नॉर्वे और फिनलैंड में अमेरिका जितने लोगों के पास बंदूकें, लेकिन अपराध की दर बेहद कम

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डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ झुकाव रखने वाले नीति निर्माण एवं अनुसंधान संगठन ‘द सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस ऑफ ऑल 50 यूएस स्टेट्स’के एक विश्लेषण में सबसे सख्त बंदूक कानून वाले प्रांतों और बंदूक हिंसा की सर्वाधिक दर वाले प्रांतों के बीच गहरा संबंध पाया गया है।

(पीटर स्क्वायर्स, अपराध विज्ञान एवं सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर, ब्राइटन विश्वविद्यालय) ब्राइटन|  अमेरिका के टेक्सास में एक स्कूल में 21 लोगों की मौत का कारण बनने वाली गोलीबारी की हालिया घटना इस बारे में सोचने को मजबूर कर देती है कि अन्य देशों की तुलना में अमेरिका में बंदूक से छात्रों की हत्या की दर इतनी अधिक क्यों है।

अमेरिका के स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन ‘चिल्ड्रेंस डिफेंस फंड’ ने दावा किया है कि बंदूक हिंसा अमेरिका में बच्चों की मौत का प्रमुख कारण है। उसके मुताबिक, अमेरिका में रोजाना औसतन नौ बच्चे गोलीबारी की घटना में मारे जाते हैं। यानी देश में औसतन हर दो घंटे 36 मिनट पर बंदूक से एक बच्चे की मौत होती है। अमेरिका उच्च आय वाले देशों में शीर्ष पर है।

‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, अमेरिका में बंदूक से मारे गए बच्चों की संख्या ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, इंग्लैंड और वेल्स जैसे कई अन्य उच्च आय वाले देशों के मुकाबले 36.5 गुना अधिक है। हाल के वर्षों में हुए कुछ अंतरराष्ट्रीय शोध ने भी साबित किया है कि बंदूक के स्वामित्व की उच्च दरों का बड़े पैमाने पर होने वाली बंदूक हिंसा की घटनाओं से करीबी संबंध है।

डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ झुकाव रखने वाले नीति निर्माण एवं अनुसंधान संगठन ‘द सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस ऑफ ऑल 50 यूएस स्टेट्स’के एक विश्लेषण में सबसे सख्त बंदूक कानून वाले प्रांतों और बंदूक हिंसा की सर्वाधिक दर वाले प्रांतों के बीच गहरा संबंध पाया गया है। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय बंदूक कानूनों, बंदूक के स्वामित्व की दरों और बंदूक हिंसा के मामलों का तुलनात्मक अध्ययन किया है।

दिलचस्प बात यह है कि नॉर्वे और फिनलैंड जैसे यूरोपीय देशों में प्रति सौ लोगों पर बंदूक रखने वाले लोगों की संख्या लगभग अमेरिका जितनी ही है, लेकिन बंदूक हिंसा के लिहाज से वे दुनिया के सर्वाधिक सुरक्षित समाज में शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि उच्च स्तर की सामाजिक एकता, कम अपराध दर और पुलिस व सामाजिक संस्थाओं में बड़े पैमाने पर विश्वास गोलीबारी की घटनाओं में कमी लाने में कारगर है। हालांकि, इस अनुसंधान का दूसरा पहलू यह भी है कि फिनलैंड, स्वीडन और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में बंदूक से आत्महत्या की दर काफी अधिक है।

दुनिया के सबसे सख्त बंदूक कानून वाले देशों में शामिल ब्रिटेन और जापान में गोलीबारी की घटनाएं इसलिए कम होती हैं, क्योंकि वहां बंदूक रखने पर प्रतिबंध है। समाज का असर बंदूक नियंत्रण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान होने से कई अन्य विषयों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है।

मालूम हो कि कुछ समय पहले तक बंदूक हिंसा पर अकादमिक अनुसंधान अकेले अमेरिका में हुआ करते थे और इनका बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावशाली लॉबींग समूह ‘राष्ट्रीय राइफल संगठन’ द्वारा वित्तपोषित था।

शोधकर्ताओं ने बंदूक के स्वामित्व के बजाय इसके इस्तेमाल के विभिन्न परिदृश्यों और परिस्थितियों को समझना शुरू किया। उन्होंने अपराध विज्ञानियों की उस धारणा को भी मान्यता देना प्रारंभ कर दिया, जिसके तहत माना जाता है कि नए कानून अपराध की रोकथाम में कुछ खास कारगर नहीं साबित होते, क्योंकि अपराधी कानून का पालन नहीं करते। बंदूक शोधकर्ता अब व्यापक ‘बंदूक नियंत्रण प्रणालियों’ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिनकी बंदूक हिंसा के स्तर को बढ़ाने या घटाने में एक बड़ी भूमिका है।

इन प्रणालियों में पुलिस एवं आपराधिक न्याय प्रणाली, राजनीतिक जवाबदेही की प्रणाली, कल्याणकारी सुरक्षा जाल, समग्र शिक्षा प्रावधान और विश्वास की संस्कृति विकसित करना शामिल है।

अमेरिका में हाल के वर्षों में बंदूक के स्वामित्व को नियंत्रित किए बिना स्कूल-कॉलेज सहित अन्य स्थानों पर बंदूक हिंसा में कमी लाने के प्रयास किए गए हैं। हालांकि, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि किसी देश में बंदूक रखने वाले लोगों की अधिक संख्या वहां निश्चित तौर पर बंदूक हिंसा की ज्यादा दर होने का कारण बनती है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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