन तथा मृदा अपरदन को जन्म देती हैं। ऐसे भयंकर दुष्परिणामों का सामना राज्य को पूर्व में भी करना पड़ा है तथा प्रतिवर्ष ऐसी घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण भू-गार्भिक जल प्रतिवर्ष घटता जा रहा है तथा आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। अतः समय की आवश्यकतानुसार ‘वर्षा जल का संचयन’ किया जाना जरूरी है। वर्षा जल से होने वाले कुछ नुकसान निम्न बिन्दुओं में अंकित हैं:

मृदा अपरदन,
भूस्खलन का खतरा,
नदियों का जलस्तर बढ़ना,
निचले हिस्सों में बाढ़ का आना,
फसल का बर्बाद होना।


अब सवाल यह उठता है कि वर्षा जल संरक्षण क्या है? वर्षा जल संरक्षण एक सरल व कम लागत वाली तकनीक है जिसमें कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है और इसके अनेक फायदे हैं। जल संकट की स्थिति में एकत्र वर्षा जल अन्य जल अन्य जल स्त्रोतों का पूरक है। सूखे की स्थिति अथवा भू-गार्भिक जल के कम हो जाने पर या कुओं के सूख जाने पर यह एक अच्छा विकल्प है और भू-गार्भिक जल को रिचार्ज करने में सहायक साबित होता है।

वर्षा जल संरक्षण क्यों जरूरी है? पहाड़ी क्षेत्रों में पीने योग्य पानी प्राप्त करने हेतु काफी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। बढ़ती जनसंख्या के उपभोग हेतु, उद्योग-धंधों की जल मांग हेतु, पहाड़ी क्षेत्रों में भू-गार्भिक जल का गहराई में होना, पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा जल संरक्षण न होने की स्थिति में नाली, नौला या गधेरों में जल का बह जाना, जिस कारण निचले हिस्सों में बाढ़, जलस्तर का बढ़ना, फसल बर्बाद होना और भारी मात्र में मृदा अपरदन का संकट उत्पन्न होना।

वर्षा जल संरक्षण कैसे करें? वर्षा जल संरक्षण हेतु छत पर या पाइप द्वारा भूतल पर छोटे टैंक बनाकर आसानी से संरक्षण किया जा सकता है जिसे समयानुरूप उपयोग किया जा सके।

वर्षा जल संरक्षण के फायदे:


यह एक सस्ता एवं सुविधाजनक विकल्प है जिसमें जल संचयन हेतु न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
सरल निर्माण।
अच्छा रखरखाव।
वर्षा जल का अन्य उपलब्ध या पारंपरिक स्त्रोतों की अपेक्षा बेहतर होना।
चूँकि यह अक्षय स्त्रोत है, अतः यह पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुँचाता।

वर्षा जल संरक्षण के नुकसान:
मुख्यतः यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि कितनी वर्षा होगी।
नियमित निरीक्षण, सफाई तथा मरम्मत की आवश्यकता।
उच्च निवेश लागत।


संचयित वर्षा जल की गुणवत्ता वायु प्रदूषण, पशु तथा पक्षियों के मल मूत्र, कीड़े, गंदगी और कार्बनिक पदार्थों से प्रभावित हो सकती है।
लम्बे समय तक सूखे की स्थिति, पानी की आपूर्ति को प्रभावित कर सकती है।


अन्ततः इस बात का ध्यान रखें-


“परम्परागत जल संरक्षण की तकनीक अपनाएं।
आने वाली पीढ़ी के लिए जल बचाएं।।

- अरुणिमा पालीवाल एवं सोमांश कुमार गुप्ता

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