चीन ने कहा- भारत के दबाव में आ गया है नेपाल

[email protected] । Apr 21 2017 5:25PM

चीन के सरकारी मीडिया ने आज दावा किया कि भारत की ओर से कड़ा ऐतराज जताए जाने पर नेपाल ने चीन के साथ अपने पहले सैन्य अभ्यास के आकार को कम कर दिया।

बीजिंग। चीन के सरकारी मीडिया ने आज दावा किया कि भारत की ओर से कड़ा ऐतराज जताए जाने पर नेपाल ने चीन के साथ अपने पहले सैन्य अभ्यास के आकार को कम कर दिया। यह दस दिवसीय संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘सागरमथा फ्रेंडशिप 2017’ 16 अप्रैल से नेपाल में प्रारंभ हुआ। सरकारी ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में कहा गया, ‘‘ऐसा बताया गया था कि दोनों देशों ने शुरूआत में बटालियन स्तर के सैन्य अभ्यास की योजना बनाई थी। हालांकि भारत के कड़े विरोध के चलते नेपाल ने सैन्य अभ्यास का आकार घटा दिया और अभ्यास स्थल बदलकर सैन्य स्कूल कर दिया।’’

लेख में कहा गया, ‘‘नेपाल के लिए संयुक्त सैन्य अभ्यास के गहरे मायने हैं। यह दिखाता है कि नेपाल प्रमुख शक्तियों के बीच संतुलित कूटनीति को साधते हुए आगे बढ़ रहा है। 1990 के दशक से संतुलित कूटनीति नेपाल की प्रमुख विदेश रणनीति का मूलभूत सिद्धांत बन गया है, जिसका आधार ही नेपाल का राष्ट्रवाद तथा भारत विरोधी भावनाएं हैं।’’ चीन का आधिकारिक मीडिया चीन समर्थक नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के हटने को लेकर अपनी खीज जाहिर कर रहा है। ओली की जगह प्रचंड ने ली है।

विश्लेषकों के मुताबिक चीन के लिए ओली प्रशासन की हार बड़ा झटका रही क्योंकि उसने तिब्बत के जरिए रेल और राजमार्ग संपर्कों के रास्ते नेपाल में बड़े पैमाने पर निवेश की योजना बनाई थी। इसके पीछे चीन का इरादा नेपाल पर अपना प्रभाव बढ़ाना था जो अब तक सभी आपूर्तियों के लिए भारत पर निर्भर करता था। प्रचंड भारत के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं जिससे बीजिंग की त्यौरियां चढ़ गई हैं। लेख में कहा गया, ‘‘राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा अन्य क्षेत्रों में नेपाल की भारत पर निर्भरता और भारत की नेपाल को अपने प्रभाव वाला क्षेत्र बनाने की महत्वाकांक्षा के चलते नेपाल की अधिकांश जनता में यह डर बैठ गया है कि सिक्किम की तरह वह भी अपनी राष्ट्रीय आजादी खो देंगे।’’ इसमें कहा गया, ‘‘चीन के साथ सैन्य अभ्यास नेपाल में जातीय अलगाववाद कम करने में सहायक होगा।’’ चीन ने नेपाल के नए संविधान के प्रति समर्थन जताया है, लेकिन मधेसी समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अंदेशा है कि इससे उनके राजनीतिक तथा संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा होगी।

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