पश्चिम एशिया की अत्यंत सम्मानित पत्रकार थीं इजराइल के हमले में मारी गई अल जजीरा की पत्रकार

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पिछले साल अल जजीरा से जारी हुए एक वीडियो में अबू अकलेह ने 2000 से 2005 तक चले ‘दूसरे इंतिफादा’ (विद्रोह) के दौरान हुई बर्बादी पर कहा था, “मैंने पत्रकारिता इसलिए चुनी ताकि मैं लोगों के करीब रह सकूं। वास्तविकता को बदलना आसान नहीं लेकिन मैं कम से कम उनकी आवाज को दुनिया तक पहुंचा रही हूं।”

यरुशलम| वेस्ट बैंक पर इजराइल के हमले के दौरान मारी गई अल जजीरा की पत्रकार पश्चिम एशिया में एक बेहद सम्मानित पत्रकार थीं, जिनकी कवरेज को लाखों लोगों ने सराहा था।

पत्रकार शिरीन अबू अकलेह (51) ने फलस्तीनी इलाके में दो दशक से भी ज्यादा समय तक अल जजीरा के लिए रिपोर्टिंग की थी और उनका नाम घर-घर में जाना जाता था।

ट्विटर पर बुधवार को अरबी में अबू अकलेह का नाम ट्रेंड (चर्चा में रहना) करता रहा और सोशल मीडिया पर लोगों ने फलस्तीनियों के लिए समर्थन जताया। अकलेह की तस्वीर वेस्ट बैंक के रामल्लाह के मुख्य चौराहे पर प्रदर्शित की गई तथा उनके प्रशंसकों ने वहां अल जजीरा के कार्यालय और यरुशलम स्थित उनके पारिवारिक आवास पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

अल जजीरा और प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अकलेह की मौत इजराइल की ओर से की गई गोलीबारी में हुई। इजराइल ने कहा है कि यह स्पष्ट नहीं है कि गोली किसने चलाई और इस घटना के लिए अभी उसे जिम्मेदार ठहराना जल्दबाजी होगी।

बाद में इजराइल के रक्षा मंत्री बेनी गांट्ज ने बुधवार को निष्पक्ष जांच का वादा किया और कहा कि वह अमेरिकी और फलस्तीनी अधिकारियों के संपर्क में हैं। इजराइल के सैन्य कब्जे की कड़वी सच्चाई को उजागर करने वाली अबू अकलेह की कवरेज, एक फलस्तीनी पत्रकार के तौर पर उनके निजी अनुभवों से जुड़ी थी। उनकी मौत से पता चलता है कि फलस्तीनियों पर इस युद्ध का क्या असर होता है, फिर चाहे वह पत्रकार हों या न हों। वह एक अमेरिकी नागरिक भी थीं और गर्मियों में अकसर अमेरिका जाती थीं, लेकिन वह ज्यादातर समय पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक में काम करते हुए बिताती थीं, जिसे वह अपना घर कहती थीं। अकलेह एक फलस्तीनी ईसाई थीं जिनका परिवार मूल रूप से बेथलेहम का था। उनका जन्म और परवरिश यरुशलम में हुई थी। उनके परिवार में एक भाई है।

पिछले साल अल जजीरा से जारी हुए एक वीडियो में अबू अकलेह ने 2000 से 2005 तक चले ‘दूसरे इंतिफादा’ (विद्रोह) के दौरान हुई बर्बादी पर कहा था, “मैंने पत्रकारिता इसलिए चुनी ताकि मैं लोगों के करीब रह सकूं। वास्तविकता को बदलना आसान नहीं लेकिन मैं कम से कम उनकी आवाज को दुनिया तक पहुंचा रही हूं।” अकलेह, 1997 में अल जजीरा में शामिल हुई थीं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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